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गहरे समुद्र में खनिजों की खोज के लिए NIOT ने बनाया मत्स्य 6000 समुद्रयान, जानें क्या हैं इसकी खासियतें

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Feb 23, 2024, 8:41 PM IST

Updated : Feb 23, 2024, 9:09 PM IST

Samudrayan Project, Ocean Research Vehicle Matsya 6000, समुद्रयान परियोजना: भारत गहरे समुद्र में अनुसंधान के क्षेत्र में नई उपलब्धि हासिल करने के लिए तैयार है. हमारा देश जल्द ही अपने अनुसंधान वाहन मत्स्य 6000 को परीक्षण के लिए लॉन्च करेगा. ईटीवी भारत इस शोध वाहन के बारे में खास जानकारी निकाली है. जानें क्या है इसकी विशेषता

matsya 6000 seaplane
मत्स्य 6000 समुद्रयान

NIOT ने बनाया मत्स्य 6000 समुद्रयान

चेन्नई: राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान गहरे समुद्र में भारत की वैज्ञानिक उन्नति की संभावनाओं पर शोध कर रहा है. ईटीवी भारत ने हाल ही में एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की थी कि कैसे भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत काम करने वाली इस एजेंसी ने अपने शोध के दौरान 7 साल पहले लापता हुए एएन 32 विमान के हिस्सों को यादृच्छिक रूप से ढूंढ लिया. इस बीच, समुद्रयान परियोजना, जो अनुसंधान के एक हिस्से के रूप में मनुष्यों को गहरे समुद्र में भेजेगी, कार्यान्वयन के लिए तैयार हो रही है.

गहरे समुद्र में अन्वेषण की क्या आवश्यकता है?: गहरा समुद्र भी संसाधनों से उतना ही समृद्ध है जितना कि ज़मीन. इस अन्वेषण का प्राथमिक उद्देश्य इन संसाधनों का पता लगाना है. इस परियोजना के माध्यम से भारत के लिए आरक्षित अंतर्राष्ट्रीय समुद्री क्षेत्र में निकेल, मैंगनीज, कोबाल्ट आदि धातुओं का पता लगाया जा सकेगा. विशेष रूप से प्रत्येक खनिज अपने स्वयं के वातावरण में मौजूद होता है.

हिंद महासागर ऐसे संसाधनों से समृद्ध है, जिन्हें पॉलीमेटेलिक नोड्यूल्स कहा जाता है. बंगाल की खाड़ी में गैस हाइड्रेट प्रचुर मात्रा में हैं. मैंगनीज जैसे खनिज बहुत शांत गहरे समुद्रों में ही पाए जाते हैं. इन सभी को मानव रहित पनडुब्बी द्वारा नहीं देखा जा सकता है. लेकिन इंसानों द्वारा गहरे समुद्र में खोज के दौरान यह पता लगाना आसान है कि कौन से खनिज किस स्थान पर पाए जाते हैं. इतना ही नहीं, समुद्री जीवन की नई प्रजातियों की भी खोज कर सकते हैं.

कौन सा उपकरण गहरे समुद्र में अनुसंधान करेगा?: चेन्नई स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डीप सी टेक्नोलॉजी (NIOT), पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संगठन, ने गहरे समुद्र में अनुसंधान के लिए 'MATSYA 6000' नामक एक वाहन विकसित किया है. इस संबंध में ईटीवी भारत से बात करते हुए एनआईओटी के निदेशक श्री जीए रामदास ने कहा कि समुद्रयान परियोजना 4,800 करोड़ रुपये की लागत से क्रियान्वित की जा रही है.

उन्होंने यह भी बताया कि हार्बर ट्रायल कुछ ही हफ्तों में चेन्नई में होगा. उन्होंने कहा कि इस प्रोजेक्ट का लक्ष्य जहां समुद्र में 6,000 मीटर की गहराई पर शोध करना है, वहीं हार्बर ट्रायल के पहले चरण के दौरान 500 मीटर की गहराई पर यह रिहर्सल की जाएगी. 3 मनुष्य समुद्र की गहराई तक जाकर सतह पर खनिज संसाधनों को सीधे देख सकते हैं.

चेन्नई के पल्लीकरनई में एनआईओटी परिसर में हमारे रिपोर्टर को समुद्ररायण परियोजना वाहन दिखाते हुए उन्होंने बताया कि लोगों के यात्रा करने के लिए वाहन में एक गोले के आकार की बॉडी होगी. 6.6 मीटर लंबा और 210 टन वजनी यह यान लगातार 48 घंटे तक पानी के अंदर रिसर्च करने में सक्षम है. विशेष रूप से गोले के आकार का जहाज जो लोगों को ले जा सकता है वह पूरी तरह से टाइटेनियम से बना है.

डॉ. रामदास ने बताया कि टाइटेनियम धातु गहरे समुद्र में अनुसंधान में उपयोगी होती है, क्योंकि यह अन्य धातुओं की तुलना में हल्की और मजबूत होती है. एक पूर्व नौसेना अधिकारी को पनडुब्बी का पायलट नियुक्त किया गया है. उन्होंने यह भी कहा कि वह एनआईओटी के दो वैज्ञानिकों को पायलट ट्रेनिंग देंगे. यह 6 हजार मीटर की गहराई तक जाती है.

उन्होंने आगे कहा कि 3 लोगों को ले जाने वाले मत्स्य 6000 वाहन में गहरे समुद्र को देखने के लिए तीन खिड़कियां, गहरे समुद्र की खोज के लिए दो मैनिपुलेटर, खनिज नमूने एकत्र करने के लिए एक ट्रे, गहरे समुद्र और संसाधनों की तस्वीर लेने के लिए एक कैमरा और लाइट्स जैसी विशेषताएं होंगी.

गहरे समुद्र में अनुसंधान वाहन मत्स्य 6000 कब लॉन्च किया जाएगा?: अब समुद्ररायण परियोजना बंदरगाह लॉन्च चरण के करीब है. यदि इसे सफलतापूर्वक लागू किया जाता है, तो समुद्रयान परियोजना के आगामी कदम इसी वर्ष गति पकड़ लेंगे. नवीनतम 2026 तक पूर्ण पैमाने पर अनुसंधान करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है.

क्या गहरे समुद्र के खनिजों का तुरंत दोहन संभव है?: एनआईओटी के वैज्ञानिक शोधकर्ता एनआर रमेश ने संबंधित प्रश्न के उत्तर में कहा कि नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डीप सी रिसर्च का उद्देश्य गहरे समुद्र में संसाधनों का पता लगाना है. यह देखने के लिए भी शोध चल रहा है कि क्या गहरे समुद्र के संसाधनों के दोहन से कोई प्रभाव पड़ेगा. उन्होंने कहा कि इसके चालू होने से पहले अभी भी कई कदम उठाए जाने बाकी हैं.

रमेश ने यह भी बताया कि उन्होंने हिंद महासागर में भारत के अनुसंधान के लिए आरक्षित समुद्री क्षेत्र में खनिज संसाधनों की खोज और मानचित्रण किया है. देश की सुरक्षा सेना से परे विज्ञान, अनुसंधान, खनिज आदि में आत्मनिर्भरता पर निर्भर होती जा रही है. ऐसे में समुद्रयान परियोजना भारत को उन देशों की सूची में शामिल कर देगी, जिन्होंने इंसानों को गहरे समुद्र में भेजा है. इस सूची में पहले से ही अमेरिका, रूस, फ्रांस, जापान और चीन शामिल हैं.

Last Updated : Feb 23, 2024, 9:09 PM IST

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