बिहार के उद्यमी आरके सिन्हा से बातचीत (ETV Bharat) पटना : सफलता आपके दरवाजे पर कैसे और कब आती है यह तय आपको करना होता है. उस मौके को अपना मौका बनाकर उसको सफलता में बदला जा सकता है. कुछ ऐसी ही कहानी है भारत के वरिष्ठ उद्योगपति रविंद्र किशोर सिन्हा की. ये कहानी उन युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत है जो कुछ खोने के बाद डिप्रेशन में चले जाते हैं.
जन्म स्थली को बनाया कर्मस्थली :रविंद्र किशोर सिन्हा पेशे से पत्रकार थे. उनका जन्म बिहार के बक्सर जिले में 22 सितंबर 1951 को हुआ था. लेकिन, पिताजी की नौकरी पटना में थी तो वह पटना चले आए. पढ़ाई पूरी करने के साथ-साथ वह पत्रकारिता करने लगे. उस समय बिहार की लीडिंग अखबार सर्च लाइट प्रदीप में वह युद्ध संवाददाता थे.
बिहार के उद्यमी आरके सिन्हा (ETV Bharat) कभी नौकरी से निकाले गए आज करोड़ों के मालिक : 1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच में जो लड़ाई हुई थी इसकी रिपोर्टिंग उन्होंने ही की थी और सच मानिए वहीं से रविंद्र किशोर सिंहा के जीवन में बदलाव आने लगे. जब युद्ध से वापस आए तो उनको नौकरी से हटा दिया गया. ऐसे में उन्होंने रिटायर आर्मी के जवानों के साथ SIS कंपनी की स्थापना की और यह कंपनी दिन दुगनी रात चौगुनी सफल होती गई.यहां तक की ये भारत की सबसे बडी सिक्योरिटी कंपनी बन गई.
कई राज्यों और देशों में कंपनी की ब्रांच : इसके ब्रांच कई देशों में फैले है. आज की तारीख में इस कंपनी के तहत 3 लाख से ज्यादा लोग रोजगार पा रहे हैं और इस कंपनी का टर्नओवर 13000 करोड़ से ज्यादा का हो चुका है. चूंकी रविंद्र किशोर सिन्हा पत्रकार थे तो वो 1966 में ही भारतीय जन संघ में शामिल हो गए थे. बाद में वह भाजपा के संस्थापक सदस्य बने थे और भाजपा ने 2014 में उन्हें राज्यसभा का सदस्य भी बनाया था.
बिहार के उद्यमी आरके सिन्हा (ETV Bharat) पत्रकार से बने उद्योगपति : आरके सिन्हा ने अपने 'सर्चलाइन प्रदीप' से निकाले जाने की कहानी बताई. उन्होंने कहा कि अखबार के मालिक पर ऊपर से दबाव था. मैं 1971 के भारत पाक युद्ध की रिपोर्टिंग से लौटकर इंदिरा गांधी के खिलाफ लिखना शुरू किया. उस वक्त इंदिरा गांधी वाम पंथियों के कहने पर अनापशनाप फैसले ले रहीं थीं. मैं उसके खिलाफ लिखता था. एक दिन सर्च लाइट के मालिक ने मुझे होटल मौर्या में बुलाया. उन्होंने तब तारीफ की लेकिन नौकरी से ये कहते हुए निकाल दिया. तब 230 रुपए महीना पगार थी.
''एक दिन केके बिरला ने बुलाया. वह सर्च लाइट प्रदीप के मालिक थे. पटना के रिपब्लिक होटल में. केके बिड़ला ने कहा तुम लिखते बहुत बढ़िया हो, लेकिन, इतना तीखा लिखोगे तो बिहार-झारखंड की मेरी सारी चीनी मीलें बंद हो जाएंगी. हजारों लोग बेरोजगार हो जाएंगे. यह जो अखबार हम निकालते हैं वह पत्रकारिता के लिए तो निकालते नहीं हैं. यह तो मेरा लाइजनर है, सरकारी अधिकारियों से काम कराने के लिए. यह नुकसान में चलता है. इसमें मेरा कोई बहुत ज्यादा इंटरेस्ट नहीं है.''- आरके सिन्हा, पूर्व बीजेपी सांसद और उद्योगपति
बिहार के उद्यमी आरके सिन्हा (ETV Bharat) जेपी मूवमेंट से कैसे जुड़े : उन्होंने बताया कि जेपी मूवमेंट की प्लानिंग दौर से ही जुड़े थे. सब लोग बाद में आए थे. ना लालू प्रसाद यादव थे ना नीतीश कुमार कुमार थे. हां शिवानंद तिवारी, वशिष्ठ नारायण सिंह, नरेंद्र सिंह, मिथिलेश कुमार सिंह लोग थे. बाकी लोग बाद में आए थे. सुशील मोदी और लालू यादव को इसलिए बाद में लिया गया, वो भी हमारी ही सलाह से क्योंकि यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन के प्रेसिडेंट और सेक्रेटरी थे.
