देहरादून: उत्तराखंड में किसानों की आय को बढ़ाने के लिए कृषि विभाग कई योजनाओं पर काम कर रहा है. हालांकि उत्तराखंड की भागौलिक परिस्थितियों इसमें बड़ी चुनौती बन रही है. फिर भी कृषि विभाग एरोमेटिक प्लांट्स के जरिए ऐसे उत्पादों पर फोकस कर रहा है, जो आने वाले समय में किसानों के लिए वरदान साबित हो सकते हैं. इसी में एक पहाड़ का पारंपरिक उत्पाद टिमरू है.
उत्तराखंड के पारंपरिक टिमरू में नेपाल आगे: पहाड़ में पारंपरिक रूप से पाया जाने वाला टिमरू का पौधा उत्तराखंड में तो पहचान नहीं बना पाया, लेकिन उत्तराखंड से सटे हुए पड़ोसी देश नेपाल टिमरू का ग्लोबल हब बन चुका है. आपको जानकर ताज्जूब होगा कि उत्तराखंड भी हर साल नेपाल से करीब 100 करोड़ रुपए का टिमरू इंपोर्ट करता है. यहीं कारण है कि कृषि विभाग अब टिमरू के उत्पादन पर ज्यादा फोक्स कर रहा है.
पहाड़ की किस्मत बदल देगा ये पौधा! (ETV Bharat) सेंटर फॉर एरोमेटिक प्लांट्स के डायरेक्टर डॉ नृपेंद्र चौहान के मुताबिक इस समय नेपाल दुनिया में सबसे ज्यादा टिमरू का एक्सपोर्ट कर रहा है. उत्तराखंड खुद सालाना 100 करोड़ रुपए का व्यवसायिक टिमरू और बीच समेत अन्य उत्पादन नेपाल से ही खरीदता है.
पिथौरागढ़ में टिमरू वैली बनाई जा रही है. (ETV Bharat) उत्तराखंड की परंपराओं में सदियों से टिमरू:सेंटर फॉर एरोमेटिक प्लांट के निदेशक डॉ नृपेंद्र चौहान बताया कि उत्तराखंड की परंपराओं में टिमरू सदियों से है. पहाड़ में आज भी पूजा के लिए घरों के बाहर टिमरू के डंडे नुमा तने को लगाया जाता है, जिसे काफी शुभ माना जाता है. हालांकि इसके पीछे एक बड़ा वैज्ञानिक कारण भी है. कहा जाता है कि जहां पर टिमरू होता है, वहां आसपास में सांप और बिच्छू नहीं आते है.
कॉस्मेटिक के कई प्रोजेक्ट्स में टिमरू का इस्तेमाल होता है. (ETV Bharat) टिमरू का औषधीय गुण: इसके अलावा टिमरू को दातुन के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. पहले टूथपेस्ट की जगह दांतों को साफ करने के लिए टिमरू की टहनी या फिर उसके बीज का इस्तेमाल किया जाता था. पहाड़ों में आज भी बुजुर्ग टिमरू की दातुन का प्रयोग करते है, लेकिन अफसोस की बात है कि आज तक टिमरू के व्यावसायिक इस्तेमाल (Commercial Use) पर ध्यान नहीं दिया गया. हालांकि अब पड़ोसी देश नेपाल को देखकर उत्तराखंड भी टिमरू को इकोनॉमिक क्रॉप के रूप में देख रहा है.
उत्तराखंड में टिमरू मिशन की अपार संभावनाएं (ETV Bharat) टिमरू से बनाया जा रहा इत्र और परफ्यूम: उत्तराखंड सरकार ने भी टिमरू मिशन की शुरुआत कर दी है. सेंटर फॉर एरोमेटिक प्लांट्स में पहली बार टिमरू से इत्र और परफ्यूम बनाया, जिसे लोगों ने काफी पंसद भी किया. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के साथ-साथ ग्लोबल इन्वेस्टर समिट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इसकी तारीफ की थी. इसी को देखते हुए उत्तराखंड सरकार ने टिमरू मिशन की शुरुआत की है, जिसके तहत पिथौरागढ़ जिले में टिमरू पर रिसर्ज सेंटर शुरु किया जा रहा है. इतना ही नहीं पिथौरागढ़ में 4000 हेक्टेयर जमीन पर टिमरू वैली की भी स्थापना की जा रही है.
