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पद्मश्री पुरस्कार 2024: भारत की पहली महिला महावत पारबती बरुआ पद्मश्री से सम्मानित - India first female mahout

भारत आज 26 जनवरी को अपना 75वां गणतंत्र दिवस मना रहा है. देश ने विभिन्न क्षेत्रों में उनके योगदान के लिए 132 नागरिकों को पद्म पुरस्कार से सम्मानित किया है. 2024 के 110 पद्म श्री प्राप्तकर्ताओं में से एक असम की पशु संरक्षणवादी पारबती बरुआ हैं. पढ़ें पूरी खबर...

India's first female mahout Parbati Barua awarded Padma Shri
पद्मश्री पुरस्कार 2024 पारबती बरुआ

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 26, 2024, 1:04 PM IST

दिसपुर : गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर गुरुवार रात पद्म पुरस्कार 2024 की घोषणा की गई. भारत की पहली मादा हाथी महावत पारबती बरुआ, जिन्हें प्यार से हस्तिर कन्या (हाथी की बेटी) कहा जाता है, उन्हें सामाजिक कल्याण (पशु कल्याण) के लिए पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. 67 वर्षीय महिला की वन्य जीवन के प्रति करुणा और ऐसे क्षेत्र में जाने की उनकी बहादुरी उन्हें सबसे निस्वार्थ महिलाओं में से एक बनाती है. पारबती बरुआ के साथ-साथ असम के दो और व्यक्ति को भी पद्म पुरस्कार दिया गया है.

बता दें, पारबती बरुआ का जन्म असम के शाही परिवारों में से एक में हुआ था. पुराने दिनों में हाथी का मालिक होना अमीर परिवारों के बीच प्रतिष्ठा का प्रतीक था. लेकिन इससे परे पारबती को हाथियों के साथ बहुत करीबी जुड़ाव महसूस हुआ और उन्होंने अपना अधिकांश समय हाथियों को पालने और उन्हें प्रशिक्षण देने में बिताया. 14 साल की उम्र में उनके दिवंगत पिता प्रकृतिश चंद्र बरुआ ने उन्हें हाथी प्रबंधन के क्षेत्र से परिचित कराया था. बता दें, शाही परिवार के पास 40 हाथी थे.

बरुआ कई गतिविधियों में शामिल थे जिससे हाथियों की जीवन स्थितियों में सुधार हुआ. उन्होंने पहली बार 14 साल की उम्र में कोचुगांव जंगल (असम) से एक हाथी को अपने घर लाकर उसे पाला और उसकी देखभाल की. बरुआ ने असम (दारांग और कोचुगांव) और उत्तरी बंगाल (जलपाईगुड़ी और दार्जिलिंग) के जंगलों में मेला शिकार (1975 से 1978) द्वारा स्वतंत्र रूप से 14 जंगली हाथियों को पालतू बनाया था. यहां तक​​कि उन्होंने नए पालतू हाथियों के इलाज और देखभाल में भी वन अधिकारियों की मदद की .

बरुआ ने मार्च 2000 में हाथी जनगणना के लिए काम करने वाले महावतों और फील्ड कर्मचारियों के लिए प्रशिक्षण आयोजित करने में पश्चिम बंगाल वन विभाग की सहायता की. उनके अपार योगदान के लिए उन्हें 1989 में जंगली और बंदी हाथियों दोनों के कल्याण और प्रबंधन के लिए संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) पुरस्कार, 'ग्लोबल 500 - रोल ऑफ ऑनर' मिला. असम सरकार ने 11 जनवरी 2003 को हाथियों के लिए उनके आजीवन कार्य के लिए उन्हें 'असम के मानद मुख्य हाथी वार्डन' के रूप में सम्मानित किया.

पारबती बरुआ ने अंग्रेजी, बंगाली और असमिया में हाथियों पर कई लोकप्रिय लेखों और पत्रों में योगदान दिया है. वह गोलपारन लोक नृत्य की कलाकार भी हैं. उन्होंने भारत में विभिन्न स्थानों पर विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लिया है. वह I.C.U.N के एशियाई हाथी विशेषज्ञ समूह की सदस्य भी हैं, और असम सरकार की 'मानव-हाथी संघर्ष' टास्क फोर्स की सदस्य भी हैं.

पारबती बरुआ तब सुर्खियों में आईं जब बीबीसी ने उनके जीवन पर आधारित डॉक्यूमेंट्री क्वीन ऑफ एलीफैंट्स के साथ-साथ मार्क शैंड की साथी पुस्तक का निर्माण किया. हाथी संरक्षण में उनके अटूट दृढ़ संकल्प और महत्वपूर्ण योगदान ने उन्हें 67 वर्ष की आयु में प्रतिष्ठित पद्म श्री पुरस्कार दिलाया है.

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