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'स्कूली बच्चों की तरह लड़ रही है तमिलनाडु-केरल सरकार': सुप्रीम कोर्ट की फटकार - MULLAPERIYAR DAM DISPUTE

मुल्लापेरियार बांध विवाद पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु की ओर से उठाये गए मुद्दों का समिति से समाधान करने को कहा.

Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट. (File Photo) (IANS)

By Sumit Saxena

Published : Feb 19, 2025, 5:31 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि तमिलनाडु और केरल की सरकारें मुल्लापेरियार बांध से जुड़े मुद्दों को लेकर स्कूली बच्चों की तरह लड़ रही हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि "हम केवल यह जानना चाहते हैं कि क्या इन मुद्दों पर वास्तव में न्यायिक निर्णय की आवश्यकता है". सर्वोच्च न्यायालय ने जनवरी, 2025 में गठित समिति को तमिलनाडु सरकार द्वारा की गई आवेदनों की जांच करने और निर्णय लेने का निर्देश दिया. कहा कि ऐसा समाधान निकाला जाए जो दोनों पक्षों को स्वीकार्य हो.

किसने दायर की है याचिकाः न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने मामले की सुनवाई की. सर्वोच्च न्यायालय तमिलनाडु सरकार की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि बांध के आसपास के क्षेत्र में पेड़ों की कटाई समेत कुछ गतिविधियों की अनुमति केरल सरकार ने रद्द कर दी है. सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति कांत ने बांध से संबंधित कई मामलों के लंबित होने का उल्लेख करते हुए कहा कि हम आज आदेश पारित करना चाहते हैं, बशर्ते तमिलनाडु और केरल सरकार के वकील सभी मामलों की सूची दे सकें. हम मामले को मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखेंगे और उनसे अनुरोध करेंगे कि वे सभी मामलों को एक पीठ के समक्ष एकत्रित करें.

न्यायमूर्ति कांत ने कहा, "ये सभी मुद्दे हैं. समस्या को देखिए, वे कहते हैं कि हमें कुछ पेड़ काटने हैं और हमें वहां पहुंचकर बांध की मरम्मत करनी है. वे कहते हैं कि आप केवल एक नाव की अनुमति दे रहे हैं और वे दो नाव चाहते हैं. मेरा मतलब है कि ये ऐसे मुद्दे हैं जैसे स्कूली बच्चे लड़ रहे हैं." केरल सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता जयदीप गुप्ता ने कहा कि नाव की समस्या का समाधान हो गया है.

न्यूट्रल है पर्यवेक्षी समितिः पीठ ने कहा कि अब केंद्र द्वारा गठित एक पर्यवेक्षी समिति है, न कि केरल या तमिलनाडु द्वारा. तमिलनाडु की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नहपाड़े ने कहा कि पिछले 25 वर्षों के मुकदमे में केरल का पूरा प्रयास ऐसी स्थिति उत्पन्न करना है, जहां मौजूदा बांध को तोड़ना पड़े. यही कारण है कि हम जो कुछ भी कहते हैं, वह अवरोध उत्पन्न करता है. पीठ ने कहा कि उसके पास ऐसी किसी बात का जवाब नहीं है जिसका समाधान पिछले 25 वर्षों में नहीं हो सका. न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि पर्यवेक्षी समिति को एक बैठक बुलाने का निर्देश देते हैं. अगर कोई विवाद है तो वे अदालत को एक रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे, फिर हम हल कर सकते हैं.

बांध कमजोर होने की आशंकाः नाहपाड़े ने कहा कि समिति ने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की है और केरल किसी न किसी बहाने से समिति के फैसले का पालन नहीं कर रहा है. केरल के वकील ने समिति की संरचना के बारे में मुद्दा उठाया. न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि हम उन्हें पुनर्गठन के लिए कह सकते हैं लेकिन कुछ काम जारी रहना चाहिए और सब कुछ ठप नहीं होना चाहिए. गुप्ता ने कहा कि 25 साल बीत चुके हैं और बांध 25 साल पुराना हो गया है. नहपाड़े ने कहा कि बांध सुरक्षित पाया गया है. गुप्ता ने कहा कि तमिलनाडु बांध की सुरक्षा के बारे में हर 5 साल में होने वाली समीक्षा से बच रहा है.

