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'मेरा सेक्रेटरी था आज विरोध में बोल रहे' जब सुशील मोदी पर बोले थे लालू यादव, 'ये गजब की राजनीति है' - Sushil Modi Death - SUSHIL MODI DEATH

Sushil Modi: बीजेपी के वरिष्ठ सुशील मोदी के निधन से बिहार की राजनीतिक गलियारे में शोक की लहर है. सुशील मोदी की गिनती उन नेताओं में होती है, जिन्होंने कभी भी अपने सिद्धांत के साथ समझौता नहीं किया. चारा घोटाले में लालू यादव के खिलाफ आवाज बुलंद करने में उनकी बड़ी भूमिका रही है. राजनीतिक तौर पर भी पहले भी दोंनों के रिश्तों में हमेशा तल्खी देखने को मिली लेकिन निजी जीवन में दोनों के संबंध मधुर थे. छात्र राजनीति भी दोनों साथ में शुरू की थी.

Sushil Modi
लालू यादव और सुशील मोदी के रिश्ते (ETV Bharat)

By ETV Bharat Bihar Team

Published : May 14, 2024, 10:42 AM IST

राजनीतिक विश्लेषक संजय कुमार (ETV Bharat)

पटना:पूर्व डिप्टी सीएम सुशील मोदी के निधन पर आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव ने गहरा शोक जताते हुए छात्र राजनीति के दिनों को याद किया है. उन्होंने उनको अपना भाई और दोस्त बताते हुए कहा कि वे एक जुझारू, समर्पित, सामाजिक और राजनीतिक व्यक्ति थे. असल में दोनों का 5 दशक पुराना संबंध रहा है. सुशील कुमार मोदी की राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1971 से छात्र राजनीति से हुई थी. वो उस वक्त पटना विश्वविद्यालय संघ की 5 सदस्यीय कैबिनेट के सदस्य निर्वाचित हुए. 1973 में वो पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के महामंत्री चुने गए. उस वक्त पटना विश्वविद्यालय संघ के अध्यक्ष लालू यादव और संयुक्त सचिव रविशंकर प्रसाद चुने गए थे.

लालू से दोस्ती भी और राजनीतिक विरोध भी:सुशील कुमार मोदी और लालू प्रसाद यादव ने एक साथ राजनीति की शुरुआत की थी. पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में लालू यादव अध्यक्ष चुने गए थे और सुशील कुमार मोदी महामंत्री लेकिन दोनों की राजनीतिक विचारधारा अलग-अलग थी. लालू जहां समाजवादी विचारधारा के थे, वहीं सुशील मोदी संघ की विचारधारा पर चलने वाले राजनेता. यही कारण था कि दोनों गहरे दोस्त होने के बावजूद राजनीतिक रूप से एक-दूसरे के कट्टर विरोधी थे.

लालू यादव और सुशील मोदी के कैसे रिश्ते?:कई मौकों पर लालू प्रसाद यादव ने सुशील मोदी पर राजनीतिक तंज कसते हुए कहा था, 'सुशील मोदी मेरा सेक्रेटरी रह चुका है. वह मुझसे क्या राजनीतिक लड़ाई लड़ेगा.' गहरी दोस्ती होने के बाद भी सुशील कुमार मोदी कोई भी ऐसा मौका नहीं चूकते थे, जिससे वह लालू प्रसाद यादव को राजनीतिक रूप से घेर ना सकें. चारा घोटाले से लेकर भ्रष्टाचार के अन्य मामलों में उन्होंने लालू और उनके परिवार को राजनीतिक रूप से कटघरे में खड़ा किया.

भ्रष्टाचार पर लालू के खिलाफ खोला मोर्चा:बिहार की राजनीति में 1990 के बाद तीन राजनीतिक दलों का बिहार में दबदबा रहा. जिसमें बीजेपी, आरजेडी और जेडीयू तीन प्रमुख दल शामिल हैं. लालू प्रसाद यादव के शासनकाल में भ्रष्टाचार को लेकर एक नया राजनीतिक समीकरण बना. बीजेपी और जेडीयू एक साथ आकर लालू प्रसाद के शासनकाल में हुए भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया. नीतीश कुमार और सुशील मोदी ने लालू प्रसाद यादव के खिलाफ राजनीतिक विकल्प बनाने के लिए गठजोड़ किया।. पहले बीजेपी और समता पार्टी के बीच गठबंधन हुआ, जो बाद में जनता दल (यू) बन गई.

चारा घोटाला को लेकर दायर की थी याचिका:साल 1996 में चारा घोटाले में पटना हाईकोर्ट में सीबीआई जांच की मांग को लेकर याचिका दायर करने वालों में सुशील मोदी भी शामिल थे. बिहार की राजनीति के बारे में कहा जाता है कि लालू को अगर चुनावी जमीन पर शिकस्त देने वाले नीतीश कुमार हैं तो उन्हें तथ्य और दस्तावेजों के जरिए शिकस्त देने वाले सुशील मोदी ही थे. या यूं कहें कि लालू के 15 वर्षों के शासनकाल को समाप्त करने में यदि सबसे बड़ी किसी की भूमिका है तो उसमें से एक सुशील मोदी भी थे. उन्होंने लालू यादव के साथ ही छात्र राजनीति शुरू की लेकिन लालू यादव को जेल पहुंचाने में भी अहम भूमिका निभाई.

क्या कहते हैं विश्लेषक?: बिहार की राजनीति को समझने वाले राजनीतिक विश्लेषकों का भी मानना है कि सुशील मोदी ने कभी सिद्धांत से समझता नहीं किया. वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संजय कुमार का कहना है कि सुशील कुमार मोदी और लालू प्रसाद यादव एक साथ छात्र आंदोलन से राजनीति में सक्रिय हुए. दोनों की राजनीति भले ही एक साथ शुरू हुई हो लेकिन दोनों का विचारधारा कभी भी मेल नहीं खाया. बिहार की राजनीति में शायद ही कोई ऐसा नेता हुआ जो लालू प्रसाद यादव का खुलकर इतना राजनीतिक रूप से विरोध किया हो.

"लालू यादव समाजवादी पृष्ठभूमि के थे तो सुशील मोदी की राजनीति अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद संघ और बीजेपी के साथ हुई. सुशील मोदी और लालू यादव के बीच छात्र राजनीति के समय से ही गहरी दोस्ती रही लेकिन सुशील मोदी लालू प्रसाद यादव के शासनकाल के भ्रष्टाचार को लेकर हमेशा मुखर रहे. जिस वजह से लालू को राजनीतिक रूप से बहुत परेशानी हुई. यहां तक कि उनको जेल भी जाना पड़ा."-डॉ. संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक

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