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पतंजलि भ्रामक विज्ञापन मामला: SC की उत्तराखंड सरकार को फटकार, जिला आयुर्वेदिक और यूनानी अधिकारी से मांगा जवाब - Patanjali Misleading Ad Case - PATANJALI MISLEADING AD CASE

SC Reprimands Uttarakhand government पतंजलि के मिसलीडिंग एडवरटाइजिंग केस पर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को फटकार लगाई है. कोर्ट ने कहा कि उत्तराखंड राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण सिर्फ गहरी नींद में सोया रहा. जिम्मेदारों को निलंबित किया जाना चाहिए.

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Apr 10, 2024, 5:49 PM IST

Updated : Apr 10, 2024, 6:36 PM IST

देहरादून/दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि के मिसलीडिंग एडवरटाइजिंग केस पर सुनवाई की. सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण की माफी को स्वीकार करने से इनकार किया. साथ ही कानून के उल्लंघन के लिए पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने के लिए उत्तराखंड सरकार को फटकार लगाई है. कोर्ट ने कहा कि, वो राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण की कार्रवाई से स्तब्ध है जो ये दिखाती है कि अधिकारियों ने फाइलों को आगे-पीछे करने के अलावा कुछ नहीं किया. मामले की अगली सुनवाई 16 अप्रैल को होगी.

बुधवार (10 अप्रैल) को न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने उत्तराखंड सरकार से कई सवाल किए. कोर्ट ने राज्य सरकार ने पूछा कि उन लोगों के विश्वास का क्या जिन्होंने इस भरोसे के साथ दवाएं लीं कि वो (पतंजलि की दवाइयां) उनकी स्वास्थ्य समस्या दूर कर देंगी. अदालत ने कहा कि उन्हें सभी एफएमसीजी (फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स) कंपनियों से चिंता है जो पहले अपने उत्पाद को लेकर उपभोक्ताओं को बेहतरीन रिजल्ट की तस्वीरें दिखाती हैं और बाद में लोगों को इसकी कीमत चुकानी पड़ती है, जो बिल्कुल स्वीकार्य नहीं है.

कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार से साफ कहा कि वो हरिद्वार स्थित पतंजलि आयुर्वेद के भ्रामक विज्ञापनों से जुड़े मामले में उसे छूट नहीं देगी. पतंजलि और उसकी सहायक कंपनी दिव्य फार्मेसी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने में राज्य की लाइसेंसिंग अधिकारियों को विफल बताते हुए अदालत ने उत्तराखंड सरकार को फटकार लगाई. पीठ ने पूछा कि क्या राज्य सरकार को ये नहीं सोचना चाहिए था कि लाइसेंसिंग अधिकारी कंपनी के साथ 'hand in glove'(मिले हुए) थे.

न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने उत्तराखंड सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता ध्रुव मेहता से कहा, 'केंद्रीय मंत्रालय से पत्र आता है और ये बहुत स्पष्ट है कि गेंद आपके पाले में है. आपको (राज्य को) इसे रोकना चाहिए. यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो एफआईआर दर्ज करें. सभी शिकायतें आती हैं और उन्हें आपके (राज्य) पास भेज दिया जाता है और लाइसेंसिंग प्राधिकारी उसे जिला अधिकारी को भेज देते हैं.'

पीठ ने मेहता से कहा कि, लाइसेंसिंग प्राधिकारी ने जिला कार्यालय को जांच करने और रिपोर्ट देने के लिए लिखा है. अधिकारी का कहना है कि इसे कार्रवाई के लिए आपके (राज्य के) पास भेज दिया गया है. आप इससे संतुष्ट हैं तो आप इसे केंद्र को वापस भेज दें. केंद्र का कहना है कि यह उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं है. ये चेन बस आगे-पीछे होती रही. लाइसेंसिंग इंस्पेक्टर चुप रहता है, कोई कार्रवाई नहीं करता है, ना ही अधिकारी कोई रिपोर्ट पेश करता है. एक व्यक्ति जिसे बाद में नियुक्त किया जाता है, वो भी ऐसा ही करता है. उन सभी अधिकारियों को अभी निलंबित कर दिया जाना चाहिए.' जस्टिस कोहली ने पूछा कि ड्रग ऑफिसर और लाइसेंसिंग ऑफिसर का क्या काम है? आप किसका इंतजार कर रहे थे?

