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नेपाल की विदेश मंत्री की 5 दिवसीय नई दिल्ली यात्रा से क्या उम्मीद की जा सकती है? - Dr Arzu Rana Deuba

Nepal Foreign Minister Visit India: नेपाल की विदेश मंत्री डॉ आरजू राणा देउबा 18 से 22 अगस्त तक भारत की आधिकारिक यात्रा पर हैं. उनकी यात्रा से दोनों देशों के आपसी संबंध मजबूत होने की उम्मीद है.

नेपाल की विदेश मंत्री की 5 दिवसीय नई दिल्ली यात्रा
नेपाल की विदेश मंत्री की 5 दिवसीय नई दिल्ली यात्रा (ETV Bharat)

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Aug 19, 2024, 4:45 PM IST

नई दिल्ली: इस महीने भारत का कूटनीतिक कार्यक्रम बहुत व्यस्त है.कई विदेशी प्रतिनिधियों की यात्रा के बीच नेपाल की विदेश मंत्री डॉ आरजू राणा देउबा नई दिल्ली में हैं. इसी क्रम में उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी से मुलाकात की. इसको लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया, "नेपाल की विदेश मंत्री आरज़ू राणा देउबा का स्वागत करते हुए प्रसन्नता हो रही है. भारत और नेपाल के बीच घनिष्ठ सभ्यतागत संबंध और प्रगतिशील और बहुआयामी साझेदारी है. हमारी विकास साझेदारी में निरंतर गति की आशा है." वह विदेश मंत्री एस जयशंकर के निमंत्रण पर 18 से 22 अगस्त तक भारत की आधिकारिक यात्रा पर हैं.

सत्ता संभालने के बाद से यह उनकी पहली भारत यात्रा है. उनकी यह यात्रा विदेश सचिव विक्रम मिस्री की काठमांडू यात्रा के एक हफ्ते बाद हो रही है. विदेश मंत्री की यह यात्रा भारत और नेपाल के बीच नियमित उच्च स्तरीय आदान-प्रदान की परंपरा के अनुरूप है. नेपाल भारत की 'नेबर फर्स्ट पॉलिसी' में प्राथमिकता वाला साझेदार है.

द्विपक्षीय सहयोग में प्रगति पर चर्चा
इस यात्रा से दोनों पक्षों को द्विपक्षीय सहयोग में प्रगति पर चर्चा करने और समीक्षा करने का अवसर मिलेगा. साथ ही दोनों देशों के संबंधों को और आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी. नेपाली विदेश मंत्री और विदेश मंत्री जयशंकर के बीच होने वाली बैठक भारत और नेपाल के बीच द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाने और विस्तारित करने के तरीकों की खोज पर केंद्रित होगी.

इस संबंध में विदेश मंत्री जयशंकर ने माइक्रोब्लॉगिंग साइट पर एक पोस्ट में कहा, "नेपाल की आरजू देउबा का विदेश मंत्री के रूप में पहली बार भारत आने पर स्वागत है. आपसे बातचीत का बेसब्री से इंतज़ार है."

वहीं, भारत के पूर्व राजदूत अनिल त्रिगुणायत ने कहा, "भारत और नेपाल के बीच सभ्यतागत संबंध राष्ट्रीय हितों से प्रेरित हैं, इसलिए मुझे नहीं लगता कि उनकी योजनाओं में भारत के महत्व में कोई महत्वपूर्ण बदलाव या कमी आएगी.

यात्रा पर टिप्पणी करते हुए विशेषज्ञ ने कहा कि ये निरंतर बातचीत हैं और नेपाल में बड़ी संख्या में विकास परियोजनाओं के लिए सभी स्तरों पर लगातार और समय पर परामर्श की आवश्यकता है. भारतीय विदेश सचिव हाल ही में वहां गए थे और विदेश मंत्री निकट भविष्य में अपने प्रधानमंत्री की भारत यात्रा के परिणामों और यात्रा पर चर्चा कर सकते हैं.

जब उनसे क्षेत्र में चीन के प्रभाव के संदर्भ में भारत-नेपाल संबंधों की प्रकृति के बारे में पूछा गया, तो त्रिगुणायत ने कहा, "जहां तक​चीन का सवाल है, वह हर भूगोल में हमारे लिए चुनौती होगा, लेकिन वुल्फ वॉरियर और ऋण कूटनीति के खिलाफ सौम्य दृष्टिकोण को देखते हुए मुझे विश्वास है कि हमारे पड़ोस के मित्र यह समझ लेंगे कि उनके लिए क्या बेहतर है और जमीनी स्तर पर तथ्य सबके सामने हैं."

भारत और नेपाल के बीच गहरे संबंध
गौरतलब है कि पड़ोसी देश में राजनीतिक गतिशीलता में बदलाव के बावजूद, नेपाल के प्रति भारत की विदेश नीति हमेशा अपरिवर्तित रही है. भारत और नेपाल के बीच गहरे ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक संबंध हैं, जो उनके रणनीतिक संबंधों को काफी महत्वपूर्ण बनाते हैं. दोनों देश साझा सांस्कृतिक त्योहारों, परंपराओं और धार्मिक प्रथाओं सहित मजबूत ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक संबंध साझा करते हैं.

