हैदराबादःप्लास्टिक से तात्कालिक जीवन आसान होता है, लेकिन दीर्धकालिक तौर पर यह धरती पर जीवों के अस्तित्व के लिए खतरा का कारण बन चुका है. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के डेटा के अनुसार दुनिया भर में सालाना 43 करोड़ टन (430 मिलियन टन) से ज्यादा प्लास्टिक उत्पादन होता है. इसमें से दो-तिहाई अल्पकालिक उत्पाद होते हैं, जो जल्द अपशिष्ट बन जाते हैं. यह समुद्र व मानव खाद्य श्रृंखला में पहुंच जाता है.
सस्ती, टिकाऊ और लचीली प्लास्टिक आधुनिक जीवन में व्याप्त है. पैकेजिंग से लेकर कपड़ों और सौंदर्य उत्पादों तक हर जगह इसका इस्तेमाल होता है. लेकिन इसे बड़े पैमाने पर फेंका जाता है. हर साल 28 करोड़ टन (280 मिलियन टन) से ज्यादा अल्पकालिक प्लास्टिक उत्पाद बेकार हो जाते हैं. प्लास्टिक के कारण होने वाले प्रदूषण में से बड़ा योगदान प्लास्टिक बैग का सबसे बड़ा योगदान है. ज्यादातर प्लास्टिक बैग सिंगल यूज प्लास्टिक (SUP) से बने होते हैं. इससे होने वाले खतरे के बारे में लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से हर साल अंतरराष्ट्रीय प्लास्टिक बैग मुक्त दिवस मनाया जाता है.
प्लास्टिक का कूप्रबंधन भूजल को जहरीला बनाता है जहरीला
दुनिया भर में 46 प्रतिशत प्लास्टिक कचरे को लैंडफिल में डाल दिया जाता है. वहीं 22 प्रतिशत का गलत प्रबंधन किया जाता है और वह कूड़ा बन जाता है. अन्य सामग्रियों के विपरीत, प्लास्टिक जैविक रूप से विघटित नहीं होता है. यह प्रदूषण समुद्री वन्यजीवों का दम घोंटता है. मिट्टी को नुकसान पहुंचाता है और भूजल को जहरीला बनाता है और गंभीर स्वास्थ्य प्रभाव पैदा कर सकता है.
क्या प्लास्टिक की एकमात्र समस्या प्रदूषण है?
प्लास्टिक की एकमात्र समस्या प्रदूषण नहीं है. यह जलवायु संकट में भी योगदान देता है. प्लास्टिक का उत्पादन दुनिया में सबसे अधिक ऊर्जा-गहन विनिर्माण प्रक्रियाओं में से एक है. यह सामग्री कच्चे तेल जैसे जीवाश्म ईंधन से बनाई जाती है, जिसे गर्मी और अन्य योजकों के माध्यम से बहुलक में बदल दिया जाता है. 2019 में प्लास्टिक ने 180 करोड़ मीट्रिक टन (1.8 बिलियन मीट्रिक टन) ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन उत्पन्न किया - वैश्विक कुल का 3.4 प्रतिशत है.
हर दिन दुनिया के महासागरों, नदियों और झीलों में 2,000 से ज्यादा प्लास्टिक से भरे ट्रक फेंके जाते हैं. प्लास्टिक प्रदूषण एक वैश्विक समस्या है. हर साल 190-230 करोड़ (19-23 मिलियन) टन प्लास्टिक कचरा जलीय पारिस्थितिकी तंत्र में रिसता है, जिससे झीलें, नदियां और समुद्र प्रदूषित होते हैं.
प्लास्टिक प्रदूषण आवासों और प्राकृतिक प्रक्रियाओं को बदल सकता है. पारिस्थितिकी तंत्र की जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने की क्षमता को कम कर सकता है, जिससे लाखों लोगों की आजीविका, खाद्य उत्पादन क्षमता और सामाजिक कल्याण पर सीधा असर पड़ता है.
यूएनईपी के काम से पता चलता है कि प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या शून्य में मौजूद नहीं है. प्लास्टिक के पर्यावरणीय, सामाजिक, आर्थिक और स्वास्थ्य जोखिमों का मूल्यांकन जलवायु परिवर्तन, पारिस्थितिकी तंत्र के क्षरण और संसाधन उपयोग जैसे अन्य पर्यावरणीय तनावों के साथ किया जाना चाहिए.