इंदौर। पान के जायके को किसी दौर में भले उत्तर प्रदेश और लखनऊ के नवाबों का नवाबी शौक और शगल माना जाता रहा हो, लेकिन मालवा इलाके में पान खाने और खिलाने की परंपरा 6 पीढ़ियों से भी पुरानी है. यहां होलकर शासकों के अलावा अहिल्याबाई होलकर के राजवाड़ा में नियमित पान भेजा जाता था. इतना ही नहीं अपने पान के शौक के कारण होलकर राजघराने ने बाकायदा सरकारी पान की दुकान भी खुलवा रखी थी जो आज भी पान खिलाने की शाही परंपरा को निभा रही है.
होलकर राजवंश को खिलाते थे पान
दरअसल, प्राचीन काल से ही मालवा अंचल में तरह-तरह के पान खाना सिर्फ शौक नहीं बल्कि रिवायत का हिस्सा रहा है. यहां 1860 में बसे चौरसिया परिवार ने 1875 में पान की दुकान लगाई थी. इस परिवार के बच्चू चौरसिया के होलकर राजवंश से संपर्क के कारण राज परिवार के लोग इस दुकान पर पान खाने के लिए आने लगे. इसके बाद राजघराने और राजकीय लोगों के पान उनकी दुकान पर बनने के कारण उनकी दुकान का नाम ही सरकारी तंबोली पड़ गया.
पाकिस्तान से आते थे पान
इसके बाद से ही यह परिवार राजा महाराजाओं के अलावा इंदौरी पान के शौकीनों को पान के तरह-तरह के जायके से रू-ब-रू करा रहा है. फिलहाल इंदौर में सरकारी तंबोली के अलावा अन्य करीब 1000 से ज्यादा दुकानें हैं, लेकिन उसके बावजूद अब पान के जायके के स्थान पर पाउच वाले और गुटके ने अपनी जगह बना ली है. लिहाजा किसी जमाने में जो पान पाकिस्तान बेटमा, अंधेरा और उज्जैन के नागदा आदि इलाकों से आता था. वह अब धीरे-धीरे आना बंद हो गया है.
6 पीढ़ियों से चल रही है ये दुकान
फिलहाल, कोलकाता, ओडिशा, बनारस आदि स्थान से इंदौर में पान की आवक हो रही है. सरकारी तंबोली को सातवीं पीढ़ी में चला रहे महेश कुमार चौरसिया बताते हैं कि "अब पहले जैसे पान खाने के शौकीन लोग बहुत कम बचे हैं. 75 प्रतिशत लोगों ने पान खाने के स्थान पर अब पाउच और गुटखा खाना शुरू कर दिया है. नतीजन पर्व की तुलना में पान खाने वालों की संख्या अब 25 फ़ीसदी ही बची है."