देहरादून: उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव से पहले भले ही बीजेपी ने 15 हजार लोगों को सदस्यता दिलवाने का ढोल पीटा था, लेकिन अब यही रणनीति बीजेपी के लिए गले की हड्डी बनती नजर आ रही है. कभी एक दूसरे का बाजा फोड़ने वाले नेता एक ही पार्टी में आने से अलग-अलग सुर में गा रहे हैं, जो बीजेपी के लिए बड़ी मुसीबत बनने वाला है.
लोकसभा चुनाव 2024 के मतदान से पहले उत्तराखंड में भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस सहित अन्य तमाम राजनीतिक दलों से लोगों को तोड़कर बीजेपी में जो ताबड़तोड़ ज्वाइनिंग कराई थी, उसके कुछ शुरुआती रुझान भाजपा के लिए प्रतिक्रिया स्वरूप आने लगे हैं. प्रदेश में ऐसी कई विधानसभा सीटें हैं, जहां पर पिछले कई दशकों से जो नेता एक दूसरे के धुर विरोधी रहे और एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ते आए हैं, वह अब एक ही दल में आ गए हैं.
उत्तराखंड की 70 विधानसभा सीटों में से ज्यादातर विधानसभा सीटों में ऐसा देखने को मिला है. गढ़वाल मंडल में उत्तरकाशी से लेकर हरिद्वार और कुमाऊं में अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ से लेकर उधमसिंह नगर तक की कई विधानसभा सीटों में भाजपा के इस सदस्यता अभियान कार्यक्रम के तहत कांग्रेस और अन्य दलों से ऐसे ऐसे नेताओं ने भाजपा की सदस्यता ले ली, जो कि विधानसभा चुनाव में प्रतिद्वंदी के नाम पर पहले स्थान पर थे.
ऐसी ही एक विधानसभा सीट है टिहरी गढ़वाल की टिहरी विधानसभा सीट. भाजपा के सदस्यता अभियान के यहां कुछ शुरुआती रुझान देखने को मिले हैं, जहां पर टिहरी में किशोर उपाध्याय, दिनेश धनै और धन सिंह नेगी टिहरी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ते रहे हैं. अब यह तीनों बीजेपी में आ चुके हैं. लेकिन नेताओं के आगे अब समस्या ये है कि वह जब चुनाव लड़े तब जिस जिस पर आरोप लगाए, तो अपनी पार्टी में आ गए हैं. ऐसे में अब नेतागिरी कैसे की जाए. यही वजह है कि टिहरी में इन तीनों नेताओं के बयान इन दिनों चर्चाओं में हैं. यह चर्चा शायद कम होती, अगर यह सभी नेता अलग-अलग दलों में होते. लेकिन एक ही दल में आने के बाद भी इस तरह की बयानबाजियों ने सियासी गलियारों में लोगों को चर्चा करने का मौका दे दिया है.
टिहरी में घमासान:दरअसल किशोर उपाध्याय का एक पत्र सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. इस पत्र में उनका कहना है कि दिनेश धनै ने पार्टी की भरी मीटिंग में कह दिया कि किशोर उपाध्याय और उनके लोगों के टीएचडीसी में करोड़ों के ठेके चल रहे हैं. किशोर उपाध्याय अब टीएचडीसी निदेशक को पत्र लिखकर आग्रह कर रहे हैं कि उनके यहां काम करने वाले ठेकेदारों की लिस्ट दे दें. कहां लोगों की समस्याओं की लिस्ट बननी थी, कहां ठेकेदारों की लिस्ट बन रही है. इस तरह से टिहरी में बीजेपी के अंदर ही शीत युद्व शुरू हो गया है और इसमें पिसने लगे हैं बीजेपी के हार्डकोर कार्यकर्ता. उनके आगे दिक्कत ये है कि वो किसको नेता बोलें. नेताओं की दिक्कत ये हो सकती है कि मंच पर कौन बैठेगा और मंच के सामने कौन. टिकट किसे मिलेगा और किसे नहीं. क्या तब भी अनुशासन में रह पाऐंगे नेता. नेताजी के समर्थकों का क्या होगा?