न्यायमूर्ति कोहली ने कहा कि फाइलों को आगे बढ़ाने के अलावा, राज्य सरकार के अधिकारियों ने कुछ नहीं किया है. 'वो बस बैठते हैं और किसी अन्य प्राधिकारी द्वारा उन्हें कार्य करने के निर्देश देने का इंतजार करते हैं'. कोर्ट ने मेहता से पूछा कि 'क्या आपको ड्रग्स एंड मैजिक रेमिडीज एक्ट की जानकारी नहीं थी?

कोर्ट ने आगे कहा कि, सभी शिकायतें उत्तराखंड सरकार को भेज दी गई हैं. मामले पर लाइसेंसिंग निरीक्षक चुप रहे और अधिकारी की ओर से कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई. वो केवल मामले को आगे बढ़ाने की कोशिश में थे. उच्चतम न्यायालय ने आगे कहा कि, दिव्य फार्मेसी पर एक्शन न लेने के कारण राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण मामले में 'equally complicit' (समान रूप से सहभागी) है, क्योंकि ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज अधिनियम के उल्लंघन की जानकारी होने के बाद भी कंपनी के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई.

कोर्ट ने कहा कि, उत्तराखंड राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण ने एक विस्तृत हलफनामा दायर कर आपत्तिजनक विज्ञापनों के संबंध में की गई कार्रवाई को समझाने की कोशिश की है. लेकिन कोर्ट ये जानकर हैरान है कि फाइल को आगे बढ़ाने के अलावा कुछ भी नहीं किया गया है. राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण 4-5 साल गहरी नींद में सोता रहा है.

न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने कहा कि, कोर्ट द्वारा लाइसेंसिंग अधिकारी और जिले के संबंधित अधिकारी को निलंबित कर दिया जाएगा और चार घंटे में राज्य एक लाइसेंसिंग अधिकारी की नियुक्ति करेगा जिसका हरिद्वार से कोई संबंध नहीं होगा. जिसके जवाब में मेहता ने कहा कि अदालत ऐसा कर सकती है. अदालत ने निर्देश दिया कि 2018 से अबतक जिला आयुर्वेदिक और यूनानी अधिकारी के रूप में पद संभालने वाले सभी अधिकारी अपने द्वारा की गई कार्रवाई पर जवाब दाखिल करेंगे. शीर्ष अदालत ने कहा कि यह संदेश बड़े पैमाने पर समाज में जाना चाहिए कि कोर्ट के आदेश का उल्लंघन नहीं होना चाहिए.

वहीं, जस्टिस अमानुल्लाह ने अदालत में मौजूद खाद्य और औषधि प्रशासन के संयुक्त निदेशक डॉ मिथलेश कुमार से सवाल किया कि, 'आप एक डाकघर के रूप में काम कर रहे हैं. आपके पास एक कानूनी विभाग है, क्या आपने विभाग से सहायता ली?' पीठ ने कहा कि अदालत नवंबर 2023 से आदेश पारित कर रही है, फिर भी अधिकारी ने ध्यान नहीं दिया, 'यह जानबूझकर किया गया है. यह कोई चूक नहीं है.' कोर्ट ने मेहता से सवाल किया कि, 'उन्हें इन विज्ञापनों के बारे में पता था और उन्होंने कुछ नहीं किया. वो बस चेतावनी जारी कर रहे हैं. क्या आप किसी सामान्य व्यक्ति के साथ ऐसा करेंगे?'

उत्तराखंड के खाद्य और औषधि प्रशासन के संयुक्त निदेशक डॉ. मिथिलेश कुमार ने कोर्ट में बताया कि, वो जून 2023 में आए थे और ये मामला उनके सामने नहीं हुआ था. जिसके जवाब में जस्टिस कोहली ने पूछा कि, 'हमें ऐसा क्यों करना चाहिए? आपकी ऐसा करने की हिम्मत कैसे हुई? आपने क्या कार्रवाई की? एक आदमी दया चाहता है लेकिन उन निर्दोष लोगों का क्या जिन्होंने ये दवाएं लीं?'

गौर हो कि, भ्रामक विज्ञापन मामले में बुधवार को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद और उसके मैनेजिंग डायरेक्टर आचार्य बालकृष्ण द्वारा दायर माफी के दूसरे एफीडेविट को खारिज कर दिया. इसके साथ ही अवमानना ​​कार्यवाही का सामना कर रहे पतंजलि के सह-संस्थापक योग गुरु बाबा रामदेव द्वारा दायर माफी हलफनामे को भी कोर्ट ने अस्वीकार कर दिया.

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Last Updated : Apr 10, 2024, 6:36 PM IST

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