उत्तराखंड

uttarakhand

ETV Bharat / bharat

उत्तराखंड के राजाजी टाइगर रिजर्व में बाघों की सर्वाइवल जंग, WII के अध्ययन ने खोले कई राज - Rajaji Tiger Reserve - RAJAJI TIGER RESERVE

Rajaji Tiger Reserve कहने को तो राजाजी एक टाइगर रिजर्व के रूप में अधिसूचित है. लेकिन राजाजी टाइगर रिजर्व का एक बड़ा इलाका टाइगर्स के लिए तरस रहा है. हैरत की बात यह है कि इसी टाइगर रिजर्व का एक क्षेत्र टाइगर्स की संख्या के लिहाज से केयरिंग कैपेसिटी से भी आगे निकल गया है तो वहीं एक बड़ा इलाका ऐसा भी है, जहां टाइगर्स सर्वाइव ही नहीं कर पा रहे. राजाजी टाइगर रिजर्व में क्यों बिगड़ गया संतुलन और कहां हुए ऐसे हालात? ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट में जानिए.

Rajaji Tiger Reserve
बाघों के लिए तरस रहा टाइगर रिजर्व (PHOTO ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Sep 5, 2024, 9:12 AM IST

टाइगर रिजर्व में बाघों की सर्वाइवल जंग (VIDEO-ETV Bharat)

देहरादूनः उत्तराखंड में राष्ट्रीय स्तर के मुकाबले बाघों की अच्छी खासी संख्या है. राज्य के कॉर्बेट टाइगर रिजर्व से लेकर दूसरे तमाम इलाकों में भी टाइगर्स (बाघों) की मौजूदगी आसानी से मिल रही है. लेकिन प्रदेश में टाइगर रिजर्व का ही एक ऐसा इलाका भी है, जहां टाइगर्स सर्वाइव नहीं कर पाए हैं. राजाजी टाइगर रिजर्व दो हिस्सों में बंटा हुआ है. ईस्ट की ओर राजाजी का ईस्टर्न पार्ट कहलाता है. पश्चिम का इलाका वेस्टर्न पार्ट के नाम से पहचाना जाता है. खास बात यह है कि राजाजी टाइगर रिजर्व के यह दोनों ही क्षेत्र आपस में जुड़े हुए हैं. लेकिन टाइगर्स की मौजूदगी को लेकर दोनों में एक बड़ा अंतर देखा गया है.

पश्चिम में सर्वाइव नहीं कर पा रहे टाइगर:वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (WII) के अध्ययन के दौरान यह स्पष्ट हुआ है कि राजाजी टाइगर रिजर्व के पूर्वी और पश्चिम इलाके में टाइगर्स की मौजूदगी के लिए पर्याप्त भोजन मौजूद है. इसके बावजूद केवल पूर्वी (ईस्टर्न) हिस्से में ही टाइगर्स की संख्या तेजी से बढ़ी है. इसके विपरीत पश्चिमी इलाके में बाघ खुद सर्वाइव नहीं कर पा रहे हैं.

पूर्व में भोजन कम लेकिन फिर भी केयरिंग कैपेसिटी से ज्यादा: राजाजी टाइगर रिजर्व के पूर्वी हिस्से की बात करें तो टाइगर्स की मौजूदगी यहां कुल 177 स्क्वायर किलोमीटर क्षेत्र में है. वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के अध्ययन से यह पता चलता है कि इस क्षेत्र में बाघों के लिए केयरिंग कैपेसिटी का मानक करीब 20 से 28 बाघ तक ही सीमित है. यानी WII की रिपोर्ट यह बताती है कि ये इलाका अधिकतम 28 बाघों तक की क्षमता रखता है. लेकिन इस क्षेत्र में वर्तमान में 50 से ज्यादा बाघ मौजूद हैं. अध्ययन यह भी बताता है कि इस इलाके में पर स्क्वायर किलोमीटर के लिहाज से बाघ के लिए शिकार के रूप में 93 वन्य जीव मौजूद हैं. इसमें चीतल, सांभर, हिरण, जंगली सूअर जैसे वन्य जीव शामिल हैं.

पश्चिम में भोजन ज्यादा लेकिन फिर भी केयरिंग कैपेसिटी से कम: राजाजी टाइगर रिजर्व का पश्चिमी क्षेत्र, पूर्वी इलाके से काफी बड़ा है और यहां टाइगर्स के लिए भोजन भी पूर्वी इलाके से ज्यादा है. लेकिन इस सबके बावजूद भी यहां पर टाइगर्स धीरे-धीरे कम हुए हैं. अब स्थिति यह है कि यहां गिनती के करीब चार वयस्क बाघ ही मौजूद हैं. इन्हें भी कॉर्बेट टाइगर रिजर्व से यहां पर शिफ्ट किया गया है. राजाजी टाइगर रिजर्व के वेस्टर्न पार्ट को देखें तो वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, ये पश्चिम क्षेत्र करीब 380 स्क्वायर किलोमीटर में फैला हुआ है. जहां पर टाइगर्स की संख्या के लिहाज से केयरिंग कैपेसिटी करीब 60 टाइगर्स तक हो सकती है. यानी इस क्षेत्र में आसानी से 60 टाइगर्स रह सकते हैं. लेकिन फिलहाल यहां चार टाइगर ही मौजूद हैं. अध्ययन बताता है कि इस इलाके में टाइगर्स के शिकार वाले वन्यजीवों की संख्या करीब 134 जीव पर स्क्वायर किलोमीटर के रूप में मौजूद है.

