नई दिल्ली: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शनिवार 1 फरवरी को केंद्रीय बजट 2025-26 पेश किया. वैश्विक आर्थिक स्थिति में घरेलू अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने पर सरकार का मुख्य ध्यान केंद्रित होने के बावजूद बजट में विदेश मंत्रालय के लिए आवंटन में बड़ी कटौती की गई है. बजट 2025 में विदेश मंत्रालय को 20,516.61 करोड़ रुपये के आवंटन का प्रस्ताव दिया गया है, जो पिछले बजट के संशोधित अनुमान 25,277.20 करोड़ रुपये से काफी कम है.
किंग्स कॉलेज लंदन में किंग्स इंडिया इंस्टीट्यूट के अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रोफेसर और ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन थिंक टैंक के उपाध्यक्ष (अध्ययन और विदेश नीति) हर्ष वी पंत ने ईटीवी भारत को बताया कि बजट को देखने का एक तरीका यह है कि सरकार घरेलू अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार को प्राथमिकता दे रही है. भारतीय अर्थव्यवस्था को उतार-चढ़ाव भरे दौर से गुजरना होगा.
पंत ने कहा कि जिस तरह दुनिया भर के देश अपने अंदरूनी मामलों की ओर देख रहे हैं, उसे देखते हुए भारत के लिए घरेलू विकास को आगे बढ़ाना महत्वपूर्ण है. उन्होंने कहा, "जब तक घरेलू अर्थव्यवस्था मजबूत नहीं होगी, हम ग्लोबल लीडर नेता की भूमिका निभाने में सक्षम नहीं होंगे."
आम बजट 2025 में कृषि, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME), बुनियादी ढांचे, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा पर जोर दिया गया है. साथ ही रक्षा, ग्रामीण विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, रेलवे और हाईवे के लिए बड़े फंड का प्रस्ताव है, जो रोजगार सृजन और दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है.
पंत ने कहा कि सरकार ने राजकोषीय घाटे को चालू वित्त वर्ष के 4.8 प्रतिशत से कम करके अगले वित्त वर्ष में 4.4 प्रतिशत करने का बीड़ा उठाया है. उन्होंने कहा, "ऐसी स्थिति में कई क्षेत्रों में व्यय में भी कटौती करनी होगी."
विदेश मंत्रालय की बात करें तो, 'देशों को सहायता' श्रेणी के लिए मौजूदा वित्तीय आवंटन 2024-25 के बजट से कम है. इस उद्देश्य के लिए केंद्रीय बजट 2024-25 में 5,483 करोड़ रुपये अलग रखे गए, जो पिछले वित्तीय वर्ष के 5,806.48 करोड़ रुपये से कम है. यह फंड भारत की बहुपक्षीय और द्विपक्षीय सहायता पहलों का समर्थन करती है, जो पड़ोसी देशों के साथ-साथ अफ्रीका, मध्य एशिया, दक्षिण एशिया और लैटिन अमेरिका के विकासशील देशों को सहायता प्रदान करती है. इसमें आपदा राहत और मानवीय प्रयासों के लिए सहायता भी शामिल है.
भूटान सबसे बड़ा लाभार्थी
'देशों को सहायता' आवंटन में हमेशा की तरह भूटान सबसे बड़ा लाभार्थी है. इस बार, भूटान के लिए आवंटित राशि 2,150 करोड़ रुपये है, जो कि वित्त वर्ष 2024-25 में आवंटित 2,543.48 करोड़ रुपये से कम है. नेपाल दूसरा सबसे बड़ा लाभार्थी है, उसे 700 करोड़ रुपये का आवंटन मिला है, जो पिछले साल के बराबर है.
2023 में मोहम्मद मुइज्जू के राष्ट्रपति बनने के बाद मालदीव के साथ भारत के संबंधों में आई खटास के बाद अब भारत ने हिंद महासागर के इस द्वीपीय देश को दी जाने वाली सहायता राशि में वृद्धि की है. मालदीव के लिए आवंटित विकास सहायता राशि 600 करोड़ रुपये है, जबकि पिछले साल यह राशि 470 करोड़ रुपये थी. मालदीव आर्थिक संकट से जूझ रहा है और चीन तथा तुर्की के साथ निवेश समझौते कर रहा है, जिससे भारत की चिंताएं बढ़ गई हैं.
