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सीजेआई चंद्रचूड़ ने की वकीलों और जजों के लिए फ्लेक्सी टाइम की वकालत - D Y Chandrachud

CJI Chandrachud for flexi time for judges and lawyers : सुप्रीम कोर्ट की 75वीं वर्षगांठ मनाई गई. इस अवसर पर सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि 'आइए लंबी छुट्टियों पर बातचीत शुरू करें.' ईटीवी भारत के वरिष्ठ संवाददाता सुमित सक्सेना का रिपोर्ट.

CJI Chandrachud
सीजेआई चंद्रचूड़

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 28, 2024, 6:05 PM IST

नई दिल्ली:भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने रविवार को भारत के सर्वोच्च न्यायालय के 75वें वर्ष के अवसर पर लंबी अदालती छुट्टियों पर 'कठिन बातचीत' शुरू करने की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया और वकीलों और न्यायाधीशों के लिए फ्लेक्सी टाइम जैसे विकल्पों की खोज का सुझाव दिया.

सुप्रीम कोर्ट के हीरक जयंती समारोह के दौरान बोलते हुए सीजेआई ने कहा कि एक संस्था के रूप में प्रासंगिक बने रहने की हमारी क्षमता के लिए हमें चुनौतियों को पहचानने और कठिन बातचीत शुरू करने की आवश्यकता है.

उन्होंने कहा कि 'आइए लंबी छुट्टियों पर बातचीत शुरू करें और क्या वकीलों और न्यायाधीशों के लिए फ्लेक्सी टाइम जैसे विकल्प संभव हैं.' सीजेआई ने कहा कि हमें स्थगन संस्कृति से व्यावसायिकता की संस्कृति की ओर उभरना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मौखिक दलीलों की लंबाई न्यायिक परिणामों में लगातार देरी न करे. उन्होंने कहा कि कानूनी पेशे को पहली पीढ़ी के वकीलों - पुरुषों, महिलाओं और हाशिए पर रहने वाले अन्य लोगों के लिए समान अवसर प्रदान करना चाहिए, जिनमें काम करने की इच्छा और सफल होने की क्षमता है.

सीजेआई ने कहा कि 'सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना आदर्शवाद की भावना के साथ की गई थी कि कानूनों की व्याख्या संवैधानिक न्यायालय द्वारा कानून के शासन के अनुसार की जाएगी, न कि औपनिवेशिक मूल्यों या सामाजिक पदानुक्रमों के अनुसार. इसने इस विश्वास की पुष्टि की कि न्यायपालिका को अन्याय, अत्याचार और मनमानी के खिलाफ एक ढाल के रूप में काम करना चाहिए. सर्वोच्च न्यायालय समाधान और न्याय की संस्था है.'

सीजेआई ने कहा कि 'हमारी व्यवस्था में आबादी के विभिन्न वर्गों को शामिल करने से हमारी वैधता कायम रहेगी. इसलिए, हमें समाज के विभिन्न वर्गों को कानूनी पेशे में लाने के लिए और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है. उदाहरण के लिए बार और बेंच दोनों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का प्रतिनिधित्व काफी कम है.'

उन्होंने कहा कि परंपरागत रूप से कानूनी पेशा विशिष्ट लोगों का पेशा था और अब समय बदल गया है. सीजेआई ने कहा कि 'पेशे में परंपरागत रूप से कम प्रतिनिधित्व वाली महिलाएं अब जिला न्यायपालिका की कामकाजी ताकत का 36.3% हैं. आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, सिक्किम, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे कई राज्यों में आयोजित जूनियर सिविल जजों की भर्ती परीक्षा में 50% से अधिक चयनित उम्मीदवार महिलाएं थीं. भारत के सर्वोच्च न्यायालय में, हम न्यायाधीशों की सहायता के लिए कानून क्लर्क-सह-अनुसंधान सहयोगियों को नियुक्त करते हैं, जिनमें से इस वर्ष 41% उम्मीदवार महिलाएं हैं.'

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