नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को धोखाधड़ी, क्रूरता, दुष्कर्म और अप्राकृतिक अपराध जैसे गंभीर अपराधों के आरोपों पर कड़ा रुख अपनाया, क्योंकि हाल के दिनों में वैवाहिक विवादों से संबंधित अधिकांश शिकायतों में ऐसे आरोप लगाए गए हैं. शीर्ष अदालत ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि महिलाओं को इस बात को लेकर सावधान रहने की जरूरत है कि उनके हाथ में कानून के सख्त प्रावधान उनकी भलाई के लिए लाभकारी कानून हैं, न कि उनके पतियों को दंडित करने, धमकाने, उन पर हावी होने या उनसे जबरन वसूली करने का साधन.
शीर्ष अदालत ने इस बात पर भी जोर दिया कि पत्नी के भरण-पोषण के अधिकार का फैसला उस पर लागू होने वाले कारकों के आधार पर किया जाना चाहिए और यह इस बात पर निर्भर नहीं होना चाहिए कि पति ने अपनी पूर्व पत्नी को कितना भुगतान किया है या केवल उसकी आय पर निर्भर करता है.
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस पंकज मिथल की पीठ ने कहा कि आपराधिक कानून के प्रावधान महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तिकरण के लिए हैं, लेकिन कभी-कभी कुछ महिलाएं उनका इस्तेमाल ऐसे उद्देश्यों के लिए करती हैं, जिनके लिए वे हकदार नहीं होतीं.
जस्टिस नागरत्ना ने 73-पन्नों के निर्णय में कहा, "हाल के दिनों में, वैवाहिक विवादों से संबंधित अधिकांश शिकायतों में संयुक्त पैकेज के रूप में आईपीसी की धारा 498ए, 376, 377, 506 को शामिल करने की एक ऐसी प्रथा है, जिसकी इस न्यायालय ने कई अवसरों पर अलोचना की है."
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि कुछ मामलों में, पत्नी और उसका परिवार इन सभी गंभीर अपराधों के साथ एक आपराधिक शिकायत का उपयोग बातचीत के लिए एक मंच के रूप में और पति और उसके परिवार को अपनी मांगों का पालन करने के लिए एक तंत्र और हथियार के रूप में करते हैं, जिसमें ज्यादातर मुआवजे की मांग होती है. पीठ ने कहा कि कभी-कभी वैवाहिक विवाद के बाद गुस्से में ऐसा किया जाता है, जबकि कई बार अन्य मामलों में यह एक सुनियोजित रणनीति होती है. पीठ ने कहा, "दुर्भाग्य से, कानून की प्रक्रिया के इस दुरुपयोग में केवल पक्ष ही शामिल नहीं होते हैं."
पीठ ने कहा कि पुलिसकर्मी कभी-कभी चुनिंदा मामलों में कार्रवाई करने में जल्दबाजी करते हैं और पति, यहां तक कि उनके रिश्तेदारों को भी गिरफ्तार कर लेते हैं, जिनमें पति के बुजुर्ग और बिस्तर पर पड़े माता-पिता और दादा-दादी शामिल हैं. पीठ ने कहा कि ट्रायल कोर्ट एफआईआर में दर्ज 'अपराधों की गंभीरता' से प्रभावित होकर आरोपी व्यक्तियों को जमानत देने में हिचकिचाते हैं.