देहरादून (उत्तराखंड): भारत का एक खूबसूरत राज्य उत्तराखंड जिसे गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ और केदारनाथ जैसे तीर्थस्थलों के लिए प्रसिद्धी मिली है. यहां का प्राकृतिक सौंदर्य लोगों का मन मोह लेते हैं. इस राज्य को देवभूमि के नाम से जाना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के साथ इस राज्य की एक और बड़ी भूमिका है. उत्तराखंड राज्य देश की एक बड़ी आबादी की प्यास भी बुझाता है. लेकिन वर्तमान समय में ये पहाड़ी राज्य भीषण जल संकट से गुजर रहा है. अमूमन ये माना जाता है कि जिस राज्य से गंगा जैसी विशाल नदी बहती हो वहां भला जल की क्या कमी हो सकती है, लेकिन सरकारी आंकड़े जो हकीकत बयां कर रहे हैं, वो बेहद चौंकाने वाले तो हैं ही साथ ही भयावह भी हैं. दरअसल, जहां दुनिया भर में ग्लोबल वार्मिंग का असर देखा जा रहा है. उत्तराखंड भी इससे अछूता नहीं है.
आधी आबादी की प्यास बुझाने वाला पहाड़ खुद प्यासा:उत्तराखंड के लिए एक पुरानी कहावत है कि पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी कभी भी यहां के काम नहीं आई. एक दो अपवादों को छोड़ दें तो यह काफी हद तक सही भी है. जो उत्तराखंड देश की एक बड़ी आबादी की प्यास बुझाता है, अब वहीं के लोगों के हलक सूख रहे हैं. पहाड़ों से निकलने वाले जल स्रोत छोटी-छोटी नदियां अब गायब हो रही हैं. ऐसा नहीं है कि सरकार और सिस्टम को इसकी जानकारी नहीं है. 6-8 महीने में एक बैठक करके हमारे नीति निर्धारक इस पर चर्चा करते हैं और अगले प्लान के लिए बजट करते हैं, लेकिन हालात यह है कि नीति आयोग की रिपोर्ट यह कह रही है कि उत्तराखंड में लगातार जल स्रोत सूख रहे हैं. जानकार तो यह भी मानते हैं कि पलायन का एक बड़ा कारण नौले-धारे और जल स्रोतों का सूखना भी है.
पहाड़ों में नौलों का अस्तित्व खबरे में:इन सब के पीछे वजह जो भी हो, लेकिन इन हालातों की बड़ी वजह इंसान ही हैं. कुछ समय पहले तक जल स्रोतों को गांव के लोग देवता की तरह पूजते थे. साल में कई बार गांव इकट्ठा होकर इन नौले धारों और जल स्रोतों को संजोकर रखते थे. लेकिन आलम यह है कि धीरे-धीरे यह जल स्रोत आबादी वाले इलाकों में सूखने लगे हैं. जल स्रोत प्रबंधन कमेटी की रिपोर्ट कहती है कि, मौजूदा समय में उत्तराखंड में 4000 ऐसे गांव हैं जो जल संकट से जूझ रहे हैं. रिपोर्ट यह भी बताती है कि 510 ऐसे जल स्रोत हैं, जो अब सूखने की कगार पर आ गए हैं. सबसे ज्यादा असर अल्मोड़ा जनपद पर पड़ा है. यहां पर 300 से अधिक जल स्रोत सूख गए हैं. यहां तक कि उत्तराखंड में प्राकृतिक जल स्रोतों के जलस्तर में 60 फीसदी की कमी आई है.
आंकड़े कर रहे तस्दीक:उत्तराखंड में 12000 से अधिक ग्लेशियर और 8 नदियां निकलती हैं. बावजूद इसके उत्तराखंड में मौजूदा समय में 461 जल स्रोत ऐसे हैं, जिनमें 76% से अधिक पानी अब बचा ही नहीं यानी पूरी तरह से सूख चुका है. इसके साथ ही प्रदेश में 1290 जल स्रोत ऐसे हैं, जिनमें 51-75 प्रतिशत पानी सूख चुका है. आंकड़े बताते हैं कि राज्य में 2873 जल स्रोत ऐसे हैं, जिनमें 50 प्रतिशत तक पानी कम हो चुका है और ये निरंतर कम हो रहा है.
राज्य में सबसे अधिक जल संकट, टिहरी, पिथौरागढ़, चमोली, अल्मोड़ा, और बागेश्वर जिले में है. ऐसा नहीं है कि सिर्फ प्राकृतिक जल स्रोत कम हो रहे हैं. केंद्रीय जलशक्ति मंत्रालय की मानें तो राज्य में 725 ऐसे जलाशय हैं, जो पूरी तरह से सूख चुके हैं. उत्तराखंड में 3096 जलाशय हैं, जिसमें 2970 जलाशय ग्रामीण क्षेत्र में है, जबकि 126 जलाशय शहरी क्षेत्र में हैं. रिपोर्ट कहती है कि 2371 जलाशय में हाल ही में पानी पाया गया था, जबकि 725 जल से पूरी तरह से सूख चुके हैं, जिसकी वजह मंत्रालय ने प्रदूषण फैक्ट्री और तालाबों के ऊपर बस्तियों को बताया था.