भागलपुर:खो खो विश्व कप विजेता टीम की खिलाड़ी मोनिका शाह बताती हैं कि "जब मैं प्रैक्टिस किया करती थी तो लोग तरह-तरह के ताने मारते थे. मेरे माता-पिता से कहते थे कि खेल कर क्या करेगी, शादी कर दो. खेल में कुछ नहीं है, समय बर्बाद कर रही है. कम से कम कुछ काम करेगी तो पैसा तो मिलेगा. तुम लोगों ने इसे सिर पर चढ़ा रखा है."
बिहार की बेटी मोनिका शाह की संघर्ष की कहानी: भागलपुर के एक छोटे से गांव गोपालपुर के डिमाहा की रहने वाली मोनिका शाह जीत का परचम लहराने के बाद शान से अपने गांव लौटी तो ताना मारने वाले लोगों ने ही उनका दिल खोलकर स्वागत किया. मोनिका शाह ने बताया कि किस तरह से संघर्ष करते हुए उन्होंने सफलता की ऊंचाइयों को छूआ है. बेहद गरीब परिवार से आने वाली मोनिका शाह के पिता कभी ऑटो चलाकर तो कभी सब्जी बेचकर परिवार का भरण-पोषण करते थे.
लकड़ी पर खाना बनाती दिखी वर्ल्ड चैंपियन: ईटीवी भारत संवाददाता संजीत कुमार जब मोनिका शाह के घर पहुंचे तो पाया कि मिट्टी के चूल्हे पर लकड़ी से आज भी उनके यहां खाना बनता है. खुद मोनिका शाह खाना पकाती नजर आईं. इस दौरान उन्होंने अपने जीवन की कई खट्टी मिट्ठी यादों को साझा किया.
"बहुत कठिनाइयों भरा रहा मेरा ये सफर. मेरे लिए गर्व का विषय है कि परेशानियों के बाद भी मैं वर्ल्ड चैंपियन बनी. मेरे ही लिए नहीं बल्कि मेरे गांव और पूरे बिहार के लिए यह गर्व का विषय है. मेरी कामयाबी का कारण घरवालों का सपोर्ट है. मेरे पैरेंट्स ने बहुत सपोर्ट किया है, जिसके कारण ही मैं अपनी मंजिल तक पहुंच सकी हूं. वर्ल्ड कप से पहले अगर डिमाहा गांव के बारे में बताती थी तो किसी को पता नहीं होता था. लेकिन आज सब जानते हैं कि मैं डिमाहा में रहती हूं और ये भारत का हिस्सा है."-मोनिका शाह, खो-खो खिलाड़ी
मोनिका शाह की अभिभावकों से अपील:मोनिका शाह ने लोगों से अपील करते हुए कहा कि जिस तरह से मेरे माता-पिता ने लोगों की परवाह किए बगैर मेरा सपोर्ट किया उसी तरह से आप भी अपने बच्चों का समर्थन करें. आपके बच्चे हैं, उनके सपनों को पूरा करना आपका कर्तव्य है. बच्चों को थोड़ी सी स्वतंत्रता दीजिए और फिर देखिए वो कहां से कहां पहुंच जाता है. उन्होंने आगे कहा कि आगामी दिनों कॉमनवेल्थ गेम्स और 2036 में भारत में होने वाले ओलंपिक गेम में हिस्सा लेकर देश का मान सम्मान बढ़ाना चाहती हूं.
ऑटो चालक हैं पिता : ऑटो चालक की बेटी मोनिका ने अपना पूरा जीवन अभाव में बिताया, लेकिन कभी भी इसे अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया. पिता बिनोद शाह के त्याग और संघर्ष ने मोनिका को बचपन से ही जिम्मेदारी का एहसास करा दिया था. यही वजह है कि कड़े परिश्रम और लगन के दम पर मोनिका ने सफलता के शिखर को छूकर अपनी काबिलियत को साबित किया.
खेल किट भी खरीदने के नहीं थे पैसे:ऑटो चालक पिता की इतनी कमाई नहीं थी कि वो बेटी के लिए खेल किट खरीद सकें, लेकिन बेटी के सपनों को पूरा करने के लिए उन्होंने जमा पूंजी जोड़कर वो सभी जरूरतें पूरी करने की कोशिश की जो एक खिलाड़ी को चाहिए. मोनिका ने कहा कि पिता की मेहनत और उनका विश्वास मुझे आज इस मुकाम पर ले आया. जीवन में विषम आर्थिक परिस्थितियों का सामना करना पड़ा, लेकिन मेरे पिता जी ने कभी भी एहसास नहीं होने दिया.
'खाली पैर अभ्यास': मोनिका ने बताया कि घर के आर्थिक हालात कभी अच्छे नहीं रहे. आय का एकमात्र स्रोत पिता का ऑटो है और उसी से घर चलता है. पिता को मुझ पर पूरा भरोसा था कि एक दिन मैं परिवार का नाम रोशन करूंगी. मोनिका ने बताया कि मेरे पास कभी पैसे नहीं हुआ करते थे, लेकिन मेरे पिता ने मुझे खेल किट और अन्य संसाधन दिलाने के लिए कड़ा संघर्ष किया. उन्होंने बताया कि खेल के लिए एक जूते और टीशर्ट का पैसा नहीं था. खाली पैर अभ्यास किया. स्कॉलरशिप के पैसे से पूरे साल का मेंटेनेंस करते थे. घर से जो सपोर्ट मिलता उस पैसे से मैं खेल से जुड़े सामान खरीदते थे.