देहरादून (उत्तराखंड):देश दुनिया में ग्लोबल वार्मिंग एक गंभीर समस्या बनी हुई है. मौजूदा स्थिति ये है कि लगातार तापमान में बढ़ोतरी देखी जा रही है. तापमान में अचानक बढ़ोतरी नहीं हुई है बल्कि, पिछले कुछ दशकों से तापमान में तेजी से वृद्धि हो रही है. यही वजह है कि वैज्ञानिक इस बात का दावा कर रहे हैं कि साल 2024 में भीषण गर्मी पड़ने की संभावना है. मौसम विज्ञान केंद्र की मानें तो इस साल देश में अप्रैल से जून महीने के बीच काफी ज्यादा गर्मी पड़ेगी. यानी तापमान सामान्य से 2 से 3 डिग्री ज्यादा रहने वाला है. जिसका असर सीधे लोगों पर देखने को मिलेगा.
उत्तराखंड की बात करें तो प्रदेश में भी पिछले कुछ दशकों से तापमान में बढ़ोतरी हो रही है, जिसके चलते पर्वतीय क्षेत्रों पर भी असर पड़ता दिखाई दे रहा है. देश के तमाम हिस्सों में अगर तापमान बढ़ता है तो हिमालयी राज्यों पर भी इसका असर पड़ेगा. इससे उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में मौजूद ग्लेशियर के पिघलने की संभावना भी तेज हो जाएगी. साथ ही जंगलों में आग लगने की घटनाओं के भी बढ़ने की संभावना है. दरअसल, तापमान बढ़ने का मुख्य वजह ग्लोबल वार्मिंग है, जिसके चलते ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. अगर पारा चढ़ेगा तो ग्लेशियर के पिघलने गति भी तेज होने की संभावना है.
सालाना 15 से 20 मीटर पीछे खिसक रहे ग्लेशियर:वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान देहरादून (Wadia Institute of Himalayan Geology) के वैज्ञानिकों की मानें तो उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्रों में करीब एक हजार ग्लेशियर मौजूद हैं, लेकिन गंगोत्री बेसिन में मौजूद ग्लेशियर काफी तेजी से मेल्ट यानी पिघल रहा है. साल 1935 से 2022 के बीच गंगोत्री ग्लेशियर करीब 1726.9 मीटर तक पिघल गया है. यानी पिछले 87 सालो में गंगोत्री ग्लेशियर 1726.9 मीटर ऊपर की ओर खिसक गया है.
वाडिया संस्थान से मिली अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, साल 2017-22 के बीचगंगोत्री ग्लेशियर के पिघलने की रफ्तार काफी तेज रही. क्योंकि, इस दौरान करीब 169 मीटर ग्लेशियर पिघली है, लेकिन उत्तराखंड रीजन में मौजूद सभी ग्लेशियर के पिघलने की रफ्तार की बात करें तो प्रदेश के ग्लेशियर सालाना 15 से 20 मीटर तक पिघल रहे हैं. जो ग्लेशियर के संकट की ओर इशारा कर रहा है.
हिमालयी क्षेत्रों का बढ़ रहा तापमान:वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के डायरेक्टर कालाचंद साईं ने बताया कि लगातार बढ़ते तापमान को देखते हुए हिमालयी क्षेत्रों में मौजूद ग्लेशियर का अध्ययन किया गया. जिससे पता चला है कि न सिर्फ ग्लेशियर पिघल रहे हैं. बल्कि, ग्लेशियर झील भी बड़े हो रहे हैं. हिमालयी क्षेत्रों में साल 1993 से 2022 के बीच करीब 0.028°C (डिग्री सेल्सियस) तापमान में बढ़ोतरी हुई है.
इसी तरह से साल 2013 से 2022 के बीच 0.079°C (डिग्री सेल्सियस) तापमान में बढ़ोतरी हुई है. यानी हर 10 साल में दो से तीन गुना औसतन तापमान में बढ़ोतरी हो रही है. अगर ऐसे ही तापमान में बढ़ोतरी होती रही तो अगले 50 सालों में कोई आपदा आने की आशंका होगी तो वो आपदा 50 साल से काफी पहले आ सकती है.
पद्मभूषण अनिल जोशी बोले- बारिश के पानी का संग्रहण जरूरी:लगातार बढ़ रहे तापमान के सवाल पर पद्मश्री और पद्मभूषण पर्यावरणविद् अनिल प्रकाश जोशी का कहना है कि इस साल बहुत ज्यादा गर्मी पड़ेगी. क्योंकि, अल नीनो (EL-Nino एक जटिल मौसम पैटर्न है, जो प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में समुद्र के तापमान में बदलाव के कारण घटित होते हैं) अपनी जगह बना रहा है. ऐसे में अगर समुद्री तापक्रम बढ़ेगा तो यहां भी तापमान बढ़ेगा.
ऐसे में जून तक हालात बेहद खराब हो जाएंगे. तापमान बढ़ने से जल स्रोतों पर असर पड़ने के साथ ही जंगलों में आग की घटनाएं भी बढ़ेगी. जो कई जगहों पर देखने को मिलेगा. खासकर एशिया में इसका असर ज्यादा देखने को मिलेगा. ग्लोबल वार्मिंग का असर जो भी हो, लेकिन स्थानीय स्तर पर लोगों को काम करने की जरूरत है. ताकि, बारिश के पानी का संग्रहण किया जा सके.