नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को असम के डिटेंशन सेंटर्स की खराब स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा कि वहां न तो उचित शौचालय हैं और न चिकित्सा सुविधाएं. अभय एस ओका और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील से पूछा कि सुविधाएं मुहैया कराने की जिम्मेदारी किसकी है, केंद्र सरकार की या राज्य सरकार की?
कोर्ट के सवाल पर वकील ने कहा कि उनके पास केवल निर्वासन के बारे में निर्देश हैं. उधर याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा कि डिटेंशन सेंटर्स पर सुविधाएं बहुत खराब हैं और यह 3,000 लोगों वाला सेंटर है. गोंसाल्वेस ने कहा, "उन्हें वहां जाना चाहिए और लोगों से मिलना चाहिए, जैसे NHRC ने किया था...".
इस पर जस्टिस ओका ने राज्य सरकार से निर्देश लेने को कहा कि डिटेंशन सेंटर्स में सुविधाएं प्रदान करने के लिए कौन जिम्मेदार है. बता दें कि इन डिटेंशन सेंटर्स में संदिग्ध नागरिकता और विदेशी समझे जाने वाले लोगों को रखा जाता है.
'हाई कोर्ट में लंबित केस'
गोंजाल्विस ने कहा कि राज्य सरकार 17 लोगों को निर्वासित करना चाहती थी, लेकिन उन्होंने हमें सूची नहीं दी और कहा, "हमें लगा कि ये स्वैच्छिक निर्वासन है. अब हमने असम के वकीलों से सुना है कि जिन लोगों को निर्वासित करने का प्रस्ताव है, उनमें से कुछ के मामले वास्तव में हाई कोर्ट में लंबित हैं."
गोंजाल्विस ने कहा कि स्टेट को यह जांच करनी चाहिए कि क्या वे उन लोगों को निर्वासित कर रहे हैं, जिनके मामले अदालतों में लंबित हैं. उन्हें हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक कोई कानूनी सहायता प्रदान नहीं की जाती है...और उन्हें हमें यह बताना चाहिए कि यह स्वैच्छिक है या अनैच्छिक और क्या बांग्लादेश सरकार सहमत है...".