पड़ोसी देश नेपाल हर साल टिमरू से कई सौ करोड़ का बिजनेस कर रहा है. (photo- Centre for aromatic plants uttarakhand) उत्तराखंड का टिमरू परफ्यूम भी बनाया जा रहा. (ETV Bharat) टिमरू हर तरह से मुनाफे का सौदा: सेंटर फॉर एरोमेटिक प्लांट्स के डायरेक्टर डॉ नृपेंद्र चौहान के मुताबिक यदि उत्तराखंड में टिमरू की खेती पर फोकस किया जाए तो यह बड़े मुनाफे का सौदा साबित होगा. क्योंकि टिमरू को जंगली जानवरों से कोई नुकसान नहीं है, जो पहाड़ में खेती के लिए सबसे बड़ी समस्या है. इसके अलावा टिमरू की और खासियत ये है कि ये पेड़ कार्बन उत्सर्जन बहुत कम करता है. जबकि कार्बन अवशोषित ज्यादा करता है. इसीलिए टिमरू पर्यावरण के लिए काफी अच्छा साबित होगा. टिमरू की एक और खासियत है, वो ये कि इस पौधे को लगाने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती है.
सेंटर फॉर एरोमेटिक प्लांट्स के डायरेक्टर डॉ नृपेंद्र चौहान (ETV Bharat) टिमरू का इस्तेमाल:टिमरू में इस्तेमाल न सिर्फ कॉस्मेटिक के कई प्रोजेक्ट्स में किया जाता है, बल्कि ये एक कार्बनिक एरोमेटिक प्लांट (जैविक सुगंधित पौधा) है. शोधकर्ता बताते है कि टिमरू से बने इत्र और परफ्यूम अन्य ब्रांडेड कंपनियों के परफ्यूम टक्कर दे रहे है. इसके साथ ही टिमरू से निकलने वाला एसेंशियल ऑयल का इस्तेमाल दवाइयों आदी में किया जाता है. वहीं टिमरू के पाउडर से कीटनाशक दवाइयां भी बनती है, जो की बिल्कुल केमिकल फ्री होती है.
टिमरू को दातुन के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. (photo- Centre for aromatic plants uttarakhand) पहाड़ का एक पूरा "मौण" त्यौहार टिमरू पर निर्भर: टिहरी गढ़वाल की यमुना घाटी में हर साल होने वाला मुंड मेला पारंपरिक रूप से टिमरू पर निर्भर है. बता दें कि पारंपरिक तरीके से गांव में लोग टिमरू की पट्टी और उसके तनों को सुखाकर उसका पाउडर बनाकर तैयार करते थे. इसके बाद उस पाउडर का इस्तेमाल नदी में मछली पकड़ने के लिए किया जाता है.
उत्तराखंड सरकार ने भी टिमरू मिशन की शुरुआत कर दी है. (photo- Centre for aromatic plants uttarakhand) टिमरू से तैयार होने वाले इस पाउडर का की विशेषता यह है कि इस नदी में डाले जाने पर मछलियां थोड़ी देर के लिए बेहोश हो जाती है और इसका मछलियों पर और उनकी सेहत पर साथ ही नदी में रहने वाली किसी भी अन्य जीव-जन्तु पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है. थोड़ी देर के लिए मछलियों पर होने वाले इसके प्रभाव के चलते मछली पकड़ने का जो रोमांच बनता है उसी रोमांच को "मौंड" मेला का नाम दिया जाता है.
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