सत्यजीत रे, भारत ही नहीं विदेशों में कला कौशल का लोहा मनवाया - satyajit ray
Satyajit Ray : 23 अप्रैल को भारत के सबसे महान फिल्मकार सत्यजीत रे की पुण्य तिथि है. फिल्म के क्षेत्र में वे एक साथ कई क्षेत्रों में पकड़ रखते थे. उनकी कुछ फिल्मों ने 9-10 पुरस्कार अपने नाम किया था. भारत ही नहीं दुनिया के अन्य हिस्सों में उनकी फिल्मों के नाम कई प्रतिष्ठत पुरस्कार हैं. पढ़ें पूरी खबर...
हैदराबाद : 2 मई 1921 को पश्चिम बंगाल के कोलकाता में सत्यजीत रे का जन्म हुआ था. सुप्रभा रे व सुकुमार रे के पुत्र सत्यजीर का का जलवा पूरी दुनिया के फिल्म इंडस्ट्री में रहा है. वे एक बेहतरीन फिल्म निर्देशक, फिल्म निर्माता, पटकथा लेखक,लेखक थे. उनके काम करने का तरीके का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 3 दर्जन से फिल्में उन्होंने बनाया. इनमें से 32 के लिए नेशनल फिल्म अवार्ड से नवाजा गया था. इसके अलावा इन्हें भारत के बाहर भी कई फिल्मों के लिए पुरस्कृत किया गया..
फिल्म इंडस्ट्री में उनके विशेष योगदान के लिए को उन्हें लाइफ टाइम एजीवमेंट ऑस्कर पुरस्कार से नवाजा गया. इसके अलावा उन्हें भारत रत्न, पद्म भूषण, पद्म विभूषण, दादा साहब फाल्के पुरस्कार सहित कई दर्जन पुरस्कारों से उनको नवाजा जा चुका है. विशेषकर कला सिनेमा में उन्हें महारत हासिल था.
सत्यजीत रे के नाम प्रमुख पुरस्कारें
1965 पद्म भूषण
1976 पद्म विभूषण
1985 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार
1992 में लाइफटाइम अचीवमेंट ऑस्कर पुरस्कार
1992 में भारत रत्न
सत्यजीत रे से जुड़ी कुछ खास बातें
सत्यजीत रे, माणिक दा के नाम से भी जाने जाते थे.
2 मई 1921 को पश्चिम बंगाल के कोलकाता में उनका जन्म हुआ था.
लंबी बीमारे के बाद 23 अप्रैल 1992 को सत्यजीत रे का निधन हो गया.
फिल्म के क्षेत्र में उन्होंने काफी उंचा मुकाम हासिल किया था.
वे सुंदर व्यक्तित्व वाले काफी लंबे कद के थे. वे 6 फीट 4 इंच लंबे थे.
माना जाता है सत्यजीत रे की नजर काफी अदभूत था. वे हर चीज को अलग एंगल से देखते थे.
सत्यजीत रे का मानना था जुबान कोई भी हो, शब्दों की अपनी लय होती है. हर हाल में लय सही होनी चाहिए. इसका ध्यान वे अपनी फिल्मों में रखते थे.
उनका मानना था कि फिल्मों में डायलॉग का उपयोग वहीं किया जाना चाहिए, जहां दृ्श्य नहीं बोले वहीं पर डॉयलॉग का उपयोग किया जाना चाहिए.
कई भाषाओं के जानकार सत्यजीत रे काफी धीमी आवाज में बात करते थे.
सत्यजीत रे की पत्नी नाम बिजोया रे है.
सत्यजीत रे ने पहली बार 1976 में हिंदी फिल्म शतरंज का खिलाड़ी बनवाई. यह फिल्म प्रेमचंद की कहानी पर आधारित है. बता दें कि इससे पहले वे दुनिया भर में फिल्म इंडस्ट्री में उनका जलवा कायम हो चुका था.
सिक्किम का 1975 में भारत के साथ विलय हुआ. इससे पहले 1971 मे डाक्यूमेंट्री बनाई, जो काफी चर्चित रहा.
...अभिनेत्री ऑडरी हेपबर्न के हाथों पुरस्कार लेने की मांग जब सत्यजीत रे को लाइफटाइम अचीवमेंट ऑस्कर पुरस्कार दिये जाने की घोषणा हुई तो उन्होंने मशहूर अभिनेत्री ऑडरी हेपबर्न के हाथों ये पुरस्कार ग्रहण करने की इच्छा व्यक्त की. ऑस्कर समिति की ओर से उनकी इस मांग को स्वीकार कर लिया गया. बीमार होने के कारण वे समारोह स्थल पर नहीं पहुंचे. लेकिन उनके लिए विशेष व्यवस्था के तहत वर्चुली कोलकाता के अस्पताल के बिस्तर पर बैठे-बैठे 30 मार्च 1992 को यह सम्मान दिया गया. यह वीडियो पूरी दुनिया में दिखाया गया. लाइफटाइम अचीवमेंट ऑस्कर पुरस्कार घोषण के बाद भारत सरकार की ओर से उन्हें भारत रत्न दिये जाने की घोषणा की गई. कुछ ही समय बाद 23 अप्रैल 1992 को सत्यजीत रे का निधन हो गया.
इनके सम्मान में खुला है संस्थान सत्यजीत रे को सम्मान देने के लिए 1995 में कोलकाता में सत्यजीत रे फिल्म एंड टेलीविजन संस्थान की स्थापना की गई. भारत सरकार के अधीन सूचना प्रसारण मंत्रालय के अधीन स्वायत्त शैक्षणिक संस्थान है. फिल्म विधा के क्षेत्र में इस संस्थान का भारत में जलवा है. यहां से कई बेहतरीन कलाकार, निर्देशक सहित क्षेत्रों के लोग आज के समय में काम कर रहे हैं.