''जब मैं शाम में जेपी के पास गया तो, जेपी ने कहा कि मारवाड़ी तहरा के निकाल देलस.. तब जेपी ने कहा कि चार लाख एक्स आर्मी मैन को भारतीय सेना हटा रही है. यह बच्चे जो हैं बंदूक चलाने के अलावा कुछ जानते ही नहीं है. यह 35 साल की उम्र करियर बनाने का होता है. यह नहीं होता है कि उनको नौकरी से निकाल दिया जाए. तो, मैंने कहा कि मैं क्या कर सकता हूं. तुम कुछ नहीं कर सकते हो तुम्हारे पास दिमाग है.''- आरके सिन्हा, पूर्व बीजेपी सांसद और उद्योगपति
बिहार के उद्यमी आरके सिन्हा (ETV Bharat) जेपी की प्रेरणा से खोली कंपनी : जेपी ने आरके सिन्हा से कहा कि जब तुम स्टोरी लिखते हो तो सारे उद्योगपति तुम्हारी तारीफ करते हैं. तुम्हारी पटना डायरी सबसे प्रसिद्ध है. तुम इनके बीच में ब्रिज होने का काम करो. उन उद्योगपतियों को जरूरत है अच्छे एम्पलाई की और इन गरीबों नौजवानों को जरूरत है, नौकरी मिल जाए. 1974 से लेकर 1989 तक मैं फ्री वॉलंटरी का काम किया. पत्रकारिता भी करता था. धर्मयुग और माया में लिखना था और यह भी करता था.
50 साल का लंबा संघर्ष : उस वक्त जहां-जहां मैने आदमी दिया था वहां लेबर इंस्पेक्टर आने लगे. वह कंपनियां परेशान होने लगीं तो, उन्होंने कहा कि आप लोग एक फॉर्मल कंपनी बना लीजिए तो हमने SIS की स्थापना की. पहले प्रोपराइटरशिप में शुरू किया फिर, 1985 में इसे प्राइवेट लिमिटेड बना दिया. 1974 का स्टार्ट किया हुआ 50 साल का जो सफर है. आज 3 लाख से ज्यादा लोगों को स्थाई नौकरी दे रहा है. 13000 करोड़ से ज्यादा का इसका टर्नओवर है. पूरे देश के कोने-कोने में कंपनी है. न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया में भी इसके ब्रांच हैं.
आरा से ऑस्ट्रेलिया तक का सफर : आरके सिन्हा ने अपने जन्म स्थान के बारे में सबको बताया. उन्होंने कहा कि मेरा जन्म आरा में नहीं हुआ था. मेरा जन्म बक्सर में हुआ था. 9 दिन का था जब मैं परिवार के साथ पटना चला गया था. पिताजी की विधानसभा में नौकरी लग गई थी. मैं पटना रहता था. फिर, बाकि परिवार बक्सर से आरा के बहियारा में आकर बस गया.
''पहले तो प्रिंटिंग की एक मशीन थी, जिसको पूरे लेटर को धागे में बांधकर तब टाइप होता था. एक भी लेटर यदि छूट जाता था तो अर्थ का अनर्थ हो जाता था. फ्रंट पेज पर जो खबर होती थी. अच्छी खबर है तो वह बिना कॉलम का होता था. उसे बहुत बढ़िया माना जाता था. उस खबर को टाइप करने के लिए हम लोग दो-दो बजे रात तक मेहनत करते थे. बहुत संघर्ष था. सुबह कॉलेज जाना फिर से रात तक काम करना, बहुत संघर्ष था.''- आरके सिन्हा, पूर्व बीजेपी सांसद और उद्योगपति
200 से ज्यादा कंपनियां : 200 से ज्यादा कंपनियां डायरेक्ट नहीं है. वह हमारे सहयोग और समर्थन से चल रही हैं. हमारी जो अपनी कंपनियां हैं वह लगभग 40 हैं. हमारी कंपनियों में सिर्फ यही काम होता है कि गरीबों को प्रशिक्षित कराके उनको रोजगार दिया जा सके. हमारी एक कंपनी है आद्या ऑर्गेनिक. आद्या ऑर्गेनिक लिमिटेड जो मेरी कंपनी है. उसमें सिर्फ मिलेट पर हम लोग काम कर रहे हैं. गाय के दूध पर काम करते हैं, गाय के घी पर काम करते हैं, कोल्हू से तेल निकलता है. शुद्ध तेल पर काम कर रहे हैं. कैसे स्वास्थ्य को ठीक रखा जाए, इस पर काम होता है.
