बेंगलुरु:राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने शुक्रवार को कर्नाटक सरकार के माइक्रो लोन और स्मॉल लोन (बलपूर्वक कार्रवाई की रोकथाम) अध्यादेश को वापस भेज दिया. इससे कर्नाटक सरकार की अनरजिस्टर्ड और बिना लाइसेंस वाली माइक्रोफाइनेंस कंपनियों को कर्जदारों पर बलपूर्वक कार्रवाई करने से रोकने के प्रयासों को बड़ा झटका लगा है. साथ ही गहलोत ने सजा और माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र पर इसके संभावित प्रभाव पर चिंता व्यक्त की.
बता दें कि पिछले हफ्ते राज्य मंत्रिमंडल ने पारित अध्यादेश में ओर्डिनेंस के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के लिए 10 साल तक की कैद और 5 लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रस्ताव पेश किया था.इस पर राज्यपाल ने कहा, " जब दिए जा जाने वाले कर्ज की अधिकतम राशि 3 लाख रुपये है, तो 5 लाख रुपये का प्रस्तावित जुर्माना अपने आप में प्राकृतिक सिद्धांतों के खिलाफ है."
क्यों लाया गया अध्यादेश?
पिछले दो महीनों में राज्य के विभिन्न भागों से माइक्रोफाइनेंस कंपनियों ने भोले-भाले कर्जदारों को परेशान करने के मामले सामने आने और कुछ कर्जदारों की आत्महत्या करने की रिपोर्टें सामने आने के बाद राज्य सरकार को माइक्रोफाइनेंस कंपनियों पर लगाम लगाने के लिए अध्यादेश लाना पड़ा.
कठोर दंड के अलावा अध्यादेश में ओर्डिनेंस की तारीख तक कर्ज लेने वालों को ब्याज सहित हर कर्ज से पूरी तरह से मुक्ति देकर उधारकर्ताओं को राहत प्रदान करने की मांग की गई थी. इसके अलावा इसमें प्रावधानों के उल्लंघन के मामले में कर्ज वसूली के लिए किसी भी अदालत में सभी लंबित कार्यवाही को बढ़ावा देने के अलावा अदालतों को कर्जदारों के खिलाफ कार्यवाही करने से रोकना शामिल था.