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जम्मू कश्मीर: HC ने गोलीबारी में हाथ गंवाने वाले वनकर्मी को मुआवजा देने की सिफारिश बरकरार रखी - JAMMU KASHMIR HIGH COURT

25 साल पुराने मामले में हाई कोर्ट ने वन विभाग के पूर्व कर्मचारी को 10 लाख रुपये का मुआवजा देना का फैसला बरकरार रखा है.

High Court
जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट (ETV Bharat)

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Feb 7, 2025, 4:43 PM IST

श्रीनगर:जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने वन विभाग के पूर्व कर्मचारी जहांगीर अहमद खान को 10 लाख रुपये का मुआवजा देने के अपने एकल पीठ के फैसले को बरकरार रखा है, जिन्होंने सुरक्षा बलों और आतंकवादियों के बीच गोलीबारी में अपना दाहिना हाथ खो दिया था. सरकार की अपील को खारिज करते हुए हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया कि इस नुकसान ने खान के जीवन और आजीविका कमाने की क्षमता को हमेशा के लिए बदल दिया है.

जस्टिस संजीव कुमार और जस्टिस पुनीत गुप्ता की खंडपीठ ने कहा कि दिया गया मुआवजा न तो बहुत अधिक है और न ही तर्कहीन. पीठ ने अपने फैसले में खान की शारीरिक और भावनात्मक पीड़ा की गंभीरता को भी इंगित किया.

प्रतिवादी (खान) को अपना बाकी जीवन बिना दाहिने हाथ के जीना पड़ा, जिससे जीवन की सुविधाओं के मामले में बहुत नुकसान हुआ है. अदालत ने कहा, "प्रतिवादी अपने दाहिने हाथ के बिना रिटायरमेंट के बाद कोई भी छोटा-मोटा काम करके या पेंशन से अपनी जरूरतों को पूरा करने की स्थिति में नहीं होगा."

2000 का है मामला
बता दें कि यह मामला 2000 का है, जब खान वन विभाग में हेल्पर थे. उन्हें गोलीबारी की घटना में गंभीर चोट आई और उन्हें अपना दाहिना हाथ काटना पड़ा. शुरुआत में सरकार ने उन्हें 75 हजार रुपये की अनुग्रह राशि मंजूर की. खान ने तर्क दिया कि यह राशि उनके मेडिकल खर्च और स्थायी विकलांगता को देखते हुए काफी नहीं थी.

15 लाख रुपये के मुआवजे की मांग
2015 में खान ने 15 लाख रुपये के मुआवजे की मांग करते हुए याचिका दायर की थी. हाई कोर्ट की सिंगल बेंच (रिट कोर्ट) ने 9 जून 2023 को खान के पक्ष में अपना फैसला सुनाया और उन्हें 10 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया. हालांकि, सरकार ने इस फैसले का विरोध करते हुए तर्क दिया कि खान का वेतन और पेंशन पर्याप्त वित्तीय स्थिरता प्रदान करते हैं क्योंकि वह एक सरकारी कर्मचारी हैं. इस तर्क को खारिज करते हुए, बुधवार (5 फरवरी, 2025) को खंडपीठ ने खान की विकलांगता के कारण होने वाले अपूरणीय नुकसान की ओर इशारा किया.

अदालत ने फैसला में क्या कहा?
फैसले में कहा गया, "इसमें कोई विवाद नहीं है कि प्रतिवादी को नौकरी के दौरान चोट लगी थी, जिसके कारण उसका दाहिना हाथ काटना पड़ा. प्रतिवादी को जीवन भर दाहिना हाथ विहीन व्यक्ति होने का कलंक झेलना पड़ेगा." भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का हवाला देते हुए पीठ ने फैसला सुनाया कि मुआवजा उचित था. ऐसी परिस्थितियों में 75,000 रुपये की अनुग्रह राशि के अलावा 10 लाख रुपये का मुआवजा, किसी भी तर्क से अत्यधिक या तर्कहीन नहीं कहा जा सकता है.अदालत ने सरकार द्वारा पहले से जमा किए गए 5 लाख रुपये को ब्याज सहित तुरंत जारी करने का आदेश दिया.

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