नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को 4-3 के बहुमत से दिए गए फैसले में अजीज बाशा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में अपने 1967 के फैसले को पलट दिया, जिसमें पहले अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) को अल्पसंख्यक संस्थान के तौर पर मान्यता देने से इनकार कर दिया गया था. अदालत ने अब तीन जजों की बेंच को निर्देश दिया है कि वह इस फैसले में स्थापित नए सिद्धांतों को लागू करते हुए AMU के अल्पसंख्यक दर्जे का फिर से मूल्यांकन करे.
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली सात जजों की संविधान पीठ ने जस्टिस चंद्रचूड़, संजीव खन्ना, जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा द्वारा लिखे गए बहुमत के मत के साथ फैसला सुनाया. वहीं, जस्टिस सूर्यकांत, दीपांकर दत्ता और सतीश चंद्र शर्मा ने इस फैसले से असहमति जताई.
क्या है माइनॉरिटी इंस्टीट्यूट?
अल्पसंख्यक संस्थान एक ऐजूकेशन इंस्टीट्यूट होता है, जिसकी स्थापना या रखरखाव अल्पसंख्यक समुदाय के व्यक्तियों या समूहों करते हैं. इन समुदायों के शैक्षिक अधिकारों को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग अधिनियम 2004 के तहत सुरक्षित रखा गया है.
भारत में अल्पसंख्यक संस्थानों को मिलने वाले फायदे
भारत में अल्पसंख्यक संस्थानों संविधान के अनुच्छेद 30(1) के तहत संरक्षण मिलता है. इसके अलावा माइनॉरिटी इंस्टीट्यूट को शिक्षा के अधिकार (RTE) अधिनियम के अनुसार वंचित समूहों के लिए सीट आरक्षण निर्धारित करने का अधिकार मिलता है. इसके अलावा उन्हें RTE दिशा-निर्देशों के तहत सीटें रिजर्व करने की आवश्यकता नहीं होती है.