सागर। लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण के मतदान से पहले मुख्यमंत्री मोहन यादव के समक्ष भाजपा की सदस्यता लेने वाली बीना से कांग्रेस विधायक निर्मला सप्रे ने एक हफ्ते बाद भी इस्तीफा नहीं दिया है. चर्चा है कि वह कांग्रेस में ही रहना चाहती हैं. लेकिन दूसरी तरफ मतदान के ठीक पहले पार्टी को दगा देने वाली विधायक को लेकर कांग्रेस भी सख्त रवैया अपना रही है. हालांकि कांग्रेस ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं कि अपनी विधायक पर वह किस तरह की कार्यवाही करेगी. दूसरी तरफ भाजपा भी सागर में मतदान हो जाने के बाद मामले को ज्यादा तूल नहीं दे रही है. इस पूरे मामले में बीना विधायक निर्मला सप्रे चौतरफा घिरी हुई नजर आ रही हैं और उनके भविष्य पर एक तरह से तलवार लटक गई है.
5 मई को अचानक बीजेपी में हुईं शामिल
सागर लोक सभा सीट के लिए 7 मई को मतदान था. प्रचार प्रसार के अंतिम दिन सागर संसदीय सीट की सुरखी विधानसभा के राहतगढ़ में अचानक सुबह-सुबह मुख्यमंत्री की आमसभा रखी गई. ये इलाका खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री गोविंद सिंह राजपूत के विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है. आमतौर पर लोग इसे चुनावी आमसभा मान रहे थे, लेकिन आम सभा के दौरान हुई एक घटना ने मध्य प्रदेश की राजनीति में हलचल मचा दी. दरअसल सागर जिले के एकमात्र बीना से कांग्रेस की विधायक निर्मला सप्रे चुनाव जीती थी, बाकी सभी सीटों पर भाजपा ने जीत हासिल की थी. लेकिन राहतगढ़ में 5 मई को मुख्यमंत्री की सभा के दौरान निर्मला सप्रे भी भाजपा के मंच पर नजर आईं और उन्होंने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की. जब निर्मला सप्रे राहतगढ़ में भाजपा में शामिल हो रही थी, तब कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता पवन खेड़ा की सागर में प्रेस वार्ता चल रही थी और सागर के शहर एवं ग्रामीण अध्यक्ष भी प्रेसवार्ता में मौजूद थे. मीडिया में खबर के आते ही कांग्रेस से लेकर भाजपा वाले भी सकते में रह गए, क्योंकि इस तरह की घटना की दूर-दूर तक चर्चा भी नहीं थी.
अब इस्तीफा देने को तैयार नहीं हैं निर्मला सप्रे
भाजपा में शामिल होने के बाद कांग्रेस विधायक निर्मला सप्रे ने अभी तक इस्तीफा नहीं दिया है. एक तरफ जहां भाजपा में शामिल होने के बाद उन्होंने प्रदेशाध्यक्ष जीतू पटवारी पर हमला बोला था और कहा था कि महिलाओं पर की गई उनकी टिप्पणी से आहत होकर और बीना का विकास अवरुद्ध ना हो, इसलिए भाजपा में शामिल हुई हैं. उनके भाजपा में शामिल होने पर कांग्रेस ने हैरानी जताते हुए कहा था कि भाजपा जिस तरह से सत्ता का दुरुपयोग कर लोकतंत्र को नुकसान पहुंचा रही है, वह भविष्य के लिए काफी हानिकारक है. जब अच्छी खासी बहुमत वाली सरकार चल रही है, तो अनावश्यक कांग्रेस विधायकों को तोड़ने की क्या जरूरत है. यहां तक तो सब ठीक था, लेकिन भाजपा में शामिल होने के बाद जब निर्मला सप्रे से उनके इस्तीफे की बात पूछी गई तो उन्होंने जल्दी इस्तीफा देने की बात कही थी. लेकिन अभी तक विधायक पद से इस्तीफा नहीं दिया.
कांग्रेस-बीजेपी ने साधी चुप्पी
निर्मला सप्रे द्वारा अभी तक इस्तीफे नहीं देने पर मंत्री गोविंद सिंह राजपूत भी शांत हैं तो दूसरी तरफ कांग्रेस भी इस मामले में अभी तक चुप्पी साधे हुए है. राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि निर्मला सप्रे अब कांग्रेस में ही रहना चाहती हैं और वह पार्टी के आला नेताओं से मिलकर भाजपा में शामिल होने की हालातों के बारे में अपना पक्ष रखना चाहती हैं. दूसरी तरफ भाजपा चुप्पी इसलिए साधे है कि उसके पास पर्याप्त संख्या बल है, उसे किसी तरह की विधायक तोड़ने की जरूरत नहीं है. चुनाव के दौरान कांग्रेस का मनोबल तोड़ने के लिए उनके द्वारा चली गई चाल कामयाब हो चुकी है. अब ये माथापच्ची कांग्रेस को करना है कि निर्मला सप्रे पर क्या फैसला लेना है.