आगरा: मोहब्बत की निशानी ताजमहल की खूबसूरती की दुनिया दीवानी है. हर दिन हजारों की संख्या में देशी और विदेशी सैलानी ताजमहल का दीदार करने आते हैं. लेकिन, एक समय वो भी आया था कि जब ताजमहल बिक गया था. इसे सुनकर चैंकिए मत. मुगल शहंशाह शाहजहां के 369वें उर्स के अवसर पर पढ़िए, जब ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड विलियम बैंटिक ने ताजमहल की नीलामी कराई थी. इसकी नीलामी का इश्तिहार भी एक अंग्रेजी अखबार में छपा था. ताजमहल की नीलामी में राजस्थान और मथुरा के सेठों ने बोलियां लगाई थीं. नीलामी में मथुरा के सेठ लक्ष्मीचंद्र ने सात लाख रुपये में ताजमहल खरीद लिया था. लेकिन, फिर लंदन असेंबली में ताजमहल की नीलामी को लेकर विरोध होने पर उसकी नीलामी स्थगित की गई थी. इसकी वजह से ताजमहल प्राइवेट प्रॉपर्टी बनने से बच गया था.
बता दें कि मुगल बादशाह शहंशाह शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज की याद में ताजमहल बनवाया था. सन 1631 से 1648 के बीच खूबसूरत ताजमहल का निर्माण कराया गया था. ताजमहल के निर्माण में तब करीब 32 मिलियन की लागत आई थी. ताजमहल के निर्माण कार्य में 22 हजार मजदूर लगे थे. सन 1983 में यूनेस्को ने ताजमहल को विश्व धरोहर घोषित किया था.
ताजमहल की नीलामी का इश्तिहार छपा था
वरिष्ठ इतिहासकार राज किशोर 'राजे' बताते हैं कि ब्रिटिश काल में सन 1828 से 1835 तक भारत का वायसराय लॉर्ड विलियम बैंटिक था. लॉर्ड विलियम बैंटिक ने ब्रिटिश हुकूमत का खजाना भरने के लिए ताजमहल की खूबसूरत पच्चीकारी और कार्विंग वर्क के पत्थरों को तोड़कर बिक्री की योजना बनाई थी. इसके लिए उसने ताजमहल की नीलामी कराने की योजना बनाई थी. तब ब्रिटिश हुकूमत ने भारत की राजधानी कोलकाता बनाई थी. लॉर्ड विलियम बैंटिक ने जुलाई 1831 को ताजमहल की नीलामी का इश्तिहार कोलकाता से प्रकाशित अंग्रेजी समाचार पत्र 'जॉन बुल' में प्रकाशित कराया था.