भू-संसाधन और भू-खतरे के बीच वाडिया इंस्टीट्यूट ने की रिसर्च (VIDEO- ETV Bharat) देहरादून: उत्तराखंड की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते उत्तराखंड राज्य सीमित आर्थिक संसाधनों में सिमटा हुआ है, लेकिन प्रदेश में कई तरह के संसाधन उपलब्ध हैं. जिसमें बर्फ और ग्लेशियर, झरने और नदी, बहुमूल्य खनिज और अयस्क, भूतापीय, पवन और धूप से ऊर्जा के संसाधन, थ्रस्ट-फोल्ड बेल्ट में हाइड्रोकार्बन, औषधीय पौधे और जड़ी-बूटियां, प्राकृतिक सौंदर्य और पर्यटक आकर्षण शामिल हैं. इनका सामाजिक अर्थव्यवस्था और कृषि विकास के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. दरअसल, वाडिया के वैज्ञानिकों ने हिमालय में भू-संसाधन और भू-खतरे के बीच अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी के लिए आगे का रास्ता निकालने को लेकर रिसर्च की है.
सस्टेनेबिलिटी के लिए इन महत्वपूर्ण बिंदुओं पर ध्यान देने की जरूरत (photo- ETV Bharat) ग्लेशियर, बर्फ और प्रदेश की नदियां करोड़ों लोगों की लाइफ लाइन:प्रदेश के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में मौजूद ग्लेशियर, बर्फ और प्रदेश की नदियां सिंचाई, पेयजल, बिजली, घरेलू इस्तेमाल और औद्योगिक जरूरतों को पूरा करने के साथ ही करोड़ों लोगों की लाइफ लाइन है. इसी तरह सड़क, पुल, सुरंग और रोपवे बनाने, भूतापीय या हाइब्रिड ऊर्जा उपकरणों का निर्माण करने, कृषि और पशुधन फार्मों को विकसित करने और उपलब्ध स्थानीय संसाधनों का उपयोग करके छोटे स्तर पर उद्योगों का विस्तार करने के मामले में निवेश और विकास के लिए बेहतरीन विकल्प साबित हो सकता है. जिससे हिमालई क्षेत्रों और आसपास के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की आकांक्षाओं को पूरा कर सकते हैं. हालांकि, हिमालय में तमाम तरह के भू-खतरे भी हैं, जो पहाड़ी राज्यों में विकास की गति को बाधित करते रहे हैं. खासकर वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन एक गंभीर समस्या बनी हुई है. ऐसे में सबसे बड़ी चुनौती यही है कि सामाजिक-अर्थव्यवस्था के लिए संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल करने और हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा के बीच एक बेहतर तालमेल कैसे बनाया जाए. इससे पार पाने और पहाड़ी क्षेत्रों में सतत विकास के लिए महत्वपूर्ण है कि विज्ञान का बेहतर इस्तेमाल किया जाए.
जलवायु संबंधित घटनाओं के चलते हिमालयी क्षेत्रों में तनाव:हिमालय की उपरी सतह पर हो रही हलचल (Subsurface Process) जैसे प्लेट घर्षण (Plate Convergence), विरूपण और उत्खनन (Deformation and Exhumation), टेक्टोनिक्स और नियो-टेक्टोनिक्स (Tectonics and Neo-Tectonics) के कारण भूकंप के कारण भूमि क्षरण (Land Degradation) होता है. मानवजनित गतिविधियों और जलवायु संबंधित घटनाओं के चलते हिमालयी क्षेत्रों में तनाव और अधिक बढ़ जाता है. इसके अलावा, ग्लेशियर लेक और भूस्खलन लेक की वजह से बाढ़ का खतरा भी बढ़ जाता है.
भूविज्ञान प्राकृतिक घटनाओं को समझने में महत्वपूर्ण:ऐसे में भूविज्ञान (Geosciences) हिमालई क्षेत्रों में हो रहे जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक घटनाओं, मानवजनित भार (Anthropogenic Load), परिदृश्यों और भू-आकृति विज्ञान (Landscapes and Geomorphology) में बदलाव से जुड़ी प्रक्रिया को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. दरअसल, भूविज्ञान के जरिए संपत्तियों और संरचनाओं की सुरक्षा, मानव और पशु क्षति की हानि को रोकने, किसी भी परियोजना की सुरक्षा और स्थायित्व (Safety and Durability) की जानकारी, पर्यावरण प्रभाव का आकलन (Environment Impact Assessment) करने, जलवायु अनुकूलन निर्माण करने और सतत विकास के लिए आपदा न्यूनीकरण करने में महत्वपूर्ण है.