लैंड लॉक है नेपाल
नेपाल चारों ओर से भूमि से घिरा हुआ है और भारत और चीन के बीच स्थित है. उसकी भौगोलिक स्थिति इसे भारत की सुरक्षा और क्षेत्रीय प्रभाव के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बनाती है. भारत चीन से संभावित सुरक्षा खतरों को लेकर चिंतित है. नेपाल की चीन से निकटता और हिमालय में इसकी रणनीतिक स्थिति इसकी राजनीतिक स्थिरता और संरेखण को भारत के लिए महत्वपूर्ण बनाती है.

भारत नेपाल का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और विदेशी निवेश का एक प्रमुख स्रोत है. दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिए कई व्यापार समझौते हैं. भारत नेपाल को बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य, शिक्षा और आपदा राहत सहित विभिन्न क्षेत्रों में पर्याप्त सहायता प्रदान करता है.

दोनों देशों के बीच व्यापार, ट्रांजिट और विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग से जुड़े कई समझौते हैं. 1950 में हस्ताक्षरित शांति और मैत्री संधि उनके द्विपक्षीय संबंधों की आधारशिला है. हालांकि, दोनों देशों के बीच मजबूत रणनीतिक साझेदारी है, लेकिन सीमा विवाद जैसे कई बार विवाद भी होते हैं. सरकारें अक्सर इन विवादों को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाने के लिए बातचीत करती हैं. भारत और नेपाल के बीच सैन्य प्रशिक्षण और संयुक्त अभ्यास सहित मजबूत रक्षा संबंध हैं.

भारतीय सेना और नेपाली सेना अक्सर विभिन्न सुरक्षा मुद्दों पर सहयोग करती हैं. दोनों देश आतंकवाद से निपटने और सीमा प्रबंधन सहित क्षेत्रीय सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए मिलकर काम करते हैं. हाल के वर्षों में नेपाल के चीन के साथ संबंध मजबूत हुए हैं, जिससे भारत के साथ कुछ तनाव पैदा हुआ है.

हालांकि, भारत और नेपाल दोनों ही क्षेत्र में स्थिरता और सहयोग बनाए रखने के लिए इन संबंधों को संतुलित करने के लिए काम कर रहे हैं. भारत और नेपाल के बीच रणनीतिक संबंध बहुआयामी हैं, जिसमें ऐतिहासिक संबंध, आर्थिक सहयोग और सुरक्षा संबंधी विचार शामिल हैं. कभी-कभार आने वाली चुनौतियों के बावजूद, देश आम तौर पर एक मजबूत साझेदारी बनाए रखते हैं और क्षेत्रीय मुद्दों को हल करने और अपने आपसी हितों को बढ़ाने के लिए मिलकर काम करते हैं.

भारत-नेपाल सीमा मुद्दा जटिल
भारत-नेपाल सीमा मुद्दा एक जटिल और लंबे समय से चला आ रहा मामला है, जिसमें ऐतिहासिक, राजनीतिक और भौगोलिक कारक शामिल हैं. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और नेपाल साम्राज्य के बीच हस्ताक्षरित इस संधि ने आधुनिक सीमाओं की शुरुआत को चिह्नित किया. इसने ब्रिटिश भारत और नेपाल के बीच सीमा को परिभाषित किया लेकिन कुछ क्षेत्रों को अस्पष्ट छोड़ दिया.

कालापानी, लिम्पियाधुरा और लिपुलेख-ये क्षेत्र विवादित रहे हैं, खासकर इसलिए क्योंकि इनके स्थान को लेकर विवाद रहा है. ये नेपाल के उत्तर-पश्चिमी हिस्से में स्थित हैं, जहां भारत और चीन की सीमाएं मिलती हैं. इस विवाद को तब प्रमुखता मिली जब भारत ने मई 2020 में लिपुलेख दर्रे तक एक नई सड़क का उद्घाटन किया. नेपाल ने इस पर आपत्ति जताते हुए दावा किया कि सड़क उस क्षेत्र से होकर गुजरती है, जिसे वह अपना मानता है. इससे कूटनीतिक गतिरोध पैदा हुआ और तनाव बढ़ गया.

सड़क उद्घाटन के रेस्पांस में नेपाल ने मई 2020 में अपने राजनीतिक मैप को अपडेट किया, जिसमें कालापानी, लिम्पियाधुरा और लिपुलेख को अपने क्षेत्र के हिस्से के रूप में शामिल किया गया. भारत ने इस नए मैप को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि ये क्षेत्र उसके हिस्से हैं.

दोनों देशों ने इस मुद्दे को सुलझाने के लिए कई दौर की चर्चाएं की हैं. विभिन्न उच्च-स्तरीय बैठकों और कूटनीतिक चैनलों का उपयोग किया गया है, लेकिन अभी तक कोई निश्चित समाधान नहीं निकला है. ऐतिहासिक संधियों और मानचित्रों की अलग-अलग व्याख्याएं हैं, जिससे सीमा के सटीक स्थान पर परस्पर विरोधी दावे सामने आते हैं.

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