शिक्षा से समाज में बदलाव संभव, जानें अन्तरराष्ट्रीय शिक्षा दिवस का इतिहास व थीम - भारत में शिक्षा
International Day of Education 2024 : शिक्षा हर किसी का मूलभूत अधिकार है. सही शिक्षा के माध्यम से समाज में गरीबी सहित कई अन्य समस्याओं का हल संभव है. इसके महत्व को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र की पहल पर हर साल 24 जनवरी को अंतरराष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाया जाता है. पढ़ें पूरी खबर.
हैदराबाद :शिक्षा एक मानव अधिकार है. संयुक्त राष्ट्र महासभा ने शांति और विकास के लिए शिक्षा की भूमिका के जश्न में 24 जनवरी को अंतरराष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में घोषित किया. इसके पीछे मुख्य कारण बेहतर समाज के निर्माण के लिए सबों को शिक्षित करना. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार आज के समय में 250 मिलियन बच्चे और युवा स्कूल से बाहर हैं और 763 मिलियन वयस्क निरक्षर हैं. उनके शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन हो रहा है जो अस्वीकार्य है. यह शिक्षा को बदलने का समय है.
3 दिसंबर 2018 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने शांति और विकास के लिए शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका का जश्न मनाने के लिए 24 जनवरी को अंतरराष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में घोषित करने के प्रस्ताव को सर्वसम्मति से अपनाया गया था. संयुक्त राष्ट्र की ओर से इस साल छठे अंतरराष्ट्रीय शिक्षा दिवस के लिए थीम 'स्थायी शांति के लिए सीखना'रखा गया है. वहीं यूनेस्को ने अंतरराष्ट्रीय शिक्षा दिवस 2024 को हेट स्पीट का मुकाबला करने के लिए समर्पित किया है.
प्राइमरी एजुकेशन हमारा मानवाधिकार शिक्षा का अधिकार मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा (Universal Declaration Of Human Rights) के अनुच्छेद 26 में वर्णित है. घोषणा पत्र में अनिवार्य और फ्री शिक्षा का आह्वान किया गया है. बाल अधिकारों पर आयोजित कन्वेंशन को 1989 में अपनाया गया, जिसके तहत देश में उच्च शिक्षा को सभी के लिए सुलभ बनाने पर सहमति व्यक्त की गई है.
शिक्षा सतत विकास की कुंजी है वैश्विक स्तर पर विकास में एक रूपता लाने के लिए संयुक्त राष्ट्र की ओर से 2015 में विकास का मॉडल तय किया गया था. इसके तहत सतत विकास के लिए 17 लक्ष्यों को तय किया गया है. इन लक्ष्यों को 2030 तक हासिल करने का लक्ष्य रखा गया है. सतत विकास लक्ष्य में शिक्षा को चौथे स्थान पर रखा गया है. इसके तहत समावेशी और समान गुणवत्ता वाली शिक्षा सुनिश्चित करना है. साथ ही सबों को लिए आजीवन सीखने के अवसरों को बढ़ावा देना है.
सार्वभौमिक शिक्षा प्राप्त करने की चुनौतियां गरीबी से बच्चों को बाहर निकलने के लिए शिक्षा एक सीढ़ी है. इसके माध्यम से एक आशाजनक भविष्य का मार्ग प्रदान करती है. दुनिया भर में लगभग 2440 लाख (244 मिलियन) बच्चे व किशोर स्कूल से बाहर हैं. 6170 लाख (617 मिलियन) बच्चे और किशोर बुनियादी गणित नहीं हल कर पाते हैं. उप-सहारा अफ्रीका में 40 फीसदी से भी कम लड़कियां मिडिल स्कूल तक की पढ़ाई नहीं पूरी कर पाती हैं. वहीं लगभग चार 40 लाख (मिलियन) बच्चे और युवा शरणार्थी स्कूलों से बाहर हैं. उनके शिक्षा का अधिकार का उल्लंघन हो रहा है. समावेशी व समान गुणवत्ता वाली शिक्षा और सभी के लिए आजीवन अवसरों के बिना कोई देश लैंगिक समानता हासिल नहीं कर सकता है. जब तक देश शिक्षा के लक्ष्यों को हासिल नहीं कर लेता है, तब तक गरीबी के चक्र से बच्चे ही नहीं उनके परिवार को बाहर नहीं निकाला जा सकता है.
