बड़वानी: 2 अक्टूबर को देशभर में राष्ट्रपति महात्मा गांधी की जन्मतिथि मनाई जाएगी. हम सब जानते हैं कि देश की आजादी में महात्मा गांधी का सबसे बड़ा योगदान है. राष्ट्रपति की जयंती से पहले आपको महात्मा गांधी से जुड़े किस्से कहानियां सुनने मिल रही है. इसी क्रम में हम आपको राजघाट के बारे में बताएंगे जो, मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले में स्थित है. जिला मुख्यालय से मात्र 5 किलो मीटर दूर राजघाट जो फिलहाल जलमग्न है. यहां दिल्ली के बाद महात्मा गांधी, कस्तूरबा गांधी सहित नर्मदा पार जुड़े टलवई के स्वतंत्रता सेनानी महादेव देसाई की अस्थियां लाई गई थी.
बता दें उस वक्त टलवई के ही काशीनाथ द्विवेदी इन तीनों की अस्थि कलश लेकर सन 1964 में बड़वानी नर्मदा किनारे लाए थे. जहां उनकी अस्थि कलश रख, उस क्षेत्र का नाम राजघाट दिया था. तब से राजघाट नाम से बापू के स्मारक बड़वानी में मौजूद था, लेकिन 27 जुलाई 2017 को सरदार सरोवर बांध के डूब की जद में आने के बाद रातोरात कस्तूरबा गांधी, महात्मा गांधी और महादेव देसाई की अस्थियां वहां से निकालकर कुकरा बसाहट में स्थापित की गई. बुधवार यानि 2 अक्टूबर को इस जगह पर धूमधाम से गांधीजी की जयंती मनाई जाएगी. एनबीए कार्यकर्ता राहुल यादव का कहना है कि 'इतना समय बीत जाने के बाद भी बापू के स्मारक पर जो सुविधाएं होनी चाहिए. वो आज तक पूरी नहीं हो पाई है.
सेवक के रूप में महादेव भाई देसाई है मिसाल
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के 25 साल तक सचिव रहे महादेव भाई देसाई के बारे में उस समय के सभी प्रबुद्धजन और महात्मा गांधी के सम्पर्क में आने वाले सभी लोग एक स्वर में यही कहते थे कि- "सेवक हो तो महादेव भाई देसाई जैसा". महादेव भाई देसाई बापू के सचिव ही नहीं उनके परिवार के एक सदस्य भी थे. गुजरात में सूरत के पास एक छोटे-से गांव सरस में जन्मे महादेव भाई देसाई ने 1917 में महात्मा गांधी के सचिव के रुप में काम करना आरम्भ किया था.
1942 में जब पूणे के आगा खां महल में दिल का दौरा पड़ने पर उनका निधन हुआ, तब भी वे महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी के साथ ही थे. स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और राष्ट्रवादी लेखक महादेव भाई देसाई एक कुशल सम्पादक भी थे. उन्होंने 1921 में आंग्ल भाषाई अखबार "इण्डिपेन्डेन्ट" का सम्पादन आरम्भ किया था. महादेव भाई ने बापू के अखबार- "हरिजन" और कुछ सालों तक "नवजीवन" का सम्पादन भी किया.