नई दिल्ली :सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार और एक मेडिकल कॉलेज को एक छात्र को 1 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया है. शीर्ष कोर्ट का कहना है कि असंवेदनशील, अन्यायपूर्ण, अवैध और मनमाने रवैये के कारण छात्र को एमबीबीएस (यूजी) पाठ्यक्रम के पहले वर्ष में प्रवेश से वंचित कर दिया गया है.
न्यायमूर्ति बी आर गवई, राजेश बिंदल और संदीप मेहता की तीन न्यायाधीशों वाली पीठ ने कहा, 'प्रवेश को अवैध और मनमाने ढंग से रद्द करने के कारण हम कॉलेज और महाराष्ट्र सरकार को अपीलकर्ता को एक वर्ष की अवधि से वंचित करने और उत्पीड़न के लिए 1 लाख रुपये (प्रत्येक 50,000/- रुपये) का मुआवजा देने का भी निर्देश देते हैं.'
पीठ की ओर से निर्णय लिखने वाले जज ने निर्देश दिया कि अपीलकर्ता (छात्र) को एमबीबीएस (यूजी) पाठ्यक्रम के पहले वर्ष में 'भारत सरकार की सेवा करने वाले व्यक्ति के महाराष्ट्र के मूल निवासी ओबीसी श्रेणी' में वर्ष 2024 से एक अतिरिक्त सीट सृजित कर प्रवेश प्रदान किया जाए.' पीठ ने अतिरिक्त सीट बनाते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि NEET UG 2024 में सफल होने वाले उम्मीदवारों के लिए सीटों के कोटे में कोई कटौती नहीं की जानी चाहिए.
पीठ ने कहा कि अपीलकर्ता का प्रवेश रद्द करने का आदेश 9 अगस्त, 2023 को जारी किया गया था और बिना किसी देरी के 10 अगस्त, 2023 को उच्च न्यायालय के समक्ष रिट याचिका दायर की गई थी. पीठ ने 20 मार्च को दिए एक फैसले में कहा था कि 'अपीलकर्ता अगले सत्र यानी NEET UG-2024 में उसी कॉलेज में एमबीबीएस (यूजी) पाठ्यक्रम के पहले वर्ष में अपनी सीट की बहाली का हकदार है.'
ये है मामला : शीर्ष अदालत का फैसला बंबई उच्च न्यायालय की खंडपीठ द्वारा पारित आदेशों की आलोचना करते हुए छात्र वंश द्वारा दायर अपील पर आया. उच्च न्यायालय ने संपूर्ण तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करने के बाद, 5 सितंबर, 2023 को अपीलकर्ता की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वह सूचना विवरणिका के खंड 4.8 और 9.4.4 की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करता है. यह माना गया कि चूंकि अपीलकर्ता ने ऑनलाइन आवेदन पत्र जमा करते समय रक्षा कर्मियों (डीईएफ) के बच्चों की श्रेणी में निर्दिष्ट आरक्षण का चयन नहीं किया था, इसलिए उसे विलंबित चरण में इस तरह का दावा करने से रोक दिया गया था, क्योंकि यह अनुचित था.