बिहार के उद्यमी आरके सिन्हा (ETV Bharat) हेड ऑफिस बिहार में क्यों है : इस सवाल के जवाब में आरके सिन्हा बताते हैं कि हमारा रजिस्टर्ड हेड ऑफिस यदि बिहार में रहेगा तो, हम हजारों करोड़ रूपया टैक्स बिहार को देंगे. हमारा रजिस्टर्ड ऑफिस बिहार है तो, उसका यदि हम टैक्स जमा करेंगे तो उसका लगभग आधा भारत सरकार, बिहार सरकार को लौटाएगी जो, विकास के काम में लगता है. यही कारण है कि हमने बिहार में अपनी सारी कंपनियों का हेड ऑफिस रखा है.
'बिहारीपन नहीं भूला' :उदाहरण देते हुए उन्होंने समझाया कि मान लीजिए कि हमारा 13000 करोड रुपए का टर्नओवर है. उसका 18 पर्सेंट जीएसटी होता है, उसके बाद प्रोफेशनल टैक्स है, इनकम टैक्स है, सबकुछ दिया जाता है. मेरे अंदर से बिहारपन नहीं जा सकता है. वह बहुत ही अभागा आदमी होगा, जो अपने बिहारीपन को भुला देगा.
''बाबू वीर कुंवर सिंह की धरती पर हम लोग पैदा हुए हैं तो, हम क्यों दूसरों से कमतर अपने आप को क्यों आंके. किसी भी क्षेत्र में हम लोग बेहतर काम करते हैं. देखिए, आपके सामने गांव के कलाकार हैं. इनको मैं सम्मानित करता हूं. इनको बुलाता हूं. उनको सम्मान देता हूं. हमारी संस्कृति और कला सुरक्षित नहीं रहेगी तो अश्लीलता की तरफ लोग जाएंगे.''- आरके सिन्हा, पूर्व बीजेपी सांसद और उद्योगपति
बिहार के उद्यमी आरके सिन्हा (ETV Bharat) भाजपा के संस्थापक सदस्य कैसे थे :1966 में पंडित दीनदयाल उपाध्याय भारतीय जन संघ में लाए. जून का महीना, भागलपुर में मारवाड़ी स्कूल में संघ का एक ट्रेनिंग कैंप लगा हुआ था. जिसको शिक्षा वर्ग कहते हैं. उसी में दीनदयाल उपाध्याय जी ने कहा था कि तुममें प्रतिभा है तुम जनसंघ में आ जाओ. असल बात यह है कि उस समय रुपए का अवमूल्यन हुआ था. कोई समझता नहीं था कि इससे क्या नुकसान होगा.
''पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने अपने कमरे में बुलाया और कहां की जनसंघ में काम करोगे तो, मैंने कहा हां मैं करूंगा. तब मैं जनसंघ ज्वाइन किया. फिर मेरा सौभाग्य कि मैं भाजपा का संस्थापक सदस्य रहा. जब मुंबई में अटल बिहारी वाजपेई जी के अध्यक्षता में 1980 में भाजपा स्थापित हुई तो, उस समय में संस्थापक सदस्य था. मैं तो काम कर रहा था. बीच में मैं बीमार पड़ गया था.''- आरके सिन्हा, पूर्व बीजेपी सांसद और उद्योगपति
'लालू जी भी अच्छे मित्र हैं' :जब मुझे सबसे अमीर सांसद कहा गया. मेरे मित्र हैं दिग्गी राजा, मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री. वह भी मजाक करते रहते हैं कि देखो सबसे अमीर आ गया. मैं कहता हूं कि मैं तुमसे ज्यादा अमीर नहीं हूं. तुम लोग सारी बातें सामने रखते नहीं और हम कुछ छुपाते नहीं हैं. वही दूसरी तरफ, लालू प्रसाद यादव के साथ रहा हूं. जेपी मूवमेंट में वह मेरे साथ थे. मित्र हैं और साथ में रहें हैं उनसे हमारे संबंध अच्छे है. उनसे दोस्ती में राजनीति आड़े नहीं आती.
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