ये भी पढ़ें-
- वित्त मंत्री ने पेश किया 50.65 लाख करोड़ रुपये का रिकॉर्ड बजट, राजकोषीय घाटा GDP का 4.4 प्रतिशत
- बजट 2025: क्या सस्ता हुआ... क्या महंगा, देखें लिस्ट
- नई कर व्यवस्था में 12 लाख की आय टैक्स फ्री, आयकर स्लैब में कब-कब हुए बड़े बदलाव, जानें
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने शुक्रवार को मीडिया ब्रीफिंग के दौरान कहा कि भारत सरकार मालदीव के हालात पर वहां के अधिकारियों के साथ निकट संपर्क में है. उन्होंने कहा, "हाल ही में हुए समझौतों (चीन और तुर्की के साथ हुए समझौतों के संदर्भ में) से मालदीव सरकार को राजस्व का नुकसान होने की संभावना है, जो निश्चित रूप से चिंता का विषय है. यह देश की दीर्घकालिक राजकोषीय स्थिरता के लिए अच्छा संकेत नहीं है. हमें अपनी नीतियां बनाते समय स्पष्ट रूप से इसे ध्यान में रखना होगा."
श्रीलंका के लिए विकास सहायता में कोई कमी नहीं
तीन साल पहले श्रीलंका को बड़े वित्तीय संकट से निकालने के लिए भारत ने ऋण राहत प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इस बार बजट में पिछले साल के समान ही 300 करोड़ रुपये का विकास सहायता कोष आवंटित किया गया है. पिछले साल श्रीलंकाई राष्ट्रपति अनुरा कुमार दिसानायके ने पदभार ग्रहण करने के बाद भारत की अपनी पहली राजकीय यात्रा की थी. हालांकि दिसानायके ने चीन का भी दौरा किया और निवेश सौदों पर हस्ताक्षर किए, लेकिन भारत सरकार ने बजट में हिंद महासागर के इस द्वीपीय राष्ट्र के लिए विकास सहायता में कोई कमी नहीं की है.
प्रधानमंत्री शेख हसीना के सत्ता से बेदखल होने और नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार की स्थापना के बाद भारत और बांग्लादेश के बीच संबंध नाजुक स्थिति में हैं. भारत ने सत्ता परिवर्तन के बाद अल्पसंख्यकों पर हमलों की रिपोर्टों पर लगातार गंभीर चिंता जताई है. हालांकि, सरकार ने पड़ोसी देश बांग्लादेश के लिए विकास सहायता में कटौती नहीं करने का फैसला किया है और पिछले साल के समान ही 120 करोड़ रुपये का फंड आवंटित किया है.
म्यांमार में संघर्ष के कारण भारत द्वारा वित्तपोषित प्रमुख बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर काम रुका हुआ है. इस साल के बजट में म्यांमार के लिए आवंटित विकास सहायता 350 करोड़ रुपये है, जो पिछले वर्ष के संशोधित अनुमान 400 करोड़ रुपये से कम है.
फगानिस्तान के लिए विकास सहायता राशि दोगुना की गई
अफगानिस्तान की बात करें तो भारत सरकार ने इस साल के बजट में, अफगानिस्तान के लिए विकास सहायता को पिछले वर्ष के संशोधित अनुमान 50 करोड़ रुपये से दोगुना करके 100 करोड़ रुपये कर गया है. गौरतलब है कि भारत ने अफगानिस्तान में अपने विकास कार्य और मानवीय सहायता जारी रखी है. हाल के दिनों में, भारत और अफगानिस्तान के बीच संबंध बनाने के संकेत मिले हैं. विदेश सचिव विक्रम मिसरी और तालिबान के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी के बीच हाल ही में हुई बैठक ने भी वैश्विक ध्यान आकर्षित किया.
- यह भी पढ़ें-नई कर व्यवस्था में 12 लाख की आय टैक्स फ्री, आयकर स्लैब में कब-कब हुए बड़े बदलाव, जानें