अगले 20 सालों में सूख जाएगी नर्मदा, 3 राज्यों में पड़ेगा अकाल? खतरे में पवित्र नदी का अस्तित्व - Narmada River May Dry Up - NARMADA RIVER MAY DRY UP
अगले 20 से 25 सालों में यदि नर्मदा नदी सूखने लग जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होगा, क्योंकि नर्मदा की कई सहायक नदियों में पानी खत्म हो गया है. नर्मदा कई सहायक नदियों से मिलकर बनी है और जिस तरह सहायक नदियों में तेजी से पानी खत्म हो रहा है उससे कोई बड़ा आश्चर्य नहीं है कि एक दिन नर्मदा में भी पानी नहीं बचेगा. इसकी कई बड़ी वजहें हैं आइए जानते हैं.
20 साल में सूख जाएगी नर्मदा? (Etv Bharat Graphics)
जबलपुर.भूगोल के जानकार पर्यावरणविद संजीव पांडे ने बताया कि नर्मदा नदी में पानी के दो मुख्य स्रोत होते हैं. एक भूमिगत जल जो अमरकंटक में झरने से निकल रहा है और दूसरा बरसात का पानी. जंगलों में कई स्थानों पर रेतीली जमीन बरसात का पानी अपने अंदर संग्रहित कर लेती है और यह पानी धीरे-धीरे रिस कर आता है. फिर छोटे पोखरों से होता हुआ यह बड़ी नदी तक पहुंचता है. नर्मदा नदी अमरकंटक में जिस झरने से निकलती है, उसमें बहुत कम पानी है लेकिन यह जैसे-जैसे आगे बढ़ती है तो इसमें कई छोटी-छोटी नदियां मिलने लगती हैं. इन्हीं नदियों की वजह से नर्मदा विराट रूप ले पाती है.
नर्मदा में होता रेत का अवैध उत्खनन (ETV BHARAT)
नर्मदा नदी के सामने ये संकट
पर्यावरणविदों का कहना हैं कि नर्मदा नदी के सामने कई बड़े संकट हैं, जो इसे खतरे में डाल रहे हैं. इसमें से ज्यादातर इंसानों की वजह से हैं.
रेत उत्खनन
नर्मदा के किनारे के किसी भी जिले में यदि रेत बेची जा रही है तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह रेत या तो सीधी नर्मदा नदी से निकाली जा रही है या फिर नर्मदा नदी की किसी सहायक नदी से. नर्मदा की जिन सहायक नदियों की रेत जमकर निकाली जा चुकी है उन सहायक नदियों में अब पानी नहीं बहता.
जंगलों की कटाई
वृक्षों की जड़ें बरसाती पानी को रोकने में मदद करती हैं. लेकिन लगातार हो रही वृक्षों की कटाई की वजह से जंगली इलाकों में पानी नहीं रुकता है. इसकी वजह से जंगलों में बहने वाले नदी और नाले केवल बरसात में ही पानी देते हैं. बाकी समय ये पूरी तरह से सूख जाते हैं और इसका असर नर्मदा नदी पर पड़ रहा है.
बंजर नदी का अस्तित्व खतरे में
जबलपुर मंडला और सिवनी इन तीन जिलों में सबसे ज्यादा रेत की आपूर्ति बंजारा नदी से हो रही है. बंजर या बंजारा नदी जबलपुर से लगभग 100 किलोमीटर दूर है लेकिन बंजर से बड़े पैमाने पर रेत निकाली जा रही है. यह नदी भी धीरे-धीरे खत्म हो रही है. यह नदी अब साल भर नहीं बहती, केवल बारिश के मौसम में ही देखने मिलती है. पहले इसमें साल भर पानी रहता था.
नर्मदा में होता रेत का अवैध उत्खनन (ETV BHARAT)
हिरन नदी
जबलपुर की हिरन नदी नर्मदा की एक महत्वपूर्ण सहायक नदी है. इस नदी में भी बड़े पैमाने पर रेत का अवैध उत्खनन हो रहा है. यह नदी जबलपुर के पास के विंध्याचल के पहाड़ों से निकलती है. इस नदी के आसपास के जंगल लगभग समाप्त हो गए हैं और नदी के आसपास पानी के कोई स्रोत नहीं बचे हैं.
शेर नदी शेर नदी भी नर्मदा की एक महत्वपूर्ण सहायक नदी थी जो साल भर बहती थी लेकिन इसके किनारों पर लगातार बढ़ती खेती की गतिविधियों की वजह से अब इस नदी में साल भर पानी नहीं रहता. ठंड के बाद ही यह नदी भी सूख जाती है.
शक्कर नदी शक्कर नदी सतपुड़ा के पहाड़ों से निकलती है और गाडरवारा के पास नर्मदा में मिलती है. इस नदी में भी रेत का बड़े पैमाने पर उत्खनन हो रहा है. कभी शक्कर नदी में साल भर पानी रहता था लेकिन अब धीरे-धीरे शक्कर नदी का पानी सूखता चला जा रहा है. शक्कर नर्मदा की एक बड़ी सहायक नदी थी लेकिन अब शक्कर नदी में पानी कम होने की वजह से इसका असर नर्मदा के प्रवाह पर भी पढ़ रहा है.
अन्य छोटी नदियां भी खत्म हो गईं
जबलपुर की परियट नदी भी अब सालभर नहीं बहती, नरसिंहपुर की कई छोटी सहायक नदियां सूख गई हैं. इनमें ओमनी, सिंगरी, होशंगाबाद में पलकमती, देनवा, बाबई व सोहागपुर की गंजाल, दूधी, तवा, सिवनी मालवा क्षेत्र की छोटी, देव, तवा, गोई, बुंदी, सीहोर व रायसेन जिले की तेंदुबी, वारना, हिरण, कानर, चंद्रशेखर, ऊंटी, हथनी नदियां भी सूख चुकी हैं या सूखने की कगार पर हैं.
ऐसा नहीं है कि सरकार नर्मदा नदी को लेकर चिंता नहीं करती. सरकार की योजनाओं में नर्मदा की कई सहायक नदियों को रीचार्ज करने के लिए अभियान चल रहे हैं और करोड़ों रु खर्च हो रहा है लेकिन इनकी जमीनी हकीकत कुछ और ही है. नर्मदा नदी को मां मानने वाले श्रद्धालुओं को अब नर्मदा की पूजा के साथ-साथ उनकी सहायक नदियों को बचाए रखने के लिए कुछ करना होगा क्योंकि केवल सरकार के भरोसे नर्मदा नहीं बच पाएगी.