देहरादून/दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि के मिसलीडिंग एडवरटाइजिंग केस पर सुनवाई की. सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण की माफी को स्वीकार करने से इनकार किया. साथ ही कानून के उल्लंघन के लिए पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने के लिए उत्तराखंड सरकार को फटकार लगाई है. कोर्ट ने कहा कि, वो राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण की कार्रवाई से स्तब्ध है जो ये दिखाती है कि अधिकारियों ने फाइलों को आगे-पीछे करने के अलावा कुछ नहीं किया. मामले की अगली सुनवाई 16 अप्रैल को होगी.
बुधवार (10 अप्रैल) को न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने उत्तराखंड सरकार से कई सवाल किए. कोर्ट ने राज्य सरकार ने पूछा कि उन लोगों के विश्वास का क्या जिन्होंने इस भरोसे के साथ दवाएं लीं कि वो (पतंजलि की दवाइयां) उनकी स्वास्थ्य समस्या दूर कर देंगी. अदालत ने कहा कि उन्हें सभी एफएमसीजी (फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स) कंपनियों से चिंता है जो पहले अपने उत्पाद को लेकर उपभोक्ताओं को बेहतरीन रिजल्ट की तस्वीरें दिखाती हैं और बाद में लोगों को इसकी कीमत चुकानी पड़ती है, जो बिल्कुल स्वीकार्य नहीं है.
कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार से साफ कहा कि वो हरिद्वार स्थित पतंजलि आयुर्वेद के भ्रामक विज्ञापनों से जुड़े मामले में उसे छूट नहीं देगी. पतंजलि और उसकी सहायक कंपनी दिव्य फार्मेसी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने में राज्य की लाइसेंसिंग अधिकारियों को विफल बताते हुए अदालत ने उत्तराखंड सरकार को फटकार लगाई. पीठ ने पूछा कि क्या राज्य सरकार को ये नहीं सोचना चाहिए था कि लाइसेंसिंग अधिकारी कंपनी के साथ 'hand in glove'(मिले हुए) थे.
न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने उत्तराखंड सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता ध्रुव मेहता से कहा, 'केंद्रीय मंत्रालय से पत्र आता है और ये बहुत स्पष्ट है कि गेंद आपके पाले में है. आपको (राज्य को) इसे रोकना चाहिए. यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो एफआईआर दर्ज करें. सभी शिकायतें आती हैं और उन्हें आपके (राज्य) पास भेज दिया जाता है और लाइसेंसिंग प्राधिकारी उसे जिला अधिकारी को भेज देते हैं.'
पीठ ने मेहता से कहा कि, लाइसेंसिंग प्राधिकारी ने जिला कार्यालय को जांच करने और रिपोर्ट देने के लिए लिखा है. अधिकारी का कहना है कि इसे कार्रवाई के लिए आपके (राज्य के) पास भेज दिया गया है. आप इससे संतुष्ट हैं तो आप इसे केंद्र को वापस भेज दें. केंद्र का कहना है कि यह उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं है. ये चेन बस आगे-पीछे होती रही. लाइसेंसिंग इंस्पेक्टर चुप रहता है, कोई कार्रवाई नहीं करता है, ना ही अधिकारी कोई रिपोर्ट पेश करता है. एक व्यक्ति जिसे बाद में नियुक्त किया जाता है, वो भी ऐसा ही करता है. उन सभी अधिकारियों को अभी निलंबित कर दिया जाना चाहिए.' जस्टिस कोहली ने पूछा कि ड्रग ऑफिसर और लाइसेंसिंग ऑफिसर का क्या काम है? आप किसका इंतजार कर रहे थे?
न्यायमूर्ति कोहली ने कहा कि फाइलों को आगे बढ़ाने के अलावा, राज्य सरकार के अधिकारियों ने कुछ नहीं किया है. 'वो बस बैठते हैं और किसी अन्य प्राधिकारी द्वारा उन्हें कार्य करने के निर्देश देने का इंतजार करते हैं'. कोर्ट ने मेहता से पूछा कि 'क्या आपको ड्रग्स एंड मैजिक रेमिडीज एक्ट की जानकारी नहीं थी?