भारत में उच्च शिक्षा का हाल
यूजीसी की ओर अद्यतन वार्षिक रिपोर्ट 2021-22 जारी किया गया है. अप्रैल 2021 से मार्च 2022 तक के डेटा को इसमें शामिल किया गया है. यूजीसी के डेटा के अनुसार भारत में उच्च शिक्षा का हाल.
देश में 20 जाली शैक्षणिक संस्थान, एक यूनिवर्सिटी और इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ प्लॉनिंग एंड मैनेजमेंट(आईआईपीएम) की पहचान कर कार्रवाई की गई.
2019-20 के देश में हायर एजुकेशन में सकल नामांकन अनुपात (Gross Enrolment Ratio-GER) 27.10 फीसदी है. पुरूष जनसंख्या के लिए जीईआर 26.9 फीसदी और महिलाओं के लिए 27.3 फीसदी है. बता दें कि जीईआर की गणना 18-23 साल के आयु वर्ग के लिए की जाती है.
यूजीसी ने 2021-22 के दौरान विभिन्न न्यायालयों में दर्ज 918 मामलों की वकालत के लिए 300.00 लाख रुपये का खर्चकिये गये.
31 मार्च 2021 तक देश में 1043 यूनिवर्सिटी हैं.
देश में 54 सेंट्रल यूनिवर्सिटी हैं.
450 स्टेट यूनिवर्सिटी हैं.
409 स्टेट प्राइवेट यूनिवर्सिटी हैं.
126 डीम्ड यूनिवर्सिटी हैं.
4 उच्च शैक्षणिक राज्य विधान के तहत स्थापित है.
देश में मान्यता प्राप्त 13032 महाविद्यालय हैं.
वैश्विक रैंकिग पर पिछड़ रहे हैं भारतीय शैक्षणिक संस्थान पूरी दुनिया में भारतीय छात्र व शिक्षकों का जलवा होता है. लेकिन वैश्विक पैमाने पर भारतीय विश्वविद्यालयों अंडर 500 में स्थान नहीं बना पा रहे हैं. वैश्विक रैंकिंग में क्रमशः आईआईटी बंबई (502), आईटी मद्रास (511), आईआईटी खड़गपुर (514), आईआईटी दिल्ली (549) और इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ साइंस, बैंगलुरु (599) वें स्थान पर है.
आंकड़ों में शिक्षा का हाल
भारत में सभी बच्चों को समावेशी और समान गुणवत्ता वाली शिक्षा तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए सरकारी-गैर सरकारी एजेंसियों के साथ मिलकर यूनिसेफ काम कर रहा है.
भारत ने गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच में सुधार, प्राथमिक विद्यालय में नामांकन बढ़ाने और स्कूल न जाने वाले बच्चों की संख्या को कम करने में काफी प्रगति की है.
विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार 2023 में भारत में महिलाओं के बीच साक्षरता दर बढ़कर 77 प्रतिशत हो गई है, जबकि पुरुष साक्षरता दर 84.7 प्रतिशत है.
07 फरवरी 2023 को संसद में पेश डेटा के अनुसार वर्ष 2022-23 में देश भर के 12,53,019 छात्र स्कूल से बाहर थे. इनमें लड़कियों से ज्यादा लड़कों की संख्या है. डेटा के मुताबिक 12,53,019 छात्रों में से 6,97,121 लड़के थे जबकि 5,55,854 लड़कियां थीं और 44 ट्रांसजेंडर व्यक्ति थे. मंत्रालय के डेटा के अनुसार शिक्षा स्तर के संदर्भ में प्राथमिक स्तर पर 9,30,531 और माध्यमिक स्तर पर 322488 बच्चे स्कूल से बाहर थे.
डेटा से पता चलता है कि प्राथमिक स्तर (6 से 14 वर्ष की आयु) में स्कूल न जाने वाले बच्चों की अधिकतम संख्या उत्तर प्रदेश (3,96,655) में थी. इसके बाद बिहार (1,34,252), गुजरात (1,06,885), असम (80,739), हरियाणा (22,841) और तमिलनाडु (20,352) था.
देश में सबसे अधिक साक्षर राज्यों में केरल पहले स्थान पर है. इसके बाद क्रमशः दिल्ली, महाराष्ट्र और तमिलनाडु है.
केंद्र सरकार का शिक्षा पर व्यय केंद्रीय बजट का 2.7 फीसदी है.