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1967 से सिर्फ तीन महिलाएं पांच बार संसद पहुंचीं, जम्मू कश्मीर में आधी आबादी के लिए क्या? - Kashmiri women in Politics - KASHMIRI WOMEN IN POLITICS

Political participation of women in JK: जम्मू कश्मीर में आधी आबादी के लिया क्या? वहां की तमाम राजनीतिक पार्टियां आखिर क्यों महिलाओं को टिकट देने से कतराते हैं. वैसे तो सभी राजनीतिक दल के नेता महिलाओं के लिए समान अधिकार और अवसर की बात करते है लेकिन हकीकत तो कुछ और ही बयां कर रही है. सोचने वाली बात तो यह है कि, 1967 और 2019 के बीच जम्मू कश्मीर ने केवल 3 महिलाओं को पांच बार संसद भेजा. सवाल है कि हर साल महिला मतदाताओं की संख्या तो बढ़ रही है लेकिन आधी आबादी के हिसाब से महिलाओं को प्रतिनिधित्व क्यों नहीं मिल पा रहा है?

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Apr 18, 2024, 8:31 PM IST

श्रीनगर:जम्मू-कश्मीर की सियासत को देखें तो यहां तमाम सियासी पार्टियां आधी आबादी को समान अधिकार और प्रतिनिधित्व देने की वकालत तो करते हैं, पर चुनाव में खासकर लोकसभा में उन्हें टिकट देने में हमेशा कंजूसी बरतते नजर आते हैं. आंकड़ों की माने तो 1967 और 2019 के बीच, जम्मू कश्मीर ने केवल तीन महिलाओं को पांच बार संसद भेजा. वहीं, यहां की महिलाओं ने कश्मीर इलाके से चार बार और लद्दाख से एक बार लद्दाख से संसद के दरवाजे तक पहुंचने में कामयाबी हासिल की. आश्चर्य की बात तो यह है कि, जम्मू क्षेत्र से अब तक कोई भी महिला संसद तक नहीं पहुंची है. लोकसभा चुनाव को लेकर देश में सियासी सरगर्मी काफी तेज है. राजनीतिक दल महिला मतदाताओं को लुभाने की कोशिशें और तेज कर दी हैं. हालांकि, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की महबूबा मुफ्ती के अलावा किसी भी प्रमुख राजनीतिक दल ने महिला उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया है.

महिलाओं को टिकट देने में कंजूसी क्यों?
जम्मू-कश्मीर से पहली महिला सांसद शेख अब्दुल्ला की पत्नी बेगम अकबर जहां अब्दुल्ला थीं. वह नेशनल कांफ्रेंस पार्टी से 1977 में वह श्रीनगर लोकसभा सीट से सांसद चुनी गई थीं. वह दूसरी बार 1984 में अनंतनाग सीट से सांसद रहीं. इसके बाद 1977 में कांग्रेस के टिकट से लद्दाख से रानी पार्वती देवी सांसद बनी थीं. रानी पार्वती देवी, जिन्हें अक्सर लद्दाख की रानी मां के रूप में जाना जाता है, अब राजनीति से सेवानिवृत्त होकर देहरादून, उत्तराखंड में रहती हैं. 90 वर्षीय पार्वती ने 1977 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और अपने एकमात्र प्रतिद्वंद्वी, एक स्वतंत्र उम्मीदवार मोहम्मद अली उर्फ ​अली कारगिली को हराकर 2877 वोटों के साथ लोकसभा में अपनी जगह पक्की की.

सिर्फ दावों में आधी आबादी को प्रतिनिधित्व
हालांकि, मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली सरकार के समय से पहले भंग होने के कारण, लोकसभा में उनका कार्यकाल केवल तीन साल तक चला, और 1980 में फिर से चुनाव हुए. इसके 27 साल बाद 2004 में पीडीपी से महबूबा मुफ्ती पहली बार अनंतनाग सीट से सांसद बनीं. उन्होंने नेशनल कॉन्फ्रेंस के महबूब बेग को हराया. जबकि दूसरी बार 2014 में इस सीट से दोबारा चुनी गईं. इस बार भी उन्होंने महबूब बेग को हराया. कुल मिलाकर देखा जाए तो, 52 साल में जम्मू-कश्मीर से महिलाएं पांच बार संसद भवन पहुंचीं. भाजपा से कोई महिला सांसद नहीं चुनी जा सकी है. वहीं, निर्दलीय महिला उम्मीदवारों के प्रयासों के बावजूद, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के चुनावों में उन्हें सफलता नहीं मिली है. वैसे पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती खुद महिला हैं इसलिए वह दो बार चुनाव लड़ चुकी हैं.

सिर्फ महिला मतदाताओं से वोट की मांग करेंगे!
2024 के लोकसभा चुनावों को देखते हुए राजनीतिक दल महिलाओं को नामांकित करने में संकोच तो कर रहे हैं लेकिन वे सक्रिय रूप से महिला मतदाताओं के समर्थन के लिए प्रतिस्पर्धा करते नजर आ रहे हैं. आगामी चुनावों के लिए जम्मू कश्मीर में महिला मतदाताओं की संख्या 42.58 लाख है, जो 2019 में 36.38 लाख से लगातार वृद्धि के साथ 2022 में 40.67 लाख हो गई है. वर्तमान चुनावी परिदृश्य में, उधमपुर से किसी भी राजनीतिक दल ने किसी महिला उम्मीदवार को चुनाव मैदान में नहीं उतारा है. इसी तरह, कोई भी महिला इंडिपेंडेंट कैंडिडेट के रूप में चुनाव नहीं लड़ रही है. दूसरी तरफ किसी भी प्रमुख राजनीतिक दल ने जम्मू-कश्मीर की शीतकालीन राजधानी जम्मू से किसी महिला उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया है. हालांकि, क्षेत्रीय पार्टी नेशनल पैंथर्स पार्टी ने जम्मू सीट पर 30 साल की शिखा बंद्राल पर भरोसा जताया है. कश्मीर में, महबूबा मुफ्ती ने अनंतनाग सीट से अपना नामांकन पत्र दाखिल किया है. महबूबा मुफ्ती ने साल 2004 और 2014 में संसदीय चुनाव जीता,लेकिन 2019 में वह हार गई थी. सोचने वाली बात है कि, हर साल महिला मतदाताओं की संख्या तो बढ़ रही है, लेकिन महिलाओं को आधी आबादी के हिसाब से प्रतिनिधित्व नहीं मिल पा रहा है.

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