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सुप्रीम कोर्ट ने महिला सरपंच को हटाने का आदेश रद्द किया, जानें बेंच ने क्या कहा - Supreme Court on Sarpanch Removal - SUPREME COURT ON SARPANCH REMOVAL

अपीलकर्ता मनीषा रवींद्र पानपाटिल फरवरी, 2021 में सरपंच चुनी गई थीं. उन्हें जिला कलेक्टर ने इस आरोप पर अयोग्य घोषित कर दिया था.

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सुप्रीम कोर्ट (ANI)

By Sumit Saxena

Published : Oct 5, 2024, 8:16 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने पंचायत में निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों को लापरवाही के कारण हटाए जाने को लेकर चिंता जताई है. कोर्ट का कहना है कि, एक तरफ देश के सभी इलाकों में लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण के प्रगतिशील लक्ष्य को साकार करने का प्रयास हो रहा है वहीं इस तरह के मामले इन प्रयासों को धूमिल करता है.

नासिक में एक महिला सरपंच की अयोग्यता को दरकिनार करते हुए, पीठ ने कहा कि संबंधित अधिकारियों को खुद को संवेदनशील बनाने और एक अधिक अनुकूल माहौल बनाने की दिशा में काम करने की आवश्यकता है, जहां अपीलकर्ता जैसी महिलाएं ग्राम पंचायत की सरपंच के रूप में अपनी सेवाएं देकर अपनी योग्यता साबित कर सकें.

जस्टिस सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की बेंच ने कहा कि, यह हमें एक क्लासिक मामला लगता है, जहां गांव के निवासी इस तथ्य को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं कि अपीलकर्ता, एक महिला होने के बावजूद, उनके गांव के सरपंच के पद पर चुनी गई थी. 27 सितंबर को पारित आदेश में पीठ ने कहा, "वे शायद इस वास्तविकता को स्वीकार करने में असमर्थ थे कि एक महिला सरपंच उनकी ओर से कानूनी तौर पर निर्णय लेगी और उन्हें उसके निर्देशों का पालन करना होगा."

पीठ ने कहा कि यह और भी अधिक चिंताजनक है, जब संबंधित प्रतिनिधि एक महिला है और आरक्षण कोटे में चुनी गई है, जिससे प्रशासनिक कामकाज के सभी स्तरों पर पक्षपातपूर्ण व्यवहार का एक व्यवस्थित पैटर्न दिखाई देता है. पीठ ने जोर देकर कहा कि, यह परिदृश्य तब और भी गंभीर हो जाता है जब देश सार्वजनिक कार्यालयों और सबसे महत्वपूर्ण रूप से निर्वाचित निकायों में पर्याप्त महिला प्रतिनिधियों सहित सभी क्षेत्रों में लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण के प्रगतिशील लक्ष्य को साकार करने का प्रयास कर रहा है. बेंच ने कहा "जमीनी स्तर पर ऐसे उदाहरण हमारे द्वारा हासिल की गई किसी भी प्रगति पर भारी छाया डालते हैं."

पीठ ने कहा, "हम केवल इतना दोहराना चाहते हैं कि निर्वाचित जनप्रतिनिधि को हटाने के मामले को इतना हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए, खासकर जब यह ग्रामीण क्षेत्रों से संबंधित महिलाओं से संबंधित हो. यह स्वीकार किया जाना चाहिए कि ये महिलाएं जो ऐसे सार्वजनिक कार्यालयों पर कब्जा करने में सफल होती हैं, वे काफी संघर्ष के बाद ही ऐसा करती हैं."

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, यह स्पष्ट रूप से स्पष्ट है कि ये प्राथमिक प्रेरणाएं थीं, जिनके कारण निजी प्रतिवादियों ने अपीलकर्ता को उसके विधिवत निर्वाचित पद से हटाने की दिशा में अपने सुनियोजित प्रयास शुरू किए. पीठ ने कहा, "अपीलकर्ता की ओर से पेशेवर कदाचार का कोई ऐसा उदाहरण नहीं मिलने पर, जिस पर वे आरोप लगा सकें, निजी प्रतिवादियों ने इसके बजाय अपीलकर्ता पर किसी भी तरह से आक्षेप लगाने के मिशन पर काम करना शुरू कर दिया. यह पहल उनके द्वारा उसे सार्वजनिक पद से हटाने के इरादे से की गई थी."

अपीलकर्ता मनीषा रवींद्र पानपाटिल फरवरी, 2021 में सरपंच चुनी गई थीं. उन्हें जिला कलेक्टर ने इस आरोप पर अयोग्य घोषित कर दिया था कि वह अपनी सास के साथ सरकारी जमीन पर बने घर में रह रही थीं. संभागीय आयुक्त ने आदेश को बरकरार रखा और उनकी याचिका को हाई कोर्ट ने भी खारिज कर दिया. अपीलकर्ता ने उस विशेष आवास में रहने से इनकार किया. अपीलकर्ता ने कहा कि वह अपने पति और बच्चों के साथ किराए के मकान में अलग रहती है और संबंधित आवास इतनी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है कि उसमें रहना संभव नहीं है.

पीठ ने कहा कि रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे पता चले कि अपीलकर्ता के परिवार द्वारा सरकारी भूमि पर अतिक्रमण करने की कोई आपत्ति उसके नामांकन पत्र दाखिल करते समय कभी उठाई गई हो.

पीठ ने कहा कि यद्यपि निजी प्रतिवादियों ने अपीलकर्ता को उसके पद से बेदखल करने के लिए तिनके का सहारा लिया, लेकिन विभिन्न स्तरों पर सरकारी अधिकारियों द्वारा पारित यांत्रिक और संक्षिप्त आदेशों से शायद उनके कारण को सहायता मिली. पीठ ने कहा, "ये आदेश तथ्य-खोज अभ्यास करने की दिशा में कोई प्रयास किए बिना, उदासीन तरीके से पारित किए गए थे, ताकि यह पुष्टि की जा सके कि निजी प्रतिवादियों द्वारा लगाए गए आरोप पर्याप्त रूप से सिद्ध हुए हैं या नहीं."

पीठ ने कहा, "हमारे मन में इस बात को लेकर कोई संदेह नहीं है कि निजी प्रतिवादियों ने भेदभावपूर्ण तरीके से काम किया होगा, लेकिन इससे भी अधिक चिंताजनक बात यह है कि सरकारी अधिकारियों ने एक निर्वाचित प्रतिनिधि को सरसरी तौर पर हटाने में लापरवाही बरती है." पीठ ने कहा कि, उसे निजी प्रतिवादियों के उन आरोपों को पुष्ट करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई विश्वसनीय और पुख्ता सामग्री नहीं दिखती है, जिसमें अपीलकर्ता द्वारा सरपंच के रूप में अपने चुनाव से पहले या बाद में सरकारी भूमि पर अतिक्रमण करने का आरोप लगाया गया है.

पीठ ने उसकी अपील स्वीकार करते हुए कहा, "हमारे विचार से, आरोपों की प्रकृति और अपीलकर्ता को दी गई परिणामी सजा, यानी उसे सरपंच के पद से हटाना, अत्यधिक अनुपयुक्त है." इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट द्वारा पारित 3 अगस्त 2023 के विवादित आदेश को रद्द कर दिया. साथ ही कोर्ट ने कहा कि, अपीलकर्ता, जिसके पक्ष में पहले ही स्थगन दिया जा चुका है, को अपना काम जारी रखने और अपना काम करने की अनुमति दी जाएगी.

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