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कर्नाटक ने ग्रामीण विकास और पंचायत राज विश्वविद्यालय संशोधन विधेयक पारित किया - KARNATAKA ASSEMBLY

कर्नाटक विधानसभा ने विश्वविद्यालयों के प्रशासनिक ढांचे में बदलाव के लिए विधेयक पारित किया.

KARNATAKA ASSEMBLY
कर्नाटक विधानसभा (file photo- ETV Bharat)

By ETV Bharat Hindi Team

Published : 6 hours ago

बेंगलुरु :कर्नाटक विधानसभा ने कर्नाटक ग्रामीण विकास और पंचायत राज यूनिवर्सिटी (संशोधन) विधेयक पारित कर दिया है, जिससे विश्वविद्यालय के प्रशासनिक ढांचे में महत्वपूर्ण बदलाव होंगे. प्रमुख संशोधनों में से एक है राज्यपाल के स्थान पर मुख्यमंत्री को विश्वविद्यालय का कुलाधिपति बनाना.

सरकार के अनुसार, इस कदम का उद्देश्य संस्था में परिचालन को सुव्यवस्थित करना, निर्णय लेने की प्रक्रिया में सुधार लाना तथा नवाचार को बढ़ावा देना है. संशोधन में कुलाधिपति के रूप में मुख्यमंत्री को एक सर्च समिति द्वारा अनुशंसित तीन नामों के पैनल में से कुलपति की नियुक्ति करने का अधिकार दिया गया है. इन परिवर्तनों से विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में विश्वविद्यालय को और अधिक कुशल बनाने तथा राज्य के विकास लक्ष्यों के साथ संरेखित करने की उम्मीद है.

मंत्री एच.के.पाटिल ने विधेयक का बचाव करते हुए इसका महत्व समझाया. उन्होंने कहा कि इस निर्णय का उद्देश्य विश्वविद्यालय की रचनात्मकता को बढ़ाना और निर्णय लेने की प्रक्रिया में तेजी लाना है. उन्होंने कहा, "प्रशासन, ग्रामीण कल्याण और विकास से सीधे जुड़े विश्वविद्यालयों को उचित शैक्षणिक प्रबंधन की आवश्यकता है, जिसे इस संशोधन द्वारा संबोधित किया जाना है."

उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि संशोधन से नवाचार को बढ़ावा मिलेगा और यह सुनिश्चित होगा कि विश्वविद्यालय ग्रामीण विकास और रोजगार सृजन में प्रभावी योगदान दे सके. इसके अलावा प्रशासनिक बाधाओं को कम करके, इन परिवर्तनों का उद्देश्य विश्वविद्यालय को अधिक गतिशीलता तथा अधिक दक्षता के साथ कार्य करने में सक्षम बनाना है."

हालांकि, यह विधेयक विवादों से अछूता नहीं रहा. विपक्षी दलों, खासकर भाजपा ने इस कदम की आलोचना की है और इसे राजनीति से प्रेरित बताया है. उनका तर्क है कि राज्यपाल को कुलाधिपति पद से हटाने से विश्वविद्यालय की तटस्थता और स्वायत्तता कमजोर होगी, जिससे शैक्षणिक मामलों में राजनीतिक हस्तक्षेप बढ़ सकता है. इसके विरोध में, भाजपा विधायकों ने विधानसभा सत्र के दौरान वॉकआउट किया.

इस विधेयक ने विश्वविद्यालय प्रशासन में मुख्यमंत्रियों और राज्यपालों की भूमिका के बारे में व्यापक बहस छेड़ दी है. जहां समर्थक इस संशोधन को विश्वविद्यालय प्रशासन के आधुनिकीकरण और सुधार की दिशा में एक कदम के रूप में देखते हैं. वहीं आलोचकों को डर है कि इससे शैक्षणिक संस्थानों का राजनीतिकरण हो सकता है. जैसे-जैसे यह विधेयक आगे विचार के लिए विधान परिषद के पास जा रहा है, नीति निर्माताओं, शिक्षकों और आम जनता के बीच इस पर गहन चर्चा जारी है. इन संशोधनों के परिणाम कर्नाटक और उसके बाहर उच्च शिक्षा प्रशासन के लिए दूरगामी प्रभाव डाल सकते हैं.

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