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3 दिन के बच्चे की सर्जरी, आंतें और लीवर को चेस्ट कैविटी में किया गया फिक्स - CHEST CAVITY

डायाफ्राम चेस्ट कैविटी और पेट के बीच एक बाधा है. इसकी न होने पर आंत, लीवर जैसे अंग चेस्ट कैविटी में जा सकते हैं.

Rare Surgery
3 दिन के बच्चे की सर्जरी करने वाली टीम (ETV Bharat)

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 17, 2025, 3:43 PM IST

हैदराबाद: तेलंगाना के हैदराबाद में समर्पित डॉक्टरों की एक टीम ने तीन दिन के बच्चे की दुर्लभ और लाइफ सेविंग सर्जरी सफलतापूर्वक पूरी की. बच्चा गंभीर डायाफ्रामिक डिफेक्ट के साथ पैदा हुआ था. हैदराबाद के बंजारा हिल्स स्थित लिटिल स्टार चिल्ड्रन हॉस्पिटल की मेडिकल टीम ने लगभग 4 घंटे तक चली इस अभूतपूर्व प्रक्रिया को अंजाम दिया.

जानकारी के मुताबिक सऊदी अरब में रहने वाले हैदराबाद के एक एनआरआई सैयद हैदर हुसैन नासिर पिछले महीने अपनी पत्नी की डिलीवरी के लिए शहर आए थे. रूटीन पेरेंटल टेस्ट के दौरान यह पाया गया कि गर्भावस्था के चौथे महीने में बच्चे का डायाफ्राम ठीक से नहीं बना था. लिटिल स्टार अस्पताल में जांच करने पर यह पुष्टि हुई कि उसका डायाफ्राम अधूरा था.

डायाफ्राम चेस्ट कैविटी और पेट के बीच एक महत्वपूर्ण बाधा है. इसकी अनुपस्थिति से आंत, लीवर, किडनी और स्पलीन जैसे अंग चेस्ट कैविटी में जा सकते हैं, जिससे हार्ट और फेफड़े गंभीर रूप से संकुचित होने का खतरा होता है. इसे मेडिकल की भाषा में डायाफ्रामेटिक हर्निया कहा जाता है. यह हर 10 हजार जन्में बच्चों में से एक में होती है और नवजात शिशु के लिए जानलेवा बन जाती है.

जटिल और लाइफ चेंजिग प्रोसिजर
पिछले साल 20 दिसंबर को बच्चे का जन्म इन जटिलताओं के साथ हुआ था. तीन दिनों में मेडिकल टीम ने दोष को दूर करने के लिए एक जटिल सर्जरी की. ओपन सर्जरी के बजाय, बच्चे की छाती पर थ्री प्वाइंट पर छोटे चीरे लगाए गए. इन छेदों के माध्यम से पोर्टेक्स जाल से बना एक आर्टिफिशियल डायाफ्राम सावधानीपूर्वक चेस्ट में डाला गया.

आर्टिफिशियल डायाफ्राम लगाने से पहले, अंगों, आंतों, लीवर, किडनी और पेट की अन्य ओर्गन्स को सावधानीपूर्वक उनकी उचित स्थिति में वापस रखा गया. एक बार आर्टिफिशियल डायाफ्राम लगाए जाने के बाद, यह एक अवरोध के रूप में कार्य करता है, अंगों को उनकी उचित स्थिति में सुरक्षित रखता है और उन्हें महत्वपूर्ण अंगों को दबाने से रोकता है.

सर्जरी के बाद देखभाल और रिकवरी
सर्जरी के बाद बच्चे की स्थिति पर तीन सप्ताह तक बारीकी से नजर रखी गई ताकि पूरी तरह से ठीक हो सके. वरिष्ठ नियोनेटोलॉजिस्ट डॉ. सतीश गंटा ने इस बात पर जोर दिया कि बच्चे के स्वास्थ्य में काफी सुधार हुआ है.

उन्होंने कहा, "आर्टिपिशियल डायाफ्राम स्वाभाविक रूप से आस-पास की मांसपेशियों और टिशू के साथ मिल जाएगा, जिससे यह बच्चे का फिजिकल स्ट्रेक्चर का एक स्थायी और कार्यात्मक हिस्सा बन जाएगा. बच्चे के बड़े होने पर कोई समस्या नहीं होगी."

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