नई दिल्ली:कोविड-19 महामारी के मद्देनजर जब जापान वायरस की विशेषताओं के बारे में पर्याप्त जानकारी इकठ्ठी नहीं कर सके तो जापान के एक प्रमुख पब्लिक हेल्थ इंस्टीटियूशन ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ कॉलरा और एंट्रिक डिसिसीज इंफॉर्मेशन के साथ साझेदारी करने और जानकारी शेयर करने का विकल्प चुना है. ऐसे में सवाल है कि जापान ने इस विशेष भारतीय संस्थान को ही क्यों चुना? इससे भारत को क्या फायदा होगा?
जापानी अखबार योमीउरी शिंबुन की एक रिपोर्ट के अनुसार जापान का राष्ट्रीय संक्रामक रोग संस्थान (NIID) एक नेटवर्क स्थापित करने की योजना बना रहा है, जिसकी शुरुआत भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के कोलकाता स्थित भारत के राष्ट्रीय हैजा और आंत्र रोग संस्थान से होगी.
योमीउरी शिंबुन की रिपोर्ट में कहा गया है, 'कोरोना वायरस महामारी के दौरान संक्रमण राष्ट्रीय सीमाओं के पार फैल गया, जबकि देश वायरस की विशेषताओं के बारे में पर्याप्त रूप से जानकारी इकट्ठा करने में असमर्थ थे.' इसने एनआईआईडी को एक नेटवर्क बनाने के लिए प्रेरित किया. इसकी शुरुआत 2023 में शुरू हो गई थी. इसे 2026 की शुरुआत में लॉन्च किया जाएगा.
रिपोर्ट के मुताबिक, फिलहाल एनआईआईडी ICMR-NICED समेत तीन अन्य संस्थानों के सहयोग से संक्रामक रोगों की घटनाओं की जांच करेगा और वायरस और बैक्टीरिया जैसे बैक्टीरिया पर डेटा जमा करेगा. यह टेस्टिंग मैथड को विकसित करने और टेक्नोलॉजी में सुधार करने का भी प्रयास करेगा.
नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ इंफेक्शन डिजीज क्या है?
एनआईआईडी एक सरकारी रिसर्च इंस्टिट्यूट है, जो जापान में संक्रामक रोगों की निगरानी और उससे संबंधित रिसर्च करता है. यह स्वास्थ्य, लेबर और कल्याण मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र के तहत संचालित होता है और सार्वजनिक स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
NIID की स्थापना 1981 में संक्रामक रोगों से संबंधित कई मौजूदा रिसर्च संस्थानों के विलय के माध्यम से की गई थी. इसका मुख्यालय टोक्यो में है और इसकी प्राथमिक सुविधा शिंजुकु में स्थित है. यह संस्थान इंफेक्शन डिजिज रिसर्च का केंद्र है.
इंफेक्शन संबंधित रिसर्च करता है संस्थान
संस्थान उभरते रोगजनकों सहित अलग-अलग इंफेक्शन रोगों की रिसर्च करता है. इसमें वायरोलॉजी, बैक्टीरियोलॉजी और इम्यूनोलॉजी शामिल है. संस्थान के पास इनसे संबंधित प्रयोगशालाएं और रिसर्च ग्रुप हैं. रिसर्च के निष्कर्ष लोगों के इलाज और टीकों के विकास में योगदान करते हैं. एनआईआईडी ग्लोबल हेल्थ से जुड़े मुद्दों के समाधान के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ), रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी) और अन्य रिसर्च संस्थानो के साथ सहयोग करता है.
नेशनल इंस्टिटियूट ऑफ कॉलरा एंड एंट्रिक डिजिज क्या है?
इसे मूल रूप से 1962 में हैजा अनुसंधान केंद्र के रूप में स्थापित किया गया था. हालांकि, 1979 में इसका नाम बदलकर एनआईसीईडी कर दिया गया. यह रिसर्च का काम करता है और एंट्रिक रोगों और एचआईवी/एड्स से संबंधित रोकथाम, उपचार और नियंत्रण करने की रणनीति विकसित करता है. NICED का मुख्यालय कोलकाता में स्थित है. WHO ने 1980 में इस संस्थान को डायरिया रोगों पर रिसर्च और ट्रेनिंग के लिए WHO सहयोगात्मक केंद्र के रूप में मान्यता दी थी.
NICED अलग-अलग तकह के डायरिया रोगों के साथ-साथ टाइफाइड बुखार, हेपेटाइटिस और एचआईवी/एड्स से संबंधित बीमारियों पर रिसर्च करता है. इस संस्थान का उद्देश्य इन बीमारियों पर बुनियादी और व्यावहारिक दोनों पहलुओं पर शोध करना है. संस्थान डायरिया संबंधी बीमारियों को बेहतर ढंग से मैनेज करने, उनकी रोकथाम और एटियोलॉजिकल एजेंटों के त्वरित और सही निदान के लिए ट्रेनिंग देता है.