बेलगावी (कर्नाटक): जिले में सूखे के कारण हर जगह पीने के पानी की सख्त जरूरत है. हालांकि, केवल इन चार कस्बों में ही झीलें और कुएं पानी से लबालब भरे हुए हैं. इन सबका कारण है एक जल पुरुष.
न केवल बेलगावी तालुक के बम्बरगा गांव की झील, बल्कि यहां के कट्टनभवी, निंग्यानत्ती और गुरमट्टी गांवों की झील और कुएं भी पानी से भर गए हैं. यहां इतना पानी और हरा-भरा वातावरण होने का कारण पर्यावरणविद् शिवाजी कागनीकर का लिया गया फैसला है.
पहले यहां के लोग पानी की कमी से जूझ रहे थे. इसे खत्म करने के लिए शिवाजी आगे आए. महाराष्ट्र में अपने गृह नगर रालेगांव सिद्धि में अनुभवी सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे द्वारा की गई जलक्रांति के साक्षी रहे शिवाजी ने इसे यहां भी मूर्त रूप दिया है.
वाटरशेड विकास परियोजना के तहत जर्मनी के रूडोल्फ द्वारा दिए गए कुल 30 लाख रुपये के अनुदान से जनजागरण संस्था और ग्रीन सेवियर्स के माध्यम से ग्रामीणों के सहयोग से पेड़ लगाए गए हैं. और कट्टानाबावी में 2, निंग्यानत्ती में 3, इद्दिलाहोंडा और गुरमत्ती गांवों में एक-एक झील का निर्माण किया गया है.
2 लाख से ज्यादा पौधे लगा चुके :झीलों, कुओं और खाइयों का पुनर्वास किया गया है. नहर से कुएं तक और कुएं से नदी तक पानी पहुंचाया जाता है. पहाड़ी से ढलान वाले क्षेत्र में बहने वाले पानी को एकत्र करने के लिए समानांतर नालियों का निर्माण किया गया. नालों के किनारे पौधे लगाए गए हैं. इससे इस हिस्से में भूजल स्तर बढ़ गया है. गौरतलब है कि शिवाजी अब तक 2 लाख से ज्यादा पौधे लगा चुके हैं.
'पृथ्वी की जल कोशिकाएं मनुष्य की शिराओं के समान':शिवाजी कागनीकर ने जलक्रांति के बारे में बताया, 'हमने पहाड़ी पर दस फीट की दूरी पर समानांतर नालियां बनाईं. तीन साल तक बारिश का पानी उन नालों में जाने देने के बाद, हमने एक झील बनाई. पानी नालों में रिसकर झील में मिल गया. यह मानव शरीर की नसों की तरह है. इसी प्रकार भूमि में जल कोशिकाएं होती हैं. तो, उन कोशिकाओं के माध्यम से पानी झील और कुएं में बहता था. इसके बाद इन चारों गांवों में लोगों द्वारा खोदे गए कुओं और बोरवेलों से भारी मात्रा में पानी मिलने लगा और पानी की समस्या दूर हो गई.'