नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार 27 जनवरी को हिंडनबर्ग, अडानी और सेबी से जुड़ी एक याचिका को खारिज कर दिया. याचिकाकर्ता ने सेबी (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड ) से हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा अदानी समूह के खिलाफ लगाए गए आरोपों की जांच रिपोर्ट मांगने के लिए याचिका दायर की थी. 5 अगस्त, 2024 को कोर्ट के रजिस्ट्रार ने इसे पंजीकृत करने से मना कर दिया था. रजिस्ट्रार के इसी फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी थी.
कोर्ट ने क्या कहाः यह मामला न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ के समक्ष आया. पिछले साल अगस्त में अधिवक्ता विशाल तिवारी ने यह याचिका दायर की थी. सुनवाई के दौरान पीठ ने याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया और याचिकाकर्ता पर जुर्माना लगाने की चेतावनी दी. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अधिवक्ता के खिलाफ जुर्माना नहीं लगाया. यह घटनाक्रम हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा कंपनी बंद करने की घोषणा के कुछ सप्ताह बाद हुआ.
क्या था याचिका मेंः शीर्ष अदालत द्वारा पारित एक पूर्व आदेश का हवाला देते हुए, आवेदन में कहा गया था कि भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) को अपनी जांच पूरी करने के लिए तीन महीने का समय दिया गया था. यह जनहित और उन निवेशकों के हित में महत्वपूर्ण है, जिन्होंने अडानी समूह के खिलाफ 2023 में हिंडनबर्ग रिपोर्ट के प्रकाशन के बाद अपना धन खो दिया था. याचिका में कहा गया था कि निवेशकों के लाभ के लिए सेबी द्वारा की जा रही जांच और उसके निष्कर्षों के बारे में जानने का अधिकार आवश्यक है.
सेबी अध्यक्ष पर गंभीर आरोपः आवेदन में कहा गया था कि अमेरिका स्थित शॉर्ट-सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च ने एक रिपोर्ट में आरोप लगाया था कि सेबी की वर्तमान अध्यक्ष माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच के पास अडानी समूह के कथित धन गबन घोटाले से जुड़े ऑफशोर फंड में हिस्सेदारी है. याचिका में कहा गया था कि रिपोर्ट में व्हिसलब्लोअर दस्तावेजों का हवाला दिया गया था. यह रिपोर्ट अडानी समूह पर आयी रिपोर्ट के डेढ़ साल बाद आई है.