नई दिल्ली: तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई-मार्क्सवादी) और समाजवादी पार्टी (एसपी) सहित तीन विपक्षी दलों ने मंगलवार को केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित 'वन नेशन-वन इलेक्शन' नीति के खिलाफ औपचारिक रूप से अपनी आपत्ति दर्ज कराई. पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्चाधिकार समिति में एक साथ चुनाव कराने की नीति पर अपना विरोध दोहराते हुए तीनों दलों ने कहा कि यह नीति भारतीय लोकतंत्र के संघीय ढांचे के खिलाफ है.
सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी ने ईटीवी भारत से कहा, 'हमारा मानना है कि ऐसा प्रस्ताव स्वाभाविक रूप से अलोकतांत्रिक है और संघवाद के सिद्धांतों को नकारता है जो हमारे संविधान की एक मूलभूत विशेषता है.' बैठक में येचुरी के साथ पार्टी के पोलित ब्यूरो सदस्य नीलोत्पल बसु और केंद्रीय सचिवालय सदस्य मुरलीधरन भी थे.
येचुरी ने कहा कि 'संसद और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव लागू करने के खिलाफ तर्क न केवल तकनीकी प्रकृति का है, या, यह अव्यावहारिक है. इस अवधारणा पर मूल आपत्ति यह है कि यह मूल रूप से अलोकतांत्रिक है और संविधान में निर्धारित संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली की जड़ पर प्रहार करती है.' उन्होंने कहा कि लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के लिए सरकार की विधायिका के प्रति जवाबदेही की संवैधानिक योजना के साथ छेड़छाड़ की आवश्यकता होगी.
उन्होंने कहा कि 'अनुच्छेद 75 (3) में कहा गया है कि मंत्रिपरिषद की सामूहिक जिम्मेदारी लोक सभा के प्रति है. इसी प्रकार, मंत्रिपरिषद से संबंधित अनुच्छेद 164 (1) में कहा गया है कि वह राज्य की विधान सभा के प्रति सामूहिक रूप से जिम्मेदार है. संविधान के तहत, यदि कोई सरकार अविश्वास प्रस्ताव पर वोट खोकर या मनी बिल पर वोट हारकर विधायिका का विश्वास खो देती है, तो वह इस्तीफा देने के लिए बाध्य है. यदि कोई वैकल्पिक सरकार नहीं बन पाती है, तो सदन भंग कर दिया जाता है और मध्यावधि चुनाव कराया जाता है.'
येचुरी ने कहा कि संविधान में लोकसभा या राज्य विधानसभाओं के लिए कार्यकाल की कोई निश्चितता नहीं है. अनुच्छेद 83 (2) और अनुच्छेद 172 (1) दोनों निर्दिष्ट करते हैं कि लोकसभा और विधान सभा का कार्यकाल पांच साल के लिए होगा 'जब तक कि जल्दी भंग न हो जाए.'