छिंदवाड़ा।पराली जलाने के मामले में पंजाब के बाद दूसरे नंबर पर मध्यप्रदेश है. पराली से एक नहीं, कई समस्याएं पैदा होती है. पर्यावरण तो खराब होता ही है, खेत की उर्वरा शक्ति भी कम हो जाती है. लेकिन अब मध्यप्रदेश के महाकौशल क्षेत्र में किसानों ने पराली को लाभ का सौदा बना लिया है. किसानों ने पराली से मालामाल होने का रास्ता खोज लिया है. किसान अब पराली को जलाने के वजाय उसे भूसे के रूप में व्यापारिक उपयोग करने लगे हैं. इसके अलावा पराली से ग्रीन खाद बनाने के साथ ही कई किसान मालामाल हुए हैं.
मक्के की पराली का स्टैंड रॉड के रूप में उपयोग
मध्य प्रदेश में मक्के की फसल काफी उगाई जाने लगी है. छिंदवाड़ा जिले के कुंडाली कला गांव के किसान मोहन रघुवंशी ने पराली जलाने की जगह उसका ऐसा प्रयोग किया कि अब उसे दोगुना फायदा हो रहा है. दरअसल, मक्के की फसल के बाद किसान ने बीच में सेम की फसल लगा दी. सेम की फसल को खड़ा रखने के लिए स्टैंड रॉड की जरूरत पड़ती है, ताकि जमीन पर उसकी बेल ना चल सके. किसानों ने उनकी जगह पर मक्के के पौधों का उपयोग किया है. मोहन रघुवंशी ने सेम की बेल को मकई के पौधों के ऊपर चढ़ा दिया ताकि बेलों को दूसरे सहारे की जरूरत ना पड़े. इसकी वजह से किसान के स्टैंड रॉड का खर्च बचा और बाद में इस पर ही प्लाऊ चलाकर ग्रीन खाद भी बना लिया.
पराली से भूसा बनाकर शुरू किया व्यापार
आमतौर पर फसल काटने के बाद खेतों में पराली जलाने के लिए आग लगा दी जाती है. जिसकी वजह से खेतों में लाभ पहुंचाने वाले कीट और सूक्ष्म तत्व भी नष्ट हो जाते हैं, लेकिन पराली से मुनाफा भी कमाया जा सकता है. बामनवाड़ा के किसान गोवर्धन चंद्रवंशी ने पराली से भूसा बनाकर व्यापार शुरू किया है. उन्होंने बताया कि पहले वे पराली जला दिया करते थे. लेकिन बाद में उन्होंने पराली से भूसा बनाना शुरू किया. अब भूसा छिंदवाड़ा जिले के अलावा पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ में सप्लाई करते हैं, जिससे उन्हें लाखों रुपए का मुनाफा हो रहा है.
खेतों में बनाई जा रही पराली से ग्रीन खाद
छिंदवाड़ा उद्यानिकी कॉलेज के डीन डॉ. विजय पराड़कर ने बताया कि पराली से अपने खेतों में ही ग्रीन खाद बनाई जा सकती है, जिससे मिट्टी उपजाऊ होगी. इसके लिए बाजार में मिलने वाला डी कंपोजर का एक डिब्बा काफी होता है, जिसे 120 लीटर पानी में मिलाना होता है. इसके साथ में 1 किलो बेसन और 1 से 2 किलो गुड़ डालना है. जिसे घड़ी की दिशा में लकड़ी के माध्यम से चलाना होता है. ऐसे ही लकड़ी के माध्यम से 4 से 5 दिन तक दिन में तीन बार चलाएं. जब 5 से 6 दिन में इस घोल में कीटाणु दिखें और बदबू आने लगे तो इसका खेतों में छिड़काव कर देना चाहिए. 8 से 10 दिन में पराली गलकर ग्रीन खाद में तब्दील हो जाती है.