जोशीमठके लिए भूस्खलन संभावित मैप किया जा सकता है तैयार:जोशीमठ, नैनीताल और मसूरी शहर जैसे क्षेत्रों का तमाम पहलुओं जैसे ढलान, ढाल, ऊंचाई, लिथोलॉजी, चट्टान की मजबूती, संरचनाओं, भू-आकृति विज्ञान, वन आवरण, निर्मित क्षेत्र के आधार पर भूस्खलन संभावित मैप (Landslide Risk Map) को तैयार किया जा सकता है. खासकर जिन जगहों पर मानवीय गतिविधियां बढ़ी हैं. ऐसे क्षेत्रों की भूमि-उपयोग मैप को ग्रीन कॉरिडोर या स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित करने के लिए परिवर्तित किया जा सकता है. इसके अलावा, वर्षा गेज, पीजोमीटर, इनक्लिनोमीटर, एक्सटेन्सोमीटर, इनएसएआर और अन्य सर्वेक्षण सुविधाओं जैसे वेब-आधारित सेंसर स्थापित करके, ढलान की अस्थिरता को वर्षा सीमा (Rainfall Threshold) के साथ जोड़कर भूस्खलन की चेतावनी दे सकते हैं.
आर्थिक स्थिरता बढ़ाने और पारिस्थितिकी के लिए इस दिशा में काम करने की है जरूरत
- रिमोट सेंसिंग और ग्राउंड आधारित अवलोकन के जरिए सबसे अधिक संवेदनशील, कमजोर और जोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान की जा सकती है.
- विशिष्ट अत्याधुनिक और वेब-आधारित सेंसर (specific state of the art and web based sensors) का इस्तेमाल करके संवेदनशील क्षेत्रों की निगरानी कर सकते हैं.
- एआई के जरिए प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (Early Warning Systems) को डेवलप किया जा सकता है.
- स्कूलों और कॉलेज के पाठ्यक्रम में आपदाओं के कारणों, नतीजों और उनके प्रबंधन को शामिल किया जाना चाहिए.
- चुनौतियों से निपटने के लिए कार्यक्षेत्र और अवसर पर ध्यान देना.
- पर्वत विशिष्ट नगर नियोजन और भवन कोड (mountain specific town planning and building codes) का इंप्लीमेंटेशन करने की जरूरत
- पारिस्थितिकी और अर्थव्यवस्था के लिए आधुनिक ज्ञान के साथ प्रकृति आधारित समाधान और पारंपरिक ज्ञान का इस्तेमाल करना
- अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी के लिए लोगों की भूमिका को तय करना चाहिए, जिसके तहत लोगों को क्या करना है और क्या नहीं करना है.
- लोगों की भूमिका को परिभाषित करना कि क्या करना है और क्या नहीं करना है और समग्र निर्णय लेने के लिए सभी स्तरों पर वैज्ञानिक ज्ञान और अन्य जानकारी का प्रसार करना.
- चट्टानों को गिरने से रोकने के लिए रिटेनिंग दीवारों का निर्माण और तार जाल का इस्तेमाल पर जोर देना
- ओवरबर्डन तनाव को वितरित करने के लिए एक व्यावसायिक शहर में बहुमंजिला इमारतों की बजाय सीमित मंजिलों की संरचनाओं के साथ उपग्रह शहरों का विकास.
- पहाड़ी क्षेत्र में किसी भी निर्माण जैसे सड़क या सुरंग निर्माण के लिए टो-कटिंग के दौरान सबसे पहले ढलान की स्थिरता का आकलन करना
- मलबे का तत्काल निस्तारण किया जाए, ताकि उन मलबे से टेंपरेरी बांध के निर्माण से बचा जा सकता है.
- अत्यधिक संवेदनशील क्षेत्रों में या उसके नजदीक भारी संरचनाओं और मानवजनित गतिविधियों पर लगाम लगाई जाए.
- संवेदनशील क्षेत्रों में हल्के वजन की निर्माण सामग्री का उपयोग.
- आपदा-रोधी संरचनाओं को अपनाए और पुरानी इमारतों का रेट्रोफिटिंग करने.
- तमाम पैरामीटर्स पर भार वहन क्षमता (Load bearing capacity) का समय-समय पर आकलन करना.
- आपदा दिवस मनाने के दौरान मॉक-ड्रिल और ऑब्जर्वेशन के माध्यम से प्रैक्टिस की जाए.
- क्लाइमेट चेंज न्यूनीकरण के लिए हरित ऊर्जा का उपयोग बढ़ाने और पर्यावरण संरक्षण के लिए 'प्लास्टिक को ना' कहने के प्रति लोगों को जागरूक करना
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