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वायनाड या रायबरेली! 10 दिन के अंदर राहुल गांधी लेंगे बड़ा फैसला - Rahul Gandhi

Rahul Gandhi: संविधान और संसदीय विशेषज्ञों का कहना है कि राहुल गांधी ज्यादा लंबे समय तक रायबरेली और वायनाड दोनों सीट अपने पास नहीं रख सकते. उन्हें जल्द ही एक सीट छोड़नी ही होगी.

Rahul Gandhi
राहुल गांधी (ANI)

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jun 8, 2024, 3:47 PM IST

हैदराबाद: लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश की रायबरेली और केरल की वायनाड सीट से चुनाव लड़ा और दोनों की सीट पर जीत दर्ज की. ऐसे में राहुल गांधी कौन सी सीट बरकरार रखेंगे. इसको लेकर कांग्रेस कार्यकर्ता ही नहीं, बल्कि राजनीतिक विरोधी भी बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं.

संविधान और संसदीय विशेषज्ञों का कहना है कि वह ज्यादा लंबे समय तक दोनों सीट अपने पास नहीं रख सकते. उन्हें जल्द ही एक सीट छोड़नी होगी. राहुल गांधी इन दोनों निर्वाचन क्षेत्रों से सांसद हैं, लेकिन भारतीय संविधान के अनुसार कोई भी व्यक्ति एक साथ दो निर्वाचन क्षेत्रों से सांसद नहीं रह सकता.

14 दिन में खाली करनी होती है सीट
इस संबंध में पूर्व लोकसभा सचिव पीडीटी अचारी ने ईटीवी भारत को बताया, 'उन्हें (राहुल गांधी) तय समय के भीतर दो में से एक सीट खाली करनी होगी. संविधान के अनुसार, इसके लिए 14 दिन की समय सीमा तय है. चूंकि, राहुल गांधी 4 जून को निर्वाचित हुए थे, इसलिए उन्हें 18 जून तक किसी भी सांसद पद से इस्तीफा देना होगा. चुनाव आयोग नए सांसद की तलाश के लिए छह महीने के भीतर खाली सीट पर उपचुनाव कराएगा.'

रविवार को शपथ ग्रहण
उन्होंने बताया कि 18वीं लोकसभा के चुनाव के बाद रविवार को नई सरकार शपथ लेगी. लोकसभा की बैठक बुलाने की डेट तय होने के बाद लोकसभा सचिवालय से सभी निर्वाचित सांसदों को अधिसूचना दी जाएगी. प्रोटेम स्पीकर की अध्यक्षता में सदन की बैठक शुरू होने पर सबसे पहले सदस्यों को शपथ दिलाई जाती है. उस समय तक निर्वाचन क्षेत्रों का निर्धारण करके लोकसभा सचिवालय को सूचित करना होगा.

लोकसभा अध्यक्ष की भूमिका अहम
पीडीटी अचारी ने कहा कि 18वीं लोकसभा में अध्यक्ष की भूमिका बहुत बड़ी है, क्योंकि वहां एक से अधिक सांसदों वाली कई छोटी पार्टियां हैं और सरकार के पास बहुत कम बहुमत है. दो तिहाई सदस्यों के समर्थन से राजनीतिक दलों के टूटने और दूसरे दलों में विलय की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता, लेकिन अध्यक्ष संबंधित राजनीतिक दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष की मंजूरी के बिना ऐसे विलय को मंजूरी नहीं दे सकते.

उन्होंने बताया कि संबंधित राजनीतिक दल के अध्यक्ष की ओर से पत्र आने पर ही ऐसी स्थिति में अलग हुए सदस्यों को अयोग्यता से छूट मिल सकती है.

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