नई दिल्ली: भारत के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि जज न तो प्रिंस हैं और न ही संप्रभु, बल्कि वे सर्विस प्रोवाइडर हैं. वे अधिकारों की पुष्टि करने वाले समाज के प्रवर्तक हैं और हमारी अदालतों की कल्पना 'साम्राज्य' थोपने के लिए नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक के रूप में की गई है.
सीजेआई ने जे20 शिखर सम्मेलन के दौरान ब्राजील के रियो में 'डिजिटल ट्रासंफोर्मेशन और ट'ज्यूडिशियल एफिशिएंसी' बढ़ाने के लिए टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल पर बोलते हुए यह टिप्पणी की.चीफ जस्टिस ने कहा, 'जजों के रूप में हम न तो प्रिंस हैं और न ही संप्रभु हैं, जो खुद स्पष्टीकरण की जरूरत से ऊपर हैं. हम सर्विस प्रोवाइडर हैं और अधिकारों की पुष्टि करने वाले समाजों के प्रवर्तक हैं.' उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि किसी भी निर्णय पर पहुंचने का रास्ता पारदर्शी होना चाहिए और उसे इतना व्यापक होना चाहिए कि कोई भी उसे लीगल ऐजूकेशन के बिना समझ सके.
उन्होंने कहा कि हमारी अदालतों की कल्पना 'साम्राज्य' को थोपने के लिए नहीं किया गया, बल्कि इसकी स्थापना लोकतांत्रिक तरीके से की गई है. कोविड-19 ने हमारी कोर्ट सिस्टम की सीमाओं को आगे बढ़ाया, जिन्हें रातों-रात बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा.
सीजेआई ने इस बात पर जोर दिया कि जब हम ज्यूडिशियल एफिशिएंसी की बात करते हैं, तो हमें जजों की एफिशिएंसी से परे देखना चाहिए और एक समग्र न्यायिक प्रक्रिया के बारे में सोचना चाहिए. उन्होंने कहा कि एफिशिएंसी न केवल परिणामों में बल्कि उन प्रक्रियाओं में निहित है- जो स्वतंत्र और निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करती हैं.
टेक्नोलॉजी हर चीज का इलाज नहीं
उन्होंने कहा कि अदालतें एक शेडो फंक्शन करती हैं. वे समाज के लिए दिशानिर्देश बनाती हैं. सीजेआई ने कहा कि टेक्नोलॉजी सभी सामाजिक असमानताओं के लिए एक ही रामबाण इलाज नहीं है. चीफ जस्टिस ने कहा कि एआई-प्रोफाइलिंग और इसके परिणामस्वरूप बड़े लैंग्वेज मॉडल में लोगो को कलंकित करना, एल्गोरिथम बायस, गलत सूचना, संवेदनशील जानकारी का प्रदर्शन और एआई में ब्लैक बॉक्स मॉडल की अस्पष्टता जैसे जटिल मुद्दों को खतरों के बारे में निरंतर विचार-विमर्श प्रयासों और प्रतिबद्धता से निपटा जाना चाहिए.