हैदराबाद:भारतीय लोकतंत्र में वंशवादी राजनीति का प्रभाव लंबे समय से रहा है. आजादी के बाद जहां कई राजघरानों का राजनीति पर कब्जा हो गया था, वहीं कई क्षेत्रीय दलों की सत्ता में भागीदारी बढ़ने के साथ उत्तर प्रदेश, बिहार समेत कई राज्यों में परिवार आधारित राजनीति फलने-फूलने लगी. इस लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में भी वंशवादी राजनीति की परंपरा का नया स्तर सामने आया है. राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से 13 पर राजनीतिक परिवारों के उम्मीदवार मैदान में हैं. इनमें राज्य में सत्तारूढ़ टीएमसी के पांच, कांग्रेस के चार, भाजपा के दो और सीपीआईएम के दो उम्मीदवार हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में राजनीतिक वंशवाद सिर्फ तीन सीटों तक ही सीमित था.
परंपरागत रूप से जीवंत छात्र राजनीति के लिए जाना जाने वाला बंगाल एक महत्वपूर्ण बदलाव का अनुभव कर रहा है, क्योंकि चुनावों में प्रभावशाली राजनीतिक परिवारों को प्रमुखता दी जा रही है. कोलकाता स्थित सामाजिक विज्ञान अध्ययन केंद्र के राजनीतिक विज्ञानी मैदुल इस्लाम न्यूज एजेंसी पीटीआई से बात कहते हैं कि बंगाल की राजनीति में यह नया चलन या विकास है कि हम वर्ग-आधारित राजनीति से वंशवाद की राजनीति की ओर बढ़ रहे हैं. उन्होंने कहा कि चुनावों में कभी भी राजनीतिक परिवारों से इतने उम्मीदवारों को टिकट नहीं मिला था. उन्होंने कहा कि बंगाल में जहां राजनीति जन नेताओं के करिश्मे, पार्टी प्रतीकों और मुद्दों से तय होती है. अब यह देखना बाकी कि लोग इन राजनीतिक राजवंशों को कैसे स्वीकार करते हैं.
वंशवादी राजनीति का दबदबा
टीएमसी, भाजपा और कांग्रेस नेताओं का मानना है कि राजनीतिक परिवारों के सदस्यों को उनकी वफादारी और विश्वसनीयता के लिए महत्व दिया जाता है, जिससे उनकी दावेदारी मजबूत होती है. टीएमसी के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि राजनीति में स्थापित घरानों के नामों की सफलता का श्रेय दो मुख्य कारकों को दिया जाता है - पहचान और नेटवर्किंग (लोगों के बीच पकड़), जो उनके लिए चुनावी समर्थन हासिल करना आसान बनाते हैं.
अभिषेक बनर्जी सूची में सबसे ऊपर
टीएमसी के राष्ट्रीय महासचिव और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी इस सूची में सबसे ऊपर हैं. दो बार के सांसद अभिषेक बनर्जी डायमंड हार्बर लोकसभा सीट से तीसरी बार चुनाव मैदान में हैं. वहीं, कांथी लोकसभा सीट से भाजपा के उम्मीदवार सौमेंदु अधिकारी पूर्वी मिदनापुर के प्रभावशाली अधिकारी परिवार से आते हैं. उनके पिता सिसिर अधिकारी इस सीट से तीन बार सांसद रहे हैं, और उनके भाई शुभेंदु अधिकारी पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं.
गनी खान चौधरी के परिवार से हैं ईशा खान चौधरी
मालदा दक्षिण सीट से कांग्रेस ने इस बार अस्वस्थ चल रहे अबू हासेम खान चौधरी की जगह उनके बेटे ईशा खान चौधरी को उम्मीदवार बनाया है. कांग्रेस के संरक्षक एबीए गनी खान चौधरी के भाई अबू हासिम 2006 से इस सीट का संसद में प्रतिनिधत्व कर रहे हैं. ईशा खान कांग्रेस के विधायक रह चुके हैं.