2006 में सुप्रीम कोर्ट ने दिया था फैसलाः पीठ ने कहा कि मुल्लापेरियार बांध पर अधिकार के संबंध में तमिलनाडु और केरल के बीच विवाद का निपटारा शीर्ष अदालत की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने फरवरी 2006 में किया था. तमिलनाडु ने 2006 में केरल सिंचाई और जल संरक्षण (संशोधन अधिनियम 2006) की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए एक मूल मुकदमा दायर किया था. मई 2014 में शीर्ष अदालत ने एक फैसले में इस अधिनियम को रद्द कर दिया था.

केरल सरकार पर तमिलनाडु के आरोपः पीठ ने कहा कि इन निर्णयों का पालन न करने का आरोप लगाते हुए तमिलनाडु ने 2017 में एक हस्तक्षेप आवेदन (आईए) दायर किया, जिसमें केरल सरकार पर आरोप लगाया गया कि बांध तक पहुंच मार्ग बनाने के लिए पेड़ों को काटने की मंजूरी नहीं दी जा रही है. केरल की ओर से बांध क्षेत्र में प्रवेश और पहुंच प्रदान नहीं की जा रही है और अधिकारियों को क्षेत्र में वर्षा को मापने की अनुमति नहीं दी जा रही है ताकि वे बांध के प्रबंधन के लिए चार्ट तैयार कर सकें.

केरल सरकार का जवाबी हलफनामाः पीठ ने कहा कि केरल सरकार ने अपने जवाबी हलफनामे में कहा है कि 7 मई, 2014 का आदेश स्वतः लागू है. केरल को तमिलनाडु से आने वाले लोगों की पहचान सत्यापित करने का अधिकार है, क्योंकि यह एक वन्यजीव क्षेत्र है. केरल ने स्वचालित वास्तविक समय वर्षामापी यंत्र लागू किया है तथा परिवहन वाहनों को रोका नहीं गया है. पीठ ने कहा कि केरल सरकार ने दावा किया है कि पेड़ों की कटाई मई 2014 के फैसले में हल किया गया मुद्दा नहीं है. तमिलनाडु ने जवाब में दावा किया कि केरल जानबूझकर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उसके पक्ष में दिए गए दो फैसलों के क्रियान्वयन में बाधा डाल रहा है.

पीठ ने आदेश में क्या कहाः "हमने दोनों राज्यों के वरिष्ठ अधिवक्ताओं की बात सुनी है. हमें लगता है कि 3 जनवरी, 2025 को नियुक्त किए गए अध्यक्ष के साथ एक नई पर्यवेक्षी समिति को तमिलनाडु की ओर से की गई प्रार्थनाओं पर गौर करना चाहिए और समाधान निकालना चाहिए, जो दोनों पक्षों को स्वीकार्य हो. हालांकि, किसी भी मुद्दे पर किसी भी विवाद की स्थिति में समिति को मुद्दों को हल करने के लिए इस अदालत को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया जाता है."

दोनों राज्यों को बैठक बुलाने के निर्देशः पीठ ने कहा कि समिति के अध्यक्ष एक सप्ताह के भीतर दोनों राज्यों के अधिकारियों की बैठक बुलाएंगे और उसके बाद दो सप्ताह के भीतर आवश्यक कार्रवाई की जानी चाहिए. आज से चौथे सप्ताह में इस अदालत को एक रिपोर्ट सौंपी जानी चाहिए. पीठ ने अपने आदेश में कहा, "कुछ मामलों को तीन न्यायाधीशों वाली पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाना आवश्यक है, इसलिए हमारा मानना ​​है कि न्याय के हित में सभी मामलों को एक साथ मिलाकर एक पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाना चाहिए. मामले को उचित आदेश के लिए मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखा जा सकता है."

क्या है विवादः मुल्लापेरियार बांध और इसका जलग्रहण क्षेत्र केरल में है. लेकिन इसके जलाशय का पानी तमिलनाडु द्वारा इस्तेमाल किया जाता है. यह राज्य के पांच जिलों की जीवन रेखा है. सर्वोच्च न्यायालय ने 2014 में तमिलनाडु के पक्ष में फैसला सुनाया था और कहा था कि बांध सुरक्षित है लेकिन बांध के जलाशय में पानी का स्तर 142 फीट पर रखा जाना चाहिए. इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने बांध के प्रबंधन के लिए एक पर्यवेक्षी समिति गठित की थी. तमिलनाडु हमेशा से कहता रहा है कि बांध सुरक्षित है और उसने मौजूदा बांध को मजबूत करने के लिए निर्देश भी मांगे हैं.

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