सबसे मुख्य कारण: टाइगर रिजर्व के पश्चिमी क्षेत्र में पर्याप्त भोजन की मौजूदगी और बड़ा इलाका होने के बावजूद यहां टाइगर्स नहीं होना सभी के लिए हैरत भरा है. वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया टाइगर रिजर्व के पश्चिमी इलाके में बाघों के सर्वाइव नहीं कर पाने के पीछे कई वजह बताता है. इस इलाके में किए गए अध्ययन से पता चलता है कि राजाजी टाइगर रिजर्व का पश्चिमी इलाका इंसानी गतिविधियों से बेहद ज्यादा प्रभावित है. इसीलिए पर्याप्त भोजन के साथ पूर्व की तुलना में कई गुना बड़ा होने के बावजूद यहां टाइगर नहीं रह पाते.

कुछ और मुख्य कारण:अध्ययन के अनुसार देहरादून, ऋषिकेश और हरिद्वार में कई मानव बस्ती इस क्षेत्र को असुरक्षित बना रही हैं. इसके अलावा मानव बस्ती के कारण प्रदूषण और अपशिष्ट पदार्थ भी इस इलाके की स्थिति को खराब कर रहे हैं. हालांकि, टाइगर रिजर्व के रूप में 18 अप्रैल 2015 में यह क्षेत्र अधिसूचित कर दिया गया था. लेकिन इस क्षेत्र के आसपास तमाम विकास कार्यों ने वन्यजीवों की गतिविधियों को प्रभावित किया है.

वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के अध्ययन में पश्चिम क्षेत्र के लिए परेशानी बनने वाले कारणों के कुछ बिंदु इस तरह हैं

  • इस क्षेत्र में कुछ नई कॉलोनी को स्थापित किया गया है, जो राजाजी टाइगर रिजर्व के एक इलाके को प्रभावित कर रही हैं.
  • इसी तरह रायवाला में आर्मी कैंप की मौजूदगी वन्यजीवों के स्वतंत्र विचरण को प्रभावित कर रही है.
  • 14 किलोमीटर लंबा ऋषिकेश-चीला पावर चैनल बनने से भी इस इलाके में वन्यजीवों के लिए व्यवधान पैदा हुआ है.
  • देहरादून-हरिद्वार हाईवे के चौड़ीकरण ने भी राजाजी में जंगल के बीच वन्यजीवों के लिए परेशानी खड़ी की है.
  • देहरादून से हरिद्वार का रेलवे ट्रैक इसी क्षेत्र से गुजर रहा है और वह भी वन्यजीवों के लिए परेशानी बना है.

पश्चिम में टाइगर की संख्या बढ़ाने पर योजना:राजाजी टाइगर रिजर्व के लिए हाल ही में टाइगर कंजर्वेशन प्लान भी बनकर तैयार हुआ है, जिसमें पश्चिमी हिस्से में टाइगर्स की संख्या बढ़ाने के लिए भी कुछ प्रस्ताव रखे गए हैं. इसके अनुसार कॉर्बेट टाइगर रिजर्व से कुछ और बाघों को राजाजी के पश्चिमी हिस्से में शिफ्ट किए जाने, राजाजी के ही पूर्वी हिस्से में मौजूद टाइगर्स को पश्चिमी हिस्से में भेजे जाने जैसे विकल्प पर काम करने के सुझाव दिए गए हैं. इससे पहले कॉर्बेट टाइगर रिजर्व से इस क्षेत्र में चार बाघों को लाया जा चुका है.

ये भी पढ़ेंःराजाजी टाइगर रिजर्व में बढ़ रहा बाघों का कुनबा, कॉर्बेट से लाई बाघिन ने 4 शावकों को दिया जन्म

ये भी पढ़ेंःप्रोजेक्ट टाइगर के लिए खतरा बना ये वन्य जीव! राजाजी रिजर्व में शुरू हुई सर्वाइवल जंग

ये भी पढ़ेंःबाघ संरक्षण में अहम भूमिका निभा रहा उत्तराखंड, घनत्व में जिम कॉर्बेट पार्क है अव्वल

ये भी पढ़ेंःकॉर्बेट नेशनल पार्क में सिमट रही टाइगर की 'सल्तनत', अब पहाड़ों पर पलायन कर रहा 'जंगल का राजा'

ABOUT THE AUTHOR

...view details