नई दिल्ली:भले ही घर से काम करने से कर्मचारियों और कंपनियों को कई तरह के लाभ मिल रहे हों, लेकिन इसमें कुछ चुनौतियां भी हैं. भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) की एक रिपोर्ट में इस कार्य मॉडल के फायदे और नुकसान दोनों का खुलासा किया गया है. यह रिपोर्ट सीआईआई और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रबंधन अध्ययन संकाय (एफएमएस) द्वारा किए गए संयुक्त सर्वेक्षण और अध्ययन पर आधारित है.
सर्वेक्षण के निष्कर्ष कंपनियों में घर से कार्य (WFH) के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण विचारों को उजागर करते हैं. दूरस्थ कार्य (remote work) नियोक्ताओं (कंपनी) और कर्मचारियों दोनों को अल्पकालिक लाभ प्रदान करता है, जबकि दीर्घकालिक कमियों को जन्म दे सकता है, विशेष रूप से सामाजिक, भावनात्मक और मानव पूंजी के संदर्भ में. प्रभावी टीम-वर्क और समस्या-समाधान संगठन की सफलता के लिए महत्वपूर्ण हैं और एक मजबूत संस्कृति के बिना संगठन निरंतर सीखने और नवाचार से दूर रह सकते हैं.
रिपोर्ट में बताया गया है कि सर्वे में भाग लेने वाले लगभग एक तिहाई रेस्पॉन्डेंट्स ने कोविड महामारी से पहले रिमोट वर्क किया था, जबकि दो तिहाई रेस्पॉन्डेंट्स महामारी के बाद भी रिमोट या हाइब्रिड वर्क के तहत कार्य कर रहे हैं. शोध में संगठनों, नियोक्ताओं और कर्मचारियों के लिए रिमोट वर्क के लाभ और नुकसान दोनों पर प्रकाश डाला गया है.
फायदे और नुकसान
दूरस्थ कार्य का सकारात्मक पक्ष यह है कि इससे लागत की बड़ी बचत हुई है, जिसमें कर्मचारियों के आने-जाने का समय और लागत कम होना, साथ ही अधिक किफायती क्षेत्रों में रहने की क्षमता शामिल है. इसने मुआवजा संरचनाओं में कुछ समायोजन की अनुमति दी है. कंपनियों को कार्यालय के लिए किराये की लागत में बचत, क्लाइंट मीटिंग में कम खर्च और आंतरिक सहयोग से भी लाभ होता है. कर्मचारी आने-जाने का तनाव कम होना, उच्च ऊर्जा स्तर और काम और आराम के शेड्यूल को मैनेज करने का लचीलापन की रिपोर्ट करते हैं, जो विशेष रूप से परिवार की देखभाल के लिए फायदेमंद है. प्रोडक्टिविटी में भी मामूली वृद्धि हुई है.
हालांकि, दूरस्थ कार्य कई प्रकार की चुनौतियां भी पेश करता है. कर्मचारी आत्म-अनुशासन बनाए रखने, समर्पित कार्यस्थलों की कमी और काम को व्यक्तिगत जीवन से अलग करने में कठिनाई से जूझते हैं, जिससे तनाव बढ़ता है. कंपनियों के लिए संचार कम प्रभावी हो गया है, और दूरस्थ कार्य टीम-वर्क और संगठनात्मक संस्कृति में बाधा डाल सकता है. उपस्थिति की निगरानी जैसी पारंपरिक पर्यवेक्षण विधियां कम प्रभावी हो गई हैं, और कर्मचारी प्रोडक्टिविटी सुनिश्चित करने के लिए प्रदर्शन-आधारित निगरानी और विश्वास पर अधिक निर्भर है.