प्रयागराज:देश के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस डॉ डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि देश को बड़ी संख्या में मध्यस्थता केंद्रों की जरूरत है. उन्होंने मध्यस्थता केंद्रों में कम खर्च में मामलों में जल्द से जल्द सुलह (Lawsuits burden will be reduce with mediation) समझौता कराकर उन्हें खत्म किए जाने की नसीहत दी. कहा कि ऐसा करके अदालतों से मुकदमों का बोझ घटाया जा सकता है. उनके मुताबिक अगर मध्यस्थता केंद्रों में भी मामलों का निपटारा करने में लंबा समय लगेगा तो लोग सुलह समझौता करने की कोशिशों से बचेंगे. इससे विवाद भी कायम रहेगा और अदालतों पर मुकदमों का बोझ भी बढ़ता रहेगा.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने यह बात शनिवार को यहां संगम नगरी में इलाहाबाद हाईकोर्ट के आर्बिट्रेशन केंद्र का उद्घाटन करते हुए कही. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने इस मौके पर जजेज के लिए नई डिजिटल लाइब्रेरी की भी शुरुआत की. साथ ही यूपी की अदालतें नाम की पुस्तक का विमोचन भी किया. इस मौके पर सुप्रीम कोर्ट के साथ ही विभिन्न हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और कई न्यायाधीश उपस्थित रहे.
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि कानून का उपयोग कौन कर रहा है, यह महत्व रखता है. आज भी हम 1860 की उस आईपीसी का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिसे अंग्रेजों ने स्वतंत्रता आंदोलन को कुचलने, सेनानियों को जेल में डालने, विरोधियों को प्रताड़ित करने और उनका उत्पीड़न करने के लिए तैयार किया गया था. अब इसी आईपीसी का उपयोग नागरिकों के हितों की रक्षा के लिए किया जा रहा है.
उन्होंने कहा कि आज जरूरत इस बात की है कि अतीत में जो कुछ भी हुआ है, चाहे वह भारत की आजादी से पहले की घटनाएं हों या फिर आजाद भारत में इमरजेंसी की घटना. उन्हें अब कतई न दोहराया जाए. उन्होंने जिला न्यायालयों के विचाराधीन बंदियों को आसानी से जमानत देने में हिचकने पर भी सवाल उठाए और कहा कि पता नहीं जिला न्यायालय जमानत देने से क्यों डरते हैं. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हमे ज़िला अदालतों को अपना अधीनस्थ न्यायालय नहीं समझना चहिए. उनको सबोर्डिनेट समझने की प्रवृत्ति से बचना होगा.
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि कानून के क्षेत्र में महिलाओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है. महिलाएं न्याय पालिका के क्षेत्र में अपनी जगह बना रही हैं. यह बेहद सकारात्मक और अच्छा कदम है. हालांकि उन्होंने अदालत परिसरों में महिलाओं के लिए पर्याप्त संख्या में शौचालयों के नहीं होने पर चिंता जताई. उनके मुताबिक अदालत में महिलाओं के लिए पर्याप्त संख्या में शौचालय होने चाहिए और इन अलग शौचालयों में सेनेटरी नैपकिन डिस्पेंसर भी होने चाहिए.