मध्य प्रदेश

madhya pradesh

साइंटिस्ट्स की कमाल खोज, बना डाला नैनो पेस्टीसाइड, बैक्टीरिया फंगस का बाप पकड़ कर मारेगा - Scientist Discover Nanopesticide

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Aug 1, 2024, 8:01 AM IST

Updated : Aug 1, 2024, 12:30 PM IST

मध्य प्रदेश की सेंट्रल यूनिवर्सिटी सागर में हुई एक नई खोज से किसानों को खेती में काफी मदद मिल सकती है. यहां के बायो टेक्नालॉजी विभाग में नैनो यूरिया की तरह नैनो पेस्टिसाइड तैयार किया गया है. यह नई रिसर्च फसलों और सब्जियों में लगने वाले बैक्टीरिया और फंगस को लेकर की गई है.

Scientist Discover Nanopesticide
नई खोज 'नैनो पेस्टिसाइड' (ETV Bharat)

New Research Nanopesticide:जिस तरह से फर्टिलाइजर के मामले में नैनो यूरिया एक क्रांतिकारी कदम बताया जा रहा है. उसी तरह एमपी की इकलौती सेंट्रल यूनिवर्सिटी डाॅ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय के बायो टेक्नोलॉजी विभाग के शोधकर्ताओं ने सब्जियों सहित अनाज को फंगस (कवक) और जीवाणु (बैक्टीरिया) जनित रोगों से बचाने के लिए नैनोपेस्टिसाइड तैयार किया है. प्रमुख रूप से ये आलू और टमाटर के साथ अन्य सब्जियों को बचाने के उद्देश्य से तैयार किया गया. नैनोपेस्टिसाइड बायोडिग्रेडेबल (आर्गेनिक) है. प्रयोगशाला में किए गए परीक्षण काफी उत्साहवर्धक परिणाम हासिल हुए हैं. यूनिवर्सिटी का बायो टेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट जल्द ही इस खोज का पेटेंट लेने भी जा रहा है.

नैनो यूरिया की तरह तैयार किया नैनो पेस्टिसाइड (ETV Bharat)

नई खोज 'नैनो पेस्टिसाइड'

सागर यूनिवर्सिटी के बायोटेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट के असि. प्रोफेसर डॉ चंद्रमा प्रकाश उपाध्याय के मार्गदर्शन में पीएचडी स्काॅलर अभिषेक पाठक ने रासायनिक कीटनाशक के जरिए पर्यावरण को होने वाले नुकसान को कम करते हुए फसलों में रोग उत्पन्न करने वाले बैक्टीरिया और फंगस पर नियंत्रण के लिए आधुनिक नैनो तकनीक का उपयोग किया. वैसे तो नैनो पेस्टिसाइड की संश्लेषण प्रक्रिया काफी कठिन है, लेकिन अलग-अलग प्रयोगों के जरिए नेनौपेस्टिसाइड के त्वरित संश्लेषण के लिए सरल और सस्ता फॉर्मूला तैयार किया गया जो खेती किसानी में काफी प्रभावी और क्रांतिकारी माना जा रहा है.

ऐसे तैयार किया नैनो पेस्टिसाइड

नैनो पेस्टिसाइड को तैयार करने के लिए कीटनाशक के संश्लेषण में प्रोटीन (टेरपिनोल लोडेड जीन) नैनो कणों का उपयोग किया जाता है. प्रोटीन नैनो कणों के अंदर टेरपिनोल का एनकैप्सुलेशन, सब्जी की फसल की सुरक्षा के साथ लंबे समय तक असरकारक रहता है. खास बात ये है कि ये पर्यावरण प्रदूषण को कम करता है. दरअसल प्रोटीन पर लोड किए गए फेनोलिक कंपाउंड काफी धीमी गति से बहते है और जीव जंतुओ और पर्यावरण बिना नुकसान पहुंचाए सब्जी की फसलों को लंबे समय तक बीमारियों से बचाकर रखते है. इसके लिए प्रयोगशाला में आलू और टमाटर के पौधों पर प्रयोग किया तो सामने आया कि जिन पौधों में इस प्रक्रिया का प्रयोग किया गया, उन पौधों में कम संक्रमण पाया गया. जबकि जिन पौधों में इसका प्रयोग नहीं किया गया,वो ज्यादा संक्रमित हुए. यूनिवर्सटी के शोधकर्ताओं ने इसके प्रभाव को जांचने के लिए फसल की वृद्धि का भी अध्ययन किया.

बायो टेक्नालॉजी विभाग में नई रिसर्च (ETV Bharat)

खेती, पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद

परियोजना निदेशक डॉ. चंद्रमा प्रकाश उपाध्याय ने रिसर्च के महत्व पर चर्चा करते हुए बताया कि "ये शोध कृषि क्षेत्र की दिशा में अहम कदम है. हमारा लक्ष्य है कि नैनो टेक्नालाॅजी के माध्यम से किसानों को पारंपरिक खेती के साथ पर्यावरण को नुकसान ना पहुंचाने वाले विकल्प प्रदान कर सकें. ये कीटनाशक फसलों और पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाता है. कृषि लागत को कम करने की दिशा में ये काफी कारगर है. उन्होंने बताया कि किसान सब्जियों की फसलों में होने वाले रोगों को रोकने के लिए रासायनिक कीटनाशकों का बड़े पैमाने पर उपयोग करते हैं जो मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए खतरनाक हैं. इससे किसानों और खेती को तो नुकसान पहुंचता ही है इसके अलावा ऐसी सब्जियों और अनाज का उपयोग भोजन में करने वाले कैंसर और तंत्रिका तंत्र जैसे रोगों का शिकार बन जाते हैं. इन चुनौतियों को ध्यान रखकर प्रयोगशाला में जैविक नैनो कीटनाशक विकसित किया है."

ये भी पढ़ें:

वित्त मंत्री की किसानों को सौगात, 1.52 लाख करोड़ रुपये किए आवंटित, 10 हजार बायो रिसर्च सेंटर बनाने का ऐलान

रिसर्च करना हुआ महंगा, केमिकल्स लेबोरेटरी पर कस्टम ड्यूटी बढ़कर हुई 150 फीसदी

किसानों के लिए फायदेमंद

परियोजना निदेशक डाॅ चंद्रमा प्रकाश उपाध्यायबताते हैं कि "लगातार 4 साल की मेहनत के बाद हमें ये सफलता हासिल हुई है. अगर हमारे शोध को आगे बढ़ाने के लिए सरकार हमारी मदद करे, तो इसको नैनो यूरिया की तर्ज पर बाजार में उतारा जा सकता है. खास बात ये है कि बाजार में मिलने वाले केमिकल पेस्टिसाइड के मुकाबले इसकी कीमत तीन या चार गुना कम रहेगी. इसके साथ जमीन को होने वाले नुकसान के साथ पर्यावरण और मानव सेहत पर पढने वाले विपरीत प्रभाव को भी ये कम करेगा.

Last Updated : Aug 1, 2024, 12:30 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details