हैदराबादः हर साल भारत सहित दुनिया भर में लाखों लोग डूबने से असमय मर जाते हैं. संयुक्त राष्ट्र के डेटा के अनुसार हर साल 236,000 लोग डूब जाते हैं. पीड़ित परिवारों और समुदायों पर डूबने के दुखद व गहन प्रभाव को उजागर करना आवश्यक है. साथ ही इसे रोकने के लिए जीवन रक्षक समाधान पेश करने का अवसर प्रदान करने की जरूरत है. इन सबों मुद्दों पर वैश्विक स्तर पर सामूहिक जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से अप्रैल 2021 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 25 जुलाई को विश्व डूबने से बचाव का दिवस मनाने के प्रस्ताव पर सहमति दे दी.
अनुमान है कि हर साल 236,000 लोग डूब जाते हैं, जिससे दुनिया भर में डूबना एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या बन गई है. 1-24 वर्ष की आयु के बच्चों और युवाओं के लिए डूबना वैश्विक स्तर पर मृत्यु के प्रमुख कारणों में से एक है. डूबना अनजाने में चोट लगने से होने वाली मृत्यु का तीसरा सबसे बड़ा कारण है, जो चोट से संबंधित सभी मौतों का 7 फीसदी है.
बता दें कि डूबने से होने वाली मौतों का वैश्विक बोझ सभी अर्थव्यवस्थाओं और क्षेत्रों में महसूस किया जाता है. निम्न और मध्यम आय वाले देशों में अनजाने में डूबने से होने वाली मौतों का 90 फीसदी से अधिक हिस्सा होता है. दुनिया में डूबने की आधी से अधिक घटनाएं पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र और दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में होती हैं. पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में डूबने से होने वाली मृत्यु दर सबसे अधिक है, और यह क्रमशः यूनाइटेड किंगडम या जर्मनी में डूबने से होने वाली मौतों की दरों से 27-32 गुना अधिक है.
डूबने से होने वाली मौतों को रोकने के लिए कुछ जरूरी उपायों पर कदम उठाना जरूरी है.
- पानी तक पहुंच को नियंत्रित करने वाली बाधाएं स्थापित किया जाए.
- छोटे बच्चों के लिए पानी से दूर सुरक्षित स्थान प्रदान करना जैसे कि सक्षम चाइल्डकेयर की व्यवस्था हो.
- तैराकी, जल सुरक्षा और सुरक्षित बचाव कौशल सिखाना.
- सुरक्षित बचाव और पुनर्जीवन में राहगीरों को प्रशिक्षित करना.
- सुरक्षित नौकायन, शिपिंग और नौका विनियमन स्थापित करना और लागू करना.
- बाढ़ जोखिम प्रबंधन में सुधार करना.
भारत में डूबने के मामले