नई दिल्लीःदिल्ली नगर निगम की स्थाई समिति का चुनाव शुक्रवार को संपन्न तो हो गया, लेकिन राष्ट्रीय मुद्दा बनकर. दरअसल, आप ने वोटिंग में हिस्सा लेने से खुद को बाहर रख लिया. इसके पीछे की वजह मोबाइल से शुरू हुई. पार्षदों को स्थाई समिति सदस्य के चुनाव में मतदान करने के लिए मोबाइल साथ नहीं ले जाने का नियम था. इसी बात ने विवाद को जन्म दिया.
ऐसे हुई टकराव की शुरुआत
नियम के अनुसार, पार्षदों को चुनाव में मतदान करने जाते समय मोबाइल फोन बाहर रखना था. मोबाइल जमा करने के लिए दिल्ली पुलिस के जवानों द्वारा पार्षदों की तलाशी ली जानी थी. लेकिन, आप पार्षदों ने इसका विरोध किया कि पुलिस उनकी तलाशी नहीं ले सकती. उन्हें फोन ले जाने से नहीं रोका जाना चाहिए. इसके बाद हंगामा शुरू हो गया. हंगामे के चलते महापौर डा. शैली ओबेरॉय ने सदन की कार्यवाही को स्थगित करते हुए चुनाव कराने के लिए पांच अक्टूबर की तिथि तय कर दी.
लेकिन, एलजी के निर्देश से एमसीडी आयुक्त ने 27 सितंबर को चुनाव कराने की तारीख तय कर दी, जिसके बाद वोटिंग हुई लेकिन आप इसमें शामिल नहीं हुई. कांग्रेस ने पहले ही खुद को अलग कर लिया था. नतीजा, बीजेपी पार्षद ही वोटिंग में शामिल हुए और भाजपा को जीत मिली. इस चुनाव को वैध बताया जा रहा है. इधर, आम आदमी पार्टी की ओर से इस स्थाई समिति सदस्य के चुनाव को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का भी ऐलान कर दिया है. मुख्यमंत्री आतिशी का तर्क है कि निगम एक्ट में सदन की बैठक बुलाने का अधिकार सिर्फ महापौर और उपमहापौर को ही है. लेकिन, इन सभी अटकलों के बीच हम आपको बताते हैं कि आखिर स्थाई समिति के सदस्य का यह चुनाव किस तरह से ऐतिहासिक है और आखिर इसमें क्या-क्या वजहें रहीं जिनके कारण यह चुनाव चर्चा का विषय बन गया है. आइए समझते हैं चार बिंदुओं में-
1. चुनाव टालने को लेकर बीजेपी पार्षदों ने जताया विरोध
महापौर द्वारा स्थाई समिति सदस्य का चुनाव टालने पर भाजपा पार्षदों और सांसदों ने विरोध जाताया. इसके बाद निगमायुक्त ने पूरी स्थिति से उपराज्यपाल वीके सक्सेना को अवगत कराया. उपराज्यपाल ने इसके बाद अमेरिका में होते हुए वहीं से पत्र लिखकर निगमायुक्त को निर्देश दिया कि 26 सितंबर को ही रात में 10 बजे तक चुनाव संपन्न कराकर उन्हें रिपोर्ट भेजें. साथ ही महापौर, उपमहापौर और सबसे वरिष्ठ पार्षद को चुनाव के लिए पीठासीन अधिकारी बनाने के लिए कहा. इन तीनों में से पीठासीन अधिकारी नहीं बनने पर निगम के किसी अधिकारी को पीठासीन अधिकारी बनाने का विकल्प भी दिया.
2. निगमायुक्त ने रात में ही शुरू की चुनाव कराने की प्रक्रिया
उपराज्यपाल के पत्र के माध्यम से लिखित निर्देश मिलने के बाद निगमायुक्त अश्वनी कुमार ने महापौर, उपमहापौर और सबसे वरिष्ठ पार्षद और नेता सदन मुकेश गोयल से पीठासीन अधिकारी बनने के लिए कहा. महापौर ने पांच अक्टूबर को चुनाव कराने की बात कह दी. वहीं, उपमहापौर आले इकबाल और नेता सदन मुकेश गोयल ने कोई जवाब नहीं दिया. इसके बाद निगमायुक्त ने अतिरिक्य आयुक्त जितेंद्र यादव के पीठासीन अधिकारी नियुक्त किया. लेकिन, रात के समय पार्षदों की अनुपस्थिति के कारण चुनाव नहीं हो सका. चुनाव के लिए 27 सितंबर को दोपहर एक बजे निगम सदन की बैठक निर्धारित की गई.