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विश्व साड़ी दिवस पर विशेष: संकट में बिहार की बावन बूटी साड़ी की कला, परंपरा बचाने के लिए सरकार से उम्मीदें बढ़ी - WORLD SAREE DAY 2024

विश्व साड़ी दिवस पर बिहार की बावन बूटी साड़ी की महत्ता उजागर होती है, लेकिन सरकारी उपेक्षा के कारण विलुप्ति की कगार पर है-

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विश्व साड़ी दिवस पर विशेष (Etv Bharat)

By ETV Bharat Bihar Team

Published : 16 hours ago

Updated : 15 hours ago

नालंदा : आज विश्व साड़ी दिवस है, हर साल 21 दिसंबर को इसे मनाया जाता है. सारी महिलाओं के पारंपरिक परिधान की महत्ता को उजागर करता है. इस खास दिन पर हम बिहार की मशहूर बावन बूटी साड़ी पर ध्यान केंद्रित करेंगे, जो अब सरकारी उपेक्षाओं के कारण विलुप्ति के कगार पर है.

बावन बूटी साड़ी का इतिहास: बिहार के नालंदा स्थित बिहारशरीफ के बासवन विगहा गांव में तैयार होने वाली बावन बूटी साड़ी, देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी प्रसिद्ध थी. पहले इसे दुल्हनों और मेहमानों को शुभ अवसरों पर तोहफे के रूप में दिया जाता था. अब यह कला धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है.

विश्व साड़ी दिवस पर विशेष (Etv Bharat)

स्व. कपिल देव प्रसाद की भूमिका: बावन बूटी साड़ी को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाने वाले स्व. कपिल देव प्रसाद अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी बहू नीलू देवी आज भी इस कला को बचाने के लिए संघर्ष कर रही हैं. उनका मानना है कि अगर सरकार इस कला को GI टैग की मान्यता दे, तो इससे इस हस्तकला की मांग फिर से बढ़ सकती है और रोजगार के नए अवसर पैदा हो सकते हैं.

बावन बूटी का महत्व: ‘बावन’ का मतलब है 52 और ‘बूटी’ का मतलब है मोटिफ्स. इस साड़ी में 6 गज के सादे कपड़े पर रेशम के धागे से हाथों से बावन बूटी डाली जाती है, जिसे तैयार करने में 10 से 15 दिन लगते हैं. इन साड़ियों में बौद्ध धर्म के प्रतीक चिन्ह जैसे कमल का फूल, त्रिशूल, धर्म का पहिया और शंख आदि उकेरे जाते हैं.

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कला का प्रतीक बावन बूटी: बावन बूटी साड़ी में उकेरे गए चिन्ह सिर्फ बौद्ध धर्म के प्रतीक नहीं होते, बल्कि भगवान बुद्ध की महानता को दर्शाने की कला के रूप में भी होते हैं. यह शिल्प अब भी 80 से 100 लोगों के परिवारों का जीवनयापन करता है, जो इस व्यवसाय से जुड़े हुए हैं.

स्थानीय जानकारियों का योगदान: स्थानीय जानकार प्रो. लक्ष्मीकांत बताते हैं कि बावन बूटी साड़ी का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है, जब इसे गया के तत्वा टोला में शुरू किया गया था. तब से इसकी डिमांड राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री तक बढ़ी, और यह खास डिज़ाइन चादर, शॉल और साड़ी के रूप में खास मेहमानों को तोहफे में दी जाती थी.

तैयार होती बिहार की बावन बूटी साड़ी (ETV Bharat)

रीति-रिवाजों से जुड़ी मान्यता: यह माना जाता है कि सतयुग में भगवान विष्णु का वामन अवतार 52 उंगलियों का था, और इस कारण से 52 बूटी शिल्प की शुरुआत हुई. त्रेतायुग में प्रभु राम ने सुग्रीव को 52 बूटी शिल्प में तैयार शॉल भेंट की थी.

कला के संरक्षक: उपेन्द्र महारथी, जिनका जन्म 1908 में ओडिशा के पुरी जिले में हुआ था, ने कोलकाता स्कूल ऑफ आर्ट्स से शिक्षा ली और बिहार को अपनी कर्मभूमि बनाया. वे एक बेहतरीन शिल्पकार और वास्तु शिल्पी थे. उन्होंने बिहार और जापान में कई महत्वपूर्ण डिज़ाइनों का निर्माण किया था, और कपिल देव प्रसाद के पास हमेशा अपनी कला के लिए डिजाइन बनवाने आते थे.

बावन बूटी सारी तैयार करता बुनकर (ETV Bharat)

GI टैग की दरकार: बावन बूटी साड़ी एक ऐसी कला है जिसे संरक्षण और सम्मान की आवश्यकता है. अगर सरकार इस कला को मान्यता देती है, तो इससे न सिर्फ इसके कारीगरों को आर्थिक लाभ होगा, बल्कि इस शानदार पारंपरिक कृति को नई पहचान भी मिलेगी.

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