उमरिया (अखिलेश शुक्ला): शहडोल संभाग का उमरिया जिला बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के लिए अपनी खास पहचान रखता है. बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व बाघों की दहाड़ के लिए तो जाना ही जाता है. साथ ही साल 2024 के अक्टूबर महीने में महज 3 दिनों में ही 10 हाथियों की मौत को लेकर भी पूरे देश में सुर्खियां में था. अब हाथियों को लेकर ही बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व से एक अच्छी खबर आई है, या यूं कहें कि बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व का ये प्रयोग हाथियों के प्रबंधन में एक नया रास्ता दिखा सकता है.
हाथियों की सबसे बड़ी लैब बना बांधवगढ़
अभी कुछ महीने पहले ही बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में कोदो खाकर बीमार होने के तीन दिन में 10 हाथियों की मौत हो गई थी. जिसके बाद से बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व का वन महकमा का मनोबल गिर गया था, लेकिन अब इन्हीं हाथियों को लेकर एक बार फिर से बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व का एक बहुत ही अच्छा प्रयोग सफल होता नजर आ रहा है. लगभग 2 महीने पहले बिगड़ैल भारी भरकम हाथी का रेस्क्यू करना, कई दिनों तक अपनी निगरानी में रखना और फिर उस बिगड़ैल को रिवाईल्ड करना और जंगल में छोड़ने के कुछ माह बाद जो परिणाम आए हैं, वह काफी खुशी देने वाले हैं.
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हाथी मैनेजमेंट को लेकर नया रास्ता भी दिखाते नजर आ रहे हैं, क्योंकि इन दोनों हाथियों को रिवाईल्ड तो किया ही गया, साथ में सैटेलाइट आईडी भी इनके साथ लगाई गई है. उनके हर एक मूवमेंट को भी ट्रैक किया गया. इनके बारे में अध्ययन किया गया और जो परिणाम आए हैं वह किसी को भी खुशी देंगे.
हाथियों पर नई स्टडी का रिजल्ट, हो गया मोहभंग
दोनों हाथी जो बिगड़ैल स्वभाव के थे उन पर खुलासा दिलचस्प है. ये हाथी जिनका बस्तियों की ओर मूवमेंट हो जाता था, अब ये इंसानी इलाकों से दूरी बना चुके हैं. हाथी अब जंगल में ही रह रहे हैं और वहीं खाना-पानी कर रहे हैं. यानि पूरी तरह से जंगली बन चुके हैं. इन दोनों ही हाथियों के इस सफल प्रयोग को देखते हुए अब बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व को हाथियों की नई प्रयोगशाला कहा जाने लगा है.
मध्य प्रदेश में ग्रुप के हाथियों की मौत के बाद हुए थे बिगड़ैल
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के उप संचालक पीके वर्मा बताते हैं, "सलखनिया में कोदो खाकर बीमार होकर जिन 10 हाथियों की मौत हुई, ये उसी ग्रुप से था. इसकी उम्र 10 वर्ष है, हाथियों की मौत से वह गुस्से में था और उसका मूवमेंट ग्रामीण क्षेत्र की ओर हो गया था. इस हाथी का मूवमेंट खेतौली सलखनिया से होते हुए चंदिया टेरिटोरियल के क्षेत्र में था. वह इतना आक्रोशित था कि हाथी ने चंदिया में ही एक ही दिन में दो इंसानों को कुचल कर मौत के घाट भी उतार दिया था. इसके बाद पार्क प्रबंधन हरकत में आया. 3 नवंबर को इस नर हाथी का रेस्क्यू किया गया.
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एक्सपर्ट बताते हैं कि कई बार ऐसा देखा गया है कि जब कोई हाथी शोक ग्रस्त होता है, या अपने समूह से अलग हो जाता है, तो वह बिगड़ैल हो जाता है. इस नर हाथी को खतौली रेंज में ही रख कर इसके बिहेवियर पर नजर रखी जा रही थी. 24 घंटे एक्सपर्ट्स की टीम के साथ उसके बिहेवियर पर काम किया जा रहा था. फिर NTCA से अनुमति ली गई. उसे 9 दिसंबर को जंगल में सैटेलाइट कॉलर आईडी लगाकर छोड़ा गया. जिससे इसके हर एक मूवमेंट की जानकारी मिलती रहे, यह एक नया प्रयोग भी किया गया.
हाथियों का शहडोल से हुआ रेस्क्यू और की गई स्टडी
उप संचालक पीके वर्मा बताते हैं की "सैटेलाइट कॉलर आईडी वाला जो दूसरा हाथी है, ये भी बहुत उम्रदराज नहीं है, बल्कि 12 वर्ष का है. इसे शहडोल वन वृत्त के जयसिंहनगर रेंज वनचाचर बीट से रेस्क्यू किया गया था. इस युवा हाथी ने भी जंगल से लगी बस्तियों में काफी उपद्रव मचाया था. घटना में दो इंसानों की मौत भी हुई थी. तभी से वन विभाग की टीम ने हाथी को रेस्क्यू करने का फैसला लिया था. इसे बांधवगढ़ में शिफ्ट कर किया गया. इसे एंक्लोजर में करीब 8 माह तक रखा गया. इसके हर एक बिहेवियर की मॉनिटरिंग की गई. जब इसकी रिपोर्ट भी पॉजीटिव आई तो इसे फिर से जंगल में छोड़ने का फैसला लिया गया. अब यही हाथी बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के कोर एरिया के जंगल में मस्त होकर घूम रहा है."
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बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व ने रेस्क्यू के बाद कैसे किया काम ?
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के उप संचालक पीके वर्मा बताते हैं कि "इन बिगड़ैल हाथियों का रेस्क्यू किया गया था. हमारे लिए भी एक चुनौती थी, 10 हाथियों की मौत के बाद मनोबल भी गिरा था, लेकिन इन्हें फिर से रिवाईल्ड करके जंगल में छोड़ना बहुत बड़ा चैलेंज हमारे लिए भी था. इसके लिए वाइल्ड लाइफ रिसर्च स्कूल के वैज्ञानिकों के साथ विशेषज्ञों की निगरानी में विशेष तौर पर काम किया गया. इसके लिए कैंप में डॉक्टर के साथ एलीफेंट एक्सपर्ट्स को मिलाकर 3-3 सदस्य 24 घंटे हाथियों के साथ रहते थे.
खाना देते समय उन्हें कैसे जंगल का आभास दिलाना है. उन तक कैसे इंसानी दखल न के बराबर रखना है. NTCA के प्रोटोकॉल का कैसे पूरा पालन करना है, क्योंकि किसी भी जंगली वन्य प्राणी को पकड़ने के बाद उसे इंसानी दखल से बचाना बहुत जरूरी काम होता है. तभी फिर से उसे रिवाइल्ड करना आसान होता है. इन दोनों ही हाथियों को रिवाईल्ड करने के लिए उनके हर एक मूवमेंट पर नजर रखी गई.
हाथियों को मध्य प्रदेश के जंगल में छोड़ने के बाद के हालात
इन दोनों हाथियों को बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के जंगल में सैटेलाइट कॉलर आईडी लगाकर छोड़ा गया है. उनके हर एक मूवमेंट का हर दिन अध्ययन किया गया. 20 नवंबर को पहले हाथी को सैटेलाइट आईडी के साथ छोड़ा गया था. आज 21 जनवरी हो गई है, अब तक इन हाथियों ने किसी भी तरह का उपद्रव नहीं मचाया है. वे शांत हैं, जंगल में आराम से रह रहे हैं.
गजराज की गौतम वाहन से गश्ती
इन हाथियों की कड़ी निगरानी की जा रही है. सैटेलाइट कॉलर आईडी तो लगाई ही है, साथ में निगरानी के लिए जो प्रबंधन का गौतम हाथी है, उस गौतम वाहन में आठ-आठ घंटे 3-3 सुरक्षा वन श्रमिक उनकी सुरक्षा में लगे हुए हैं. उनके हर एक मूवमेंट पर नजर बनाए हुए हैं. ये दस्ता लगातार ड्यूटी देता है. इसके अच्छे परिणाम भी आए हैं.
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मध्य प्रदेश का पहला प्रयोग, बांधवगढ़ गजराज का नैचुरल हैबिटैट बना
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के उप संचालक पीके वर्मा बताते हैं की "सैटेलाइट कॉलर आईडी लगाकर जिन हाथियों को छोड़ा गया है. ऐसा मध्य प्रदेश में पहली बार हुआ है. इससे फायदा यह हुआ कि अब उनके बिहेवियर के बारे में जो अध्ययन चल रहा है, हाथियों के प्रबंधन में आगे मदद मिलेगी. आखिर हाथी कब कहां जाते हैं, हाथी का व्यवहार कैसा होता है. किस सीजन में इनका कहां मूवमेंट ज्यादा होता है. कई सारी जानकारी उनके बारे में मिल रही है. जिससे हाथियों के आगे के प्रबंधन में बहुत मदद मिलेगी. अब तक उनके व्यवहार के अध्ययन से पता चला कि जंगल में हाथियों के अनुकूल वन क्षेत्र अगर मिलता है, तो उसके उत्साह जनक परिणाम भी सामने आ रहे हैं. मध्य प्रदेश में अपने आप में यह पहला प्रयोग था जो अब तक सफल होता नजर आ रहा है.