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एससी, एसटी की जातियां सामाजिक, आर्थिक स्थिति के मामले में एक समान नहीं हो सकतीं: न्यायालय - Supreme Court

Sub classification ensures : सुप्रीम कोर्ट की सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सुनवाई करते हुए कहा कि सभी एससी और एसटी अपने सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक के हिसाब से बराबर नहीं हो सकती हैं. पढ़िए पूरी खबर...

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By PTI

Published : Feb 7, 2024, 6:35 PM IST

Updated : Feb 7, 2024, 8:43 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि सभी अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) अपने सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक और सामाजिक दर्जे के हिसाब से समरूप नहीं हो सकतीं. न्यायालय इसका परीक्षण कर रहा है कि क्या राज्य कोटा के अंदर कोटा देने के लिए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को उप-वर्गीकृत कर सकते हैं. प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 23 याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा, 'वे (एससी और एसटी) एक निश्चित उद्देश्य के लिए एक वर्ग हो सकते हैं. लेकिन, वे सभी उद्देश्यों के लिए एक वर्ग नहीं हो सकते हैं.'

शीर्ष अदालत 'ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य' मामले में 2004 के पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के फैसले पर फिर से विचार करने के संदर्भ में सुनवाई कर रही है, जिसमें यह कहा गया था कि एससी और एसटी समरूप समूह हैं. फैसले के मुताबिक, इसलिए, राज्य इन समूहों में अधिक वंचित और कमजोर जातियों को कोटा के अंदर कोटा देने के लिए एससी और एसटी के अंदर वर्गीकरण पर आगे नहीं बढ़ सकते हैं.

पीठ ने कहा, 'इस अर्थ में एकरूपता है कि उनमें से प्रत्येक अनुसूचित जाति से संबंधित है. लेकिन आपका तर्क यह है कि समाजशास्त्रीय, आर्थिक विकास, सामाजिक उन्नति, शिक्षा उन्नति के संदर्भ में भी कोई एकरूपता नहीं है.' पीठ में न्यायमूर्ति बार गवई, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी, न्यायमूर्ति पंकज मिथल, न्यायमूर्ति मनोज मिश्र और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र मिश्रा भी शामिल हैं. केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने चिन्नैया फैसले के निष्कर्षों का विरोध किया और कहा कि यह राज्य को आरक्षण के क्षेत्र को उचित रूप से उप-वर्गीकृत करके उचित नीति तैयार करने से रोकता है और अवसर की समानता की संवैधानिक गारंटी को कम करता है.

उन्होंने कहा, 'केंद्र सरकार सैकड़ों वर्षों से भेदभाव झेल रहे लोगों को समानता दिलाने के लिए सकारात्मक कार्रवाई के उपाय के रूप में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की घोषित नीति के लिए प्रतिबद्ध है.' दूसरे दिन की कार्यवाही की शुरुआत में, वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने वंचित वर्गों के बीच वास्तविक समानता सुनिश्चित करने के लिए राज्यों को एससी और एसटी को उप-वर्गीकृत करने का अधिकार दिए जाने के पक्ष में तर्क दिया. उन्होंने कहा, '21वीं सदी में हम उन लोगों के लिए समानता की बात कर रहे हैं जो सदियों से अपमानित और वंचित रहे हैं.'

सिब्बल ने 2004 के फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि इसमें अनुसूचित जाति को गलत तरीके से एक समरूप समूह माना गया है. सिब्बल ने कहा कि पंजाब में लगभग 32 प्रतिशत एससी आबादी है और राज्य को समाज के सबसे कमजोर वर्ग के समर्थन के लिए विशेष व्यवस्था करने से नहीं रोका जा सकता है. पीठ ने संपत्ति रखने और चुनाव लड़ने जैसे कई अधिकारों के लिए कोई योग्यता निर्धारित नहीं करने के संबंध में संविधान निर्माताओं की सराहना की. सुनवाई गुरुवार को भी जारी रहेगी.

मंगलवार को, शीर्ष अदालत ने कहा कि वह अपने 2004 के फैसले की वैधता की जांच करेगी जिसमें कहा गया था कि राज्यों के पास कोटा देने के लिए एससी और एसटी को आगे उप-वर्गीकृत करने की शक्ति नहीं है. इसने स्पष्ट कर दिया कि वह मात्रात्मक डेटा से संबंधित तर्कों में नहीं पड़ेगा जिसके कारण पंजाब सरकार को कोटा के अंदर 50 प्रतिशत कोटा प्रदान करना पड़ा. पीठ 23 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है जिसमें पंजाब सरकार द्वारा दायर एक प्रमुख याचिका भी शामिल है जिसमें पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले को चुनौती दी गयी है.

उच्च न्यायालय ने पंजाब कानून की धारा 4(5) को असंवैधानिक बताते हुए निरस्त कर दिया था जो 'वाल्मिकियों' और 'मजहबी सिखों' को अनुसूचित जाति का 50 फीसदी आरक्षण देती थी. अदालत ने कहा था कि यह प्रावधान ई वी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य के मामले में उच्चतम न्यायालय के 2004 के पांच सदस्यीय संविधान पीठ के फैसले का उल्लंघन करता है.

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Last Updated : Feb 7, 2024, 8:43 PM IST

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