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'जज न तो प्रिंस हैं और न ही...', जानें ऐसा क्यों बोले CJI चंद्रचूड़? टेक्नोलॉजी पर कही बड़ी बात - DY Chandrachud

DY Chandrachud: चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान 'डिजिटल ट्रासंफोर्मेशन और 'ज्यूडिशियल एफिशिएंसी' बढ़ाने के लिए टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल पर बोलते हुए कहा कि जज न तो प्रिंस होते हैं और न ही संप्रभु.

DY Chandrachud
चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ (ANI)

By Sumit Saxena

Published : May 15, 2024, 1:15 PM IST

Updated : May 15, 2024, 1:30 PM IST

नई दिल्ली: भारत के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि जज न तो प्रिंस हैं और न ही संप्रभु, बल्कि वे सर्विस प्रोवाइडर हैं. वे अधिकारों की पुष्टि करने वाले समाज के प्रवर्तक हैं और हमारी अदालतों की कल्पना 'साम्राज्य' थोपने के लिए नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक के रूप में की गई है.

सीजेआई ने जे20 शिखर सम्मेलन के दौरान ब्राजील के रियो में 'डिजिटल ट्रासंफोर्मेशन और ट'ज्यूडिशियल एफिशिएंसी' बढ़ाने के लिए टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल पर बोलते हुए यह टिप्पणी की.चीफ जस्टिस ने कहा, 'जजों के रूप में हम न तो प्रिंस हैं और न ही संप्रभु हैं, जो खुद स्पष्टीकरण की जरूरत से ऊपर हैं. हम सर्विस प्रोवाइडर हैं और अधिकारों की पुष्टि करने वाले समाजों के प्रवर्तक हैं.' उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि किसी भी निर्णय पर पहुंचने का रास्ता पारदर्शी होना चाहिए और उसे इतना व्यापक होना चाहिए कि कोई भी उसे लीगल ऐजूकेशन के बिना समझ सके.

उन्होंने कहा कि हमारी अदालतों की कल्पना 'साम्राज्य' को थोपने के लिए नहीं किया गया, बल्कि इसकी स्थापना लोकतांत्रिक तरीके से की गई है. कोविड-19 ने हमारी कोर्ट सिस्टम की सीमाओं को आगे बढ़ाया, जिन्हें रातों-रात बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा.

सीजेआई ने इस बात पर जोर दिया कि जब हम ज्यूडिशियल एफिशिएंसी की बात करते हैं, तो हमें जजों की एफिशिएंसी से परे देखना चाहिए और एक समग्र न्यायिक प्रक्रिया के बारे में सोचना चाहिए. उन्होंने कहा कि एफिशिएंसी न केवल परिणामों में बल्कि उन प्रक्रियाओं में निहित है- जो स्वतंत्र और निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करती हैं.

टेक्नोलॉजी हर चीज का इलाज नहीं
उन्होंने कहा कि अदालतें एक शेडो फंक्शन करती हैं. वे समाज के लिए दिशानिर्देश बनाती हैं. सीजेआई ने कहा कि टेक्नोलॉजी सभी सामाजिक असमानताओं के लिए एक ही रामबाण इलाज नहीं है. चीफ जस्टिस ने कहा कि एआई-प्रोफाइलिंग और इसके परिणामस्वरूप बड़े लैंग्वेज मॉडल में लोगो को कलंकित करना, एल्गोरिथम बायस, गलत सूचना, संवेदनशील जानकारी का प्रदर्शन और एआई में ब्लैक बॉक्स मॉडल की अस्पष्टता जैसे जटिल मुद्दों को खतरों के बारे में निरंतर विचार-विमर्श प्रयासों और प्रतिबद्धता से निपटा जाना चाहिए.

टेक्नोलॉजी बेहतर फैसला लेने में कर सकती है मदद
उन्होंने जोर देकर कहा कि कोविड-19 महामारी के बाद भी हाइब्रिड सुनवाई भारत में अदालतों की एक विशेषता बनी हुई है. डिजिटलीकरण और टेक्नोलॉजी हमें बेहतर न्याय वितरण तंत्र बनाने में मदद कर सकते हैं. हमें फैसला लेने से पहले की पूर्व प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना है और दूसरा निर्णय के बाद सुधार के उपाय को ठीक करना है.

उन्होंने कहा कि सभी न्यायालयों में बुनियादी संगठन से लेकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग टूल की टेकनोलॉजी का इस्तेमाल किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि टेक्नोलॉजी की क्षमता इस बात में निहित है कि हम इसे पहले से मौजूद असमानताओं को कम करने के लिए कैसे परिवर्तित करते हैं?

चीफ जस्टिस ने बताया कि वर्चुअल सुनवाई ने उन लोगों के लिए जगह खोल दी है जो बिना किसी बड़ी कठिनाई के अदालत में पेश नहीं हो सकते थे. अब शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्ति, गर्भवती महिलाएं, वृद्धावस्था वाले व्यक्ति अब वस्तुतः अदालत कक्ष तक पहुंचने का विकल्प चुन सकते हैं. सीजेआई ने बताया कि 7,50,000 से अधिक मामलों की सुनवाई वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए की गई है.

हमारे पास लीगल जर्नलिस्ट का नेटवर्क
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में महत्वपूर्ण संवैधानिक मामलों की कार्यवाही को उसके यूट्यूब चैनल पर लाइव-स्ट्रीम किया जाता है, जो संवैधानिक विचार-विमर्श को सभी नागरिकों के घरों और दिलों तक पहुंचाता है. उन्होंने कहा कि कभी-कभी कोर्ट में होने वाली कार्यवाही की भ्रामक क्लिप इंटरनेट पर प्रसारित कर दी जाती हैं. सौभाग्य से, हमारे पास लीगल जर्नलिस्ट का एक मजबूत नेटवर्क है जो कार्यवाही की लाइव-रिपोर्टिंग करते हैं और दुष्प्रचार को दूर करने में मदद करते हैं.

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Last Updated : May 15, 2024, 1